वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ रही है, जो एक अप्रत्याशित घटना है और इससे दिन छोटे होते जा रहे हैं। 29 जून 2022 को रिकॉर्ड स्तर पर सबसे छोटा दिन रहा, जो औसतन 24 घंटे के दिन से 1.59 मिलीसेकंड छोटा था। 2025 के जुलाई और अगस्त में और भी छोटे दिन देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से, चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ज्वारीय घर्षण के कारण पृथ्वी की गति धीमी होती थी, जिससे हर दिन की लंबाई लगभग 2.3 मिलीसेकंड बढ़ती थी। लेकिन 2020 के बाद इसमें अप्रत्याशित तेजी देखी गई है। आखिर इस बदलाव का कारण क्या है?
इसका उत्तर कई भू-भौतिकीय और जलवायु संबंधी कारणों में छिपा है। पिछले हिमयुग के बाद बर्फ की चादरों का पिघलना, भूमि संरचना में बदलाव और पृथ्वी के जड़त्वाघूर्ण में कमी जैसी घटनाएं इसके पीछे प्रमुख कारक हैं, जिससे पृथ्वी की गति बढ़ी है। इसके अलावा, वायुमंडलीय दबाव, हवाएं, महासागरीय धाराएं और पृथ्वी के कोर व मेंटल की हलचलें भी इस गति को दशकीय स्तर पर प्रभावित करती हैं। बड़े भूकंप भी पृथ्वी का द्रव्यमान पुनर्वितरित कर उसकी घूर्णन गति बढ़ा सकते हैं, साथ ही अक्षीय झुकाव की आवधिक अस्थिरताएं भी भूमिका निभाती हैं।
इस गति में बदलाव और समय गणना के संतुलन को बनाए रखने के लिए निगेटिव लीप सेकंड अपनाने का सुझाव दिया गया है। यह यूटीसी समय से एक सेकंड घटाने की प्रक्रिया है। अब तक सभी लीप सेकंड्स "पॉजिटिव" रहे हैं, इसलिए यह एक ऐतिहासिक घटना होगी। हालांकि, IERS (इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस) ने अभी तक कोई निगेटिव लीप सेकंड निर्धारित नहीं किया है। वहीं, 2022 में वज़न और माप की जनरल कॉन्फ्रेंस ने 2035 तक लीप सेकंड्स को पूरी तरह हटाने का प्रस्ताव दिया है क्योंकि ये डिजिटल सिस्टम में व्यवधान लाते हैं।
तकनीकी रूप से इसके क्या प्रभाव होंगे?
एक निगेटिव लीप सेकंड उपग्रह संचार को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि यह सटीक टाइम-सिंक पर आधारित होता है। GNSS (जैसे GPS), जो परमाणु घड़ियों पर आधारित होते हैं, पोजिशनिंग और डेटा में अस्थायी गड़बड़ी झेल सकते हैं। हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) सिस्टम्स, जो हर सेकंड लाखों सौदे करते हैं, टाइम डिस्क्रिपेंसी के कारण ट्रेडिंग में विवाद और गड़बड़ी का सामना कर सकते हैं।
भारत के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण होगा। ISRO की NavIC प्रणाली, संचार उपग्रह और चंद्रयान, मंगलयान जैसे अंतरिक्ष अभियानों के संचालन के लिए समय का अत्यधिक सटीक होना जरूरी है। घड़ी में एक सेकंड की भी कमी से पोजिशनिंग और कम्युनिकेशन प्रभावित हो सकते हैं। भारत की समय मानकीकरण संस्था, नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी (NPL), जो परमाणु घड़ियों के ज़रिए IST संचालित करती है, को समय समायोजन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। यह सरकार, उद्योगों और आम जनता तक सही संदेश पहुंचाने की भी मांग करेगा ताकि भ्रम न फैले।
भारत की टेक इंडस्ट्री को भी अपनी समय-आधारित ऐप्स, ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स, NTP सर्वर और डेटाबेस सिस्टम को अपडेट करने की ज़रूरत पड़ेगी ताकि नई समय व्यवस्था के अनुसार काम जारी रखा जा सके।
कारणों की समझ, तकनीकी तैयारियों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए भारत इस समयीय असामान्यता को सफलता से पार कर सकता है। और अगर 2025 में निगेटिव लीप सेकंड आता है, तो यह वैश्विक और भारतीय स्तर पर इस चुनौती से निपटने की हमारी तैयारियों की असली परीक्षा होगी।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।