बाल्टिक सागर इस समय एक गंभीर पर्यावरणीय सुरक्षा संकट के केंद्र में है, जिसका कारण है द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समुद्र में डाले गए लगभग 40,000 टन रासायनिक हथियारों का क्षरण। ये हथियार मुख्य रूप से 1947 से 1953 के बीच मित्र देशों और सोवियत अधिकारियों द्वारा समुद्र में फेंके गए थे, जो अब गलकर खतरनाक रसायनों जैसे सल्फर मस्टर्ड, लुईसाइट, फॉस्जीन और टेबुन को समुद्री वातावरण में छोड़ रहे हैं।
इन रासायनिक यौगिकों को शुरू में स्टील की कोटिंग वाले कंटेनरों में बंद करके समुद्र में डाला गया था, जिन्हें स्थिर और सुरक्षित माना गया था। लेकिन समय के साथ समुद्री नमक, ऑक्सीजन रहित माइक्रोबियल गतिविधि, और तलछट के घर्षण ने इन संरचनाओं को कमजोर कर दिया, जिससे इन जहरीले रसायनों का समुद्री तली में धीरे-धीरे रिसाव हो रहा है।
यह प्रक्रिया, जिसे अब वैज्ञानिक रूप से “सुबैक्वियस केमिकल डिफ्यूज़न” कहा जाता है, अच्छी तरह से प्रलेखित हो चुकी है। HELCOM (हेलसिंकी आयोग) और यूरोपीय संघ की ChemSea परियोजना के तहत विश्लेषण किए गए तलछट के नमूने बताते हैं कि बॉर्नहोम बेसिन और गोटलैंड डीप जैसे प्रमुख डंपिंग ज़ोन के पास विषैले अवशेषों की मात्रा अत्यधिक बढ़ गई है।
HELCOM और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र में पड़े इन भंडारों में से कम से कम 25% अब गंभीर क्षरण की स्थिति में पहुंच चुके हैं। इन रासायनिक एजेंटों का तलछट में रिसाव समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को विषैला बना रहा है, जिससे जलीय जीवों में जैविक विकृति और मानव खाद्य श्रृंखला की सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो गया है। आर्सेनिक-आधारित लीक के उप-उत्पाद तलछट और उसके जल-कणों में पाए गए हैं, जो अक्सर यूरोपीय रासायनिक एजेंसी (ECHA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तय मानकों से कई गुना अधिक हैं।
ईकोटॉक्सिकोलॉजिकल विश्लेषण बताता है कि बॉर्नहोम बेसिन और गोटलैंड डीप में लगातार विषैले क्षेत्र बने हुए हैं। GEOMAR अध्ययन में 2017–18 के जल नमूनों में लगभग 3,000 किलोग्राम घुले हुए विषैले तत्व (जैसे TNT, RDX, DNB) पाए गए, विशेषकर कील और लूबेक की खाड़ियों में।
इस खतरे के जवाब में जर्मनी सरकार ने 1.2 बिलियन यूरो की समुद्री सफाई परियोजना शुरू की है, जिसे यूरोपीय आयोग द्वारा समर्थन प्राप्त है और जिसे नाटो की पर्यावरणीय सुरक्षा रणनीति में शामिल किया गया है। इस अभियान में ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUVs) का उपयोग किया जा रहा है, जो मल्टीस्पेक्ट्रल सोनार, भू-रासायनिक सेंसर और रोबोटिक निष्क्रियकरण मॉड्यूल्स से लैस हैं, ताकि क्षतिग्रस्त रासायनिक हथियारों का पता लगाकर उन्हें सुरक्षित रूप से निकाला जा सके।
सीकैट क्लास ऑटोनॉमस सबमर्सिबल सिस्टम (ASS) में जर्मनी द्वारा प्रयोग किए गए संदूषण आइसोलेशन चैंबर और रिट्रीवल आर्म्स अभूतपूर्व हैं। हालांकि, यूरोपीय पनडुब्बी खतरा न्यूनीकरण केंद्र (ECSHM) के विशेषज्ञों ने डेटा साझाकरण की व्यवस्था न होने पर चिंता व्यक्त की है।
कई डंपिंग ज़ोन अब रूस की समुद्री सीमा के भीतर या उसके करीब स्थित हैं। लेकिन रूस को इस पूरे सफाई अभियान से बाहर रखा गया है। जर्मनी ने यह कहते हुए बहिष्कार का बचाव किया है कि रूस की यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई और पश्चिम के साथ तनावपूर्ण संबंधों के चलते सुरक्षा और कूटनीतिक कारणवश यह फैसला लिया गया।
यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करता है। एस्पू कन्वेंशन और ऑरहस कन्वेंशन के तहत, साझा पर्यावरणीय जोखिम की स्थिति में सहयोग करना अनिवार्य है। रूसी नौसैनिक अभिलेखों में कथित रूप से सोवियत युग के डंपिंग स्थलों, मात्रा और विधियों की विस्तृत जानकारी मौजूद है। यदि इन सूचनाओं को साझा नहीं किया गया, तो जर्मन नेतृत्व वाला अभियान गोटलैंड के पूर्व और कालिनिनग्राद के निकट अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्रों में अधूरा और तकनीकी रूप से अपूर्ण रह जाएगा।
रूसी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इसे "पर्यावरणीय बहुपक्षवाद का घोर अपमान" बताया और आरोप लगाया कि नाटो इस सामूहिक संकट को एकतरफा नियंत्रण में बदलना चाहता है। रूस के शिर्शोव समुद्र विज्ञान संस्थान जैसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों ने भी इस बहिष्कार की आलोचना करते हुए कहा है कि यह सफाई प्रयास तकनीकी रूप से अपर्याप्त और कूटनीतिक रूप से प्रतिगामी है।
2024 UNEP महासागरीय प्रदूषण सूचकांक ने बाल्टिक सागर में रासायनिक हथियारों की समस्या को प्राथमिक समुद्री सुरक्षा संकट (Tier-1) घोषित किया है और सभी संबंधित पक्षों से सहभागी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित प्रयास दोबारा शुरू करने का आह्वान किया है। रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समावेशहीन कूटनीति में स्थायी समाधान संभव नहीं है, खासकर तब जब विरोधी पक्षों के पास संकट समाधान के लिए महत्वपूर्ण डेटा मौजूद हो।
बाल्टिक सागर की मत्स्य अर्थव्यवस्था, जिसकी वार्षिक अनुमानित मूल्य 4.5 अरब यूरो है, के 2030 तक 5–6.5% तक सिकुड़ने की आशंका है, जिसका कारण है प्रदूषण, घटती मछली गुणवत्ता, और उपभोक्ता विश्वास में गिरावट। बाल्टिक समुद्री आर्थिक परिषद के अनुसार यह गिरावट बंदरगाह, मत्स्य पालन, समुद्री पर्यटन और व्यापार—इन सभी क्षेत्रों में 1.4 अरब यूरो का आर्थिक घाटा उत्पन्न कर सकती है।
बाल्टिक सागर में जलमग्न रासायनिक हथियारों की सफाई एक पर्यावरणीय अनिवार्यता तो है ही, साथ ही यह एक भूराजनीतिक कसौटी भी बन गई है। इस संकट से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए भविष्य की रणनीतियों में समावेशिता, निष्पक्षता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को केंद्रीय भूमिका देनी होगी।
धनिष्ठा डे कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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