‘ठंड हो या दंड, लेकर रहेंगे अधिकार’

श्रीराजेश

 |  27 Nov 2020 |   383
Culttoday

बीते दो दिनों से दिल्ली की सीमा, किसानों पर लाठी भांजने और इस ठंड में पानी बौछार बरसाने के लिए गवाह बना हुआ है. कृषि सुधार के नाम पर केंद्र सरकार ने तीन कानून बनाये और इसे किसान हितैषी होने का दावा किया लेकिन इन कानूनों से किसानों को कितना नुकसान है, इस बारे में किसान संगठनों ने बार-बार सरकार से गुहार लगाते हुए इसमें संशोधन की मांग की लेकिन सरकार ने उनकी मांग को मानने के बजाय, किसानों को यह बताने में लगी रही कि यह उनके हित में हैं. बावजूद इसके किसानों को सरकार द्वारा किये जा रहे तरह-तरह के दावों पर भरोसा नहीं हुआ और वे अंततः 26 नवंबर (संविधान दिवस) के दिन अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने दिल्ली आने लगे. दिल्ली में कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए गुरुवार से ही किसानों को हरियाणा-दिल्ली सीमा पर रोक दिया गया तथा उन पर लाठी-आंसू गैस-पानी के बौछार किये गये. यह सिलसिला शुक्रवार को भी जारी रहा. 
अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के नेतृत्व में 45 किसान संगठनों के प्रतिनिधि और समर्थक राशन-पानी लेकर अनिश्चितकाल के धरना प्रदर्शन के लिए दिल्ली के लिए आएं. हालांकि शुक्रवार को किसानों को दिल्ली आने की अनुमति दे दी गई. 
अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि जब तक किसानों की मांग पूरी करते हुए सरकार इन कानूनों में संशोधन नहीं करेगी तब तक किसान चाहे दिल्ली में या फिर दिल्ली के बाहर सड़कों पर जमें रहेंगे. उन्होंने कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर किसानों से तीन दिसंबर को मिलने की बात कर रहे हैं. आखिर तीन दिसबंर ही क्यों? वह किसानों से अभी क्यों नहीं बात करते और उनकी समस्या का समाधान निकालते. 
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि किसान अपने भविष्य को लेकर चिंतित है और सरकार का फर्ज है कि वह उनके भविष्य और अधिकार की रक्षा करे. इन कानून को पास कराने के पहले इसे अध्यादेश के रूप में लाया गया था. लेकिन उसके बाद केंद्र सरकार ने किसानों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया बल्कि कारपोरेट और व्यावसायिक संगठनों से इस पर चर्चा की और नतीजा निकला कि यह कारपोरेट हितैषी बन कर रह गया है. उन्होंने कहा कि किसानों की चिंताओं को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री तक को पत्र लिख कर बार-बार संशोधन की गुहार लगाई गई. लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया और किसानों का आक्रोश बढ़ा. अब किसान डट गये हैं, चाहे उन्हें गिरफ्तार किया जाए या लाठी चलाई जाय. वे तब तक नहीं लौटेंगे जब तक उनके अधिकारों की रक्षा की गारंटी सुनिश्चित नहीं हो जाती.     
इधर, देश भर में किसान संगठन सभी जिला, तहसील व ब्लाक कार्यालयों पर धरना प्रदर्शन किये. इन कार्यक्रमों में भी लाखों किसान हिस्सा लिये. अब "दिल्ली चलो" आह्वान के साथ यह आंदोलन और तेज होगा. विभिन्न किसान संगठनों के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी किसानों का जत्था दिल्ली के लिए रवाना हो चुका है. इससे सरकार की चिंताएं बढ़ेगी. डॉ त्रिपाठी ने कहा कि अच्छा होगा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार को अधिक लचीलेपन के साथ किसानों के साथ बातचीत करनी चाहिए. मुख्य रूप से किसानों की दो मांगे हैं – पहला, एमएसपी को अधिनियम का हिस्सा बनाया जाए और दूसरा एमएसपी के आधार पर भी व्यापार को अनुमति दी जाए. 
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि आइफा पांच जून को जब इस संबंध में अध्यादेश लाया गया था तभी से इसका विरोध करते हुए इसमें संशोधन की मांग करती रही है. अब लड़ाई आर-पार की है. सरकार को किसानों की अनसुनी करना अब महंगा पड़ने वाला है.


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