अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच पहलगाम आतंकी हमले के बाद पैदा हुए तनाव के बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उच्च-स्तरीय बातचीत की। क्या यह अमेरिका की कोशिश है कि वह दो परमाणु संपन्न प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से संतुलित कर सके? ये समानांतर बातचीत इस बात पर गंभीर सवाल उठाती हैं कि क्या अमेरिका अपने दक्षिण एशिया रणनीति को फिर से गढ़ रहा है और भारत-पाक के बीच शक्ति संतुलन के ज़रिए वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित करना चाहता है? या ट्रंप नोबल शांति पुरस्कार की चाहत में भारत-पाक के मध्यस्थता करना चाहते है? इस तरह के कई सवाल उठ रहे हैं।
17 जून, 2025 को ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से 35 मिनट लंबी फोन पर बातचीत की, जिसमें उन्होंने हालिया भारत-पाक सीज़फायर को लेकर चर्चा की और मोदी को G7 शिखर सम्मेलन से लौटते वक्त वाशिंगटन आने का न्योता भी दिया। कयास लगाए जा रहे हैं कि ट्रंप इस यात्रा के ज़रिए मुनीर के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक की योजना बना रहे थे। लेकिन मोदी ने पहले से तय कार्यक्रम का हवाला देते हुए यात्रा से इनकार कर दिया और ट्रंप के किसी भी मध्यस्थता के दावे को स्पष्ट रूप से नकारा। यह घटना जहां भारत-अमेरिका के मजबूत रिश्तों को दर्शाती है, वहीं भारत की तरफ से किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से खारिज करना यह भी दर्शाता है कि नई दिल्ली अमेरिकी नीति के उस “हाइफनेशन” से अब भी असहज है, जो भारत और पाकिस्तान को एक जैसे तराजू में तौलती है, जबकि भारत आज एक बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत बन चुका है।
दूसरी ओर, 18 जून को राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तानी फील्ड मार्शल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में विशेष लंच पर आमंत्रित किया — यह सम्मान बहुत कम नेताओं को मिलता है। मुनीर इससे पहले अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ में शामिल हुए और CENTCOM मुख्यालय का भी दौरा किया। यह लंच पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि ट्रंप के पहले कार्यकाल और बाइडन प्रशासन के दौरान अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में आतंकवाद को लेकर तनाव रहा है।
क्या यह संकेत है कि अमेरिका अपनी दक्षिण एशिया नीति में बदलाव कर रहा है? ऐतिहासिक रूप से अमेरिका की नीति भारत और पाकिस्तान के बीच अपने सामरिक हितों के अनुसार झूलती रही है। शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिका का मुख्य सहयोगी था, लेकिन 2000 के दशक से अमेरिका ने भारत की ओर झुकाव बढ़ाया — खासतौर पर चीन को संतुलित करने के लिए। अब मुनीर और मोदी दोनों के साथ समानांतर बातचीत यह संकेत देती है कि ट्रंप प्रशासन फिर से दोनों देशों के बीच संतुलन बनाना चाहता है, ताकि अमेरिका दक्षिण एशिया में स्थिरता स्थापित कर सके और अपनी प्राथमिकताओं जैसे चीन, मिडिल ईस्ट, टेक्नोलॉजी और व्यापार पर ध्यान केंद्रित कर सके।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका एक जटिल संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है — एक तरफ पाकिस्तान की सैन्य ताकत को आतंकवाद के खिलाफ उपयोग करने का प्रयास, और दूसरी तरफ भारत के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखना। ट्रंप द्वारा पहलगाम हमले और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सीज़फायर को अपनी मध्यस्थता का परिणाम बताना, और मुनीर को दिए गए विशेष सम्मान से यह साफ झलकता है कि अमेरिका इस क्षेत्र में तत्काल स्थिरता लाने के लिए पाकिस्तान के साथ भी संवाद बढ़ा रहा है — खासकर IS-K जैसे आतंकी समूहों और ईरान से जुड़ी संभावित कार्रवाइयों को लेकर। परंतु इसी दौरान भारत के साथ बने अविश्वास और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के विरोध को नज़रअंदाज़ करना, अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव का कारण बन सकता है।
मुनीर की यात्रा और मोदी से बातचीत, दोनों यह दर्शाते हैं कि अमेरिका तात्कालिक रणनीतिक ज़रूरतों (जैसे आतंकवाद, ईरान) और दीर्घकालिक लक्ष्यों (जैसे चीन को संतुलित करना, दक्षिण एशिया में स्थिरता) के बीच संतुलन बना रहा है। हालांकि यह कदम पाकिस्तान के साथ फिर से जुड़ने की पहल है, लेकिन इससे भारत के साथ अमेरिकी साझेदारी की बुनियाद नहीं हिलती। फिर भी, इस तरह की दोहरी नीति से गलत संदेश जा सकते हैं — जिससे पाकिस्तान की सेना को मनोबल मिल सकता है और भारत का विश्वास कमजोर पड़ सकता है। ऐसे में बढ़ती वैश्विक ध्रुवीकरण की स्थिति में अमेरिका को बेहद सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे ताकि दक्षिण एशिया किसी बड़े संकट का केंद्र न बन जाए। एकतरफा मध्यस्थता के बजाय पारदर्शिता और बहुपक्षीय कूटनीति ही स्थिरता का मार्ग दिखा सकती है।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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