कृषि सुधार अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकारी याचिका
जलज वर्मा
| 21 Nov 2020 |
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आइफा ने कहा, किसानों की लड़ाई अब सड़क से कोर्ट पहुंची
सरकार व राजनीतिक दलों पर नहीं भरोसा, सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीदः डॉ राजाराम त्रिपाठी
कृषि क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार द्वारा बीते 5 जून को तीन अध्यादेश लाने के बाद से इस अध्यादेश का विरोध होने लगा था, लेकिन जब कृषि सुधार अधिनियम के रूप में सरकार ने इस अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित करा लिया. इसके बाद से देशभर में इसका किसान औऱ किसान संगठनों द्वारा व्यापक स्तर पर विरोध किया जा रहा है. अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) ने अपने अनुशांगिक 45 किसान संगठनों के साथ देशभर में इसका विरोध किया तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख इसमें संशोधन की मांग भी की.
इसके साथ ही अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका का समर्थन कर इसे कानूनी लड़ाई का एक व्यापक रूप दिया. हालांकि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दो और याचिकाएं दायर की गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन दोनों याचिका को खारिज करते हुए मनोहर लाल शर्मा की याचिका को 19 नवंबर को स्वीकार कर लिया है.
इस बारे में अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि हमलोग आरंभ से ही इन कानूनों का विरोध कर रहे थे, यह किसान हितैषी कम और कारपोरेट हितैषी ज्यादा है. इसमें किसानों के नाम पर कारपोरेट्स को फायदा पहुंचाने का प्रावधान है. चुकी आइफा किसानों का एक महासंघ है, अतः संगठन के स्तर पर देशभर में इसका विरोध किया गया. इसी बीच मनोहर लाल शर्मा जी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और आइफा ने उनके इस पहल का समर्थन किया है औऱ अब किसानों की यह लड़ाई सड़क से कोर्ट तक पहुंच गई है. डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि किसानों को तो हर संवैधानिक निकाय पर भरोसा होता है और यहीं कारण है कि किसान हमेशा ठगा भी जाता है लेकिन किसानों को कोर्ट से काफी उम्मीदें है और भरोसा हैं कि कोर्ट उनके हितों के साथ न्याय करेगा.
बीते 12 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने तीन अलग-अलग याचिकाओं पर विचार किया, जिनमें से एक शर्मा द्वारा दायर की गई थी, और अन्य दो छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के पदाधिकारियों और द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा द्वारा दायर की गई थीं. याचिकाओं में मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 और किसानों के अधिकार व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 को चुनौती दी गई है. पहला अधिनियम विभिन्न राज्य कानूनों द्वारा स्थापित कृषि उपज विपणन समितियों (APMCS) द्वारा विनियमित बाजार यार्ड के बाहर के स्थानों में किसानों को कृषि उत्पादों को बेचने में सक्षम बनाने का प्रयास करता है. दूसरा अधिनियम अनुबंध खेती के समझौतों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करना चाहता है. तीसरे अधिनियम में खाद्य स्टॉक सीमा और अनाज, दालें, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन, और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत तेल जैसे खाद्य पदार्थों पर मूल्य नियंत्रण की मांग की गई है. शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है, "किसान परिवारों को बलपूर्वक उनकी जमीन के कागज़ पर हस्ताक्षर करने /अंगूठे के निशान लगाने के लिए मजबूर किया जाएगा, खेती की फ़सलें और आज़ादी हमेशा के लिए कॉरपोरेट घरानों के हाथों में होगी. वास्तव में, यह इन अधिसूचनाओं के माध्यम से किसानों के जीवन, स्वतंत्रता और किसानों और उनके परिवार की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा है. इसलिए, लागू किए गए नोटिफिकेशन को रद्द किया जाना चाहिए."
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि किसानों औऱ खेती के मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हमेशा केवल राजनीति ही करती आयी है औऱ इनके लिए किसान सिर्फ राजनीति का मोहरा भर रह गया है. छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस द्वारा दिखावे के लिए इस विधेयक के विरोध में याचिका दायर की गई, जिसमें जानबुझ कर या कहे कि याचिका के साथ जो तर्क व दस्तावेज दिया जाना चाहिए ताकि केस में वजन हो, उसे नजर अंदाज किया गया. इसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इनकी याचिका को खारिज कर दिया. लगभग यहीं स्थिति द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा द्वारा दायर की गई याचिका की भी रही.
अब किसानों को राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नहीं है लेकिन कोर्ट द्वारा मनोहर लाल शर्मा के याचिका को स्वीकरने के बाद कोर्ट से काफी उम्मीदें हैं. देशभर के किसान और किसान संगठनों को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये जाने वाली सुनवाई पर टिकी है.