किचन गार्डन करेगा जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला!
श्रीराजेश
| 02 Jan 2020 |
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बाग़ीचे में फल और सब्ज़ी उगाना पहले से ही पर्यावरण के अनुकूल माना गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये जलवायु परिवर्तन को रोकने की लड़ाई में एक कारगर हथियार भी साबित हो सकता हैं. बांग्लादेश में रह रहे एक समुदाय के अनुभव से तो यही पता चलता है. जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे वैज्ञानिक हमेशा से ये आगाह करते आए हैं कि जलवायु परिवर्तन से फसलों को उगाने और उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व प्रभावित होते हैं.
हाल ही में बांग्लादेश के सिल्हट प्रांत के एक समुदाय ने भी यही अनुभव किया. उनके भोजन और आय के स्रोत वाली धान की खेती अपने समय से पूर्व बारिश होने की वजह से तबाह हो गई.
सिल्हट प्रांत के उत्तरी पूर्व क्षेत्र में बाढ़ से प्रभावित होने वाली ज़मीन अप्रैल 2017 में बारिश की चपेट में आ गई थी जबकि किसान बारिश की उम्मीद दो महीने बाद की कर रहे थे. ऐसे में उनकी पूरी धान की फसल का बर्बाद हो जाना बेहद चिंताजनक था.
इस पर जर्मनी की बर्लिन और पॉट्सडैम में जलवायु प्रभाव अनुसंधान पर काम कर रही प्रोफेसर ज़बीना गाब्रीष कहती हैं, "ये कितना ग़लत है क्यूंकि ये लोग जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं और यही जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव झेल रहे हैं."
नोबेल फ़ाउंडेशन द्वारा बर्लिन में आयोजित एक स्वास्थ्य और जलवायु विशेषज्ञों की एक बैठक में ज़बीना ने बीबीसी को बताया "ऐसे समुदाय जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा और सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं, क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के चलते वे अपनी आजीविका खो देते हैं और अपनी बोई फसल में पोषक तत्वों को भी खो देते हैं. और उनके बच्चे इससे सबसे अधिक पीड़ित होते हैं, क्योंकि वे तेज़ी से बढ़ रहे होते हैं और उन्हें बढ़ती उम्र में कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है."
बारिश के आने से पहले ही, प्रोफेसर ज़बीना ने कहा, सिल्हट प्रांत की एक तिहाई महिलाएं कम वज़न की थीं और 40% बच्चे स्थायी रूप से अल्पपोषित थे.
"लोग पहले से ही अपने जीवन के उस मोड़ पर हैं जहां वे कई बीमारियों के शिकार हैं और उनके पास बफ़र के लिए बहुत कुछ नहीं है," प्रोफेसर ज़बीना कहती हैं, "उनका कोई बीमा भी नहीं है."