ग्रोक देवे गारी:स्वदेशी चैटबोट ही है जवाब
संदीप कुमार
| 31 Mar 2025 |
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बीते दिनों पेरिस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शिखर सम्मेलन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ सह-अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, कृत्रिम मेधा न सिर्फ अर्थव्यवस्था, समाज और रक्षा सुरक्षा को बल्कि राजनीति भी बदल रही है। निस्संदेह उनका कथन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सकारात्मक प्रभावों को लेकर था लेकिन फिलहाल इसका दूसरा और नकारात्मक पहलू तेजी से सामने आ रहा है। पिछली साल गूगल के एआई चैटबॉट जेमिनी ने अपने जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी, सरकार ने तुरंत कार्रवाई की। गूगल को मानना पड़ा कि जेमिनी हर बार सही नहीं हो सकता, उसकी सीमाएं है। परोक्षत: उसने माफी मांग ली और सुधार की बात दोहराई। सरकार ने भी शीघ्र ही एआई जेनेरेटेड सामग्री पर नए दिशा-निर्देश जारी कर दिये। पर इस बार एलन मस्क के चैटॅबोट ग्रोक के मामले में अभी तक यह बात समाचार पत्रों में सूत्रों के हवाले से ही कही जा रही है कि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय मानता है कि ग्राोक के सभी विवादित उत्तरों के लिए एलन मस्क का एक्स ही जिम्मेदार है और वह उस पर कानूनी कार्यवाई की ओर बढ चला है। उधर मंत्रालय ने सफाई दी कि उसने ग्रोक या उसकी निर्माता कंपनी एक्स को कोई नोटिस नहीं भेजा है हालांकि एक्स और ग्रोक के साथ इस मसले पर बातचीत चल रही है। भारतीय और वैश्विक स्तर पर बहुत सारे सबूत हैं कि एक्स प्लेटफार्म व्यावसायिक हितों के लिए ऐसे काम करते हैं। बेशक, मौजूदा दौर में ट्रंप के दुलारे और ग्रोक के मालिक एलन मस्क की ताकत सभी मान रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि सरकार को ग्रोक के मामले में एक्स पर इतना सख्त रुख अपनाना चाहिये कि इससे ऐसे दूसरे चैटॅबॉट निर्माताओं को भविष्य के लिए सबक मिले।
कुछ लोग इस तर्क के विरुद्ध हो सकते हैं और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सच को स्वीकारने की ताकत वगैरह की रट लगा सकते हैं। ऐसी सोच को प्रतिगामी, विज्ञान विरुद्ध तथा तकनीकि विकास के खिलाफ कह सकते हैं। पर बात यहां इस तरह के सैद्धांतिक बहस की नहीं बल्कि बनावटी बुद्धिमत्ता के भविष्यगत व्यावहारिक दुष्परिणामों को लेकर है जो मानव पर मशीनी हमले और उनके प्रभुत्व के प्रतिकार के बतौर देखा जाना चाहिये। सत्य वचन सदैव प्रशंसनीय है, पर अप्रिय सत्य वाचन के लिये मनुष्यों हेतु कुछ संयम नियत हैं इसके बावजूद कठोर सत्य का उद्घाटन न सिर्फ स्वागत योग्य होना चाहिये बल्कि उसे सदैव स्वीकृति देना श्रेयस्कर होगा क्योंकि उसी से सुधार और विकास संभव है, वह चाहे सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र हो या वैज्ञानिक अथवा कोई भी। लेकिन यह तर्क किसी, निरपेक्ष मनुष्य के लिए है, ऐसी मशीनों के लिये नहीं जो किसी दूसरे के द्वारा निर्मित, धारणा विशेष से प्रेरित हो सकती हों, जिससे पक्षपातपूर्ण व्यवहार की आशंका हो। यह आशंका निर्मूल भी नहीं है। भिन्न प्रकार के चैटबॉट से यदि एक ही प्रश्न किए जाते हैं तो उनके उत्तर बहुधा एक जैसे होते हुए भी भिन्न शैली में और अलग भाव लिये होते हैं। यह उस प्रविधि तथा आंकड़ों पर निर्भर होता है जिसके तहत उन्हें बनाया गया है। इसमें संदेह नहीं कि कल को ये उत्तर और भी अलग निहितार्थों और आशय विशेष से भरे हो सकते हैं। ग्रोक या एक्स के विरुद्ध समुचित कार्यवाई मात्र इसलिये नहीं कि ग्रोक के उत्तर सरकार, भाजपा, उसके मातृ संगठन, जुड़े नेता तथा समर्थकों को असहज कर रहे हैं। इस तरह के चैटॅबॉट किसी अन्य सरकार या सत्ता के लिए कोई दूसरा व्यवहार करेंगे यह तय नहीं। चैटबॉट यदि लोकतांत्रिक सरकारों की व्यवस्थागत कमियों को तार्किक तौर पर सामने लाती है तो उसका सर्वदा स्वागत है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि वह यह निष्पक्ष तरीके से कर रहा है, वह किसी दुर्भावनापूर्ण मंतव्य या नियत एजेंडे से प्रभावित नहीं। ऐसे में जिस भी सरकार के समय ऐसी तकनीकि प्रवृत्ति उभरी है उसके द्वारा इसका पर्याप्त विरोध आवश्यक है ताकि सरकार देश समाज और उसके साथ राष्ट्र राजनीति को भी चैटबॉट के जवाबों से बाहर आने वाले इस तरह के दूरगामी दुष्परिणामों, आसन्न संकटों से देश समाज को बचाने का अपना महती दायित्व निभा सके।
चैटबॉट के क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों का बोलबाले को चीन और दूसरे देशों की कंपनियों ने चुनौती दी है। पिछले कुछ महीनों से चैटबॉट को लेकर रेस तेज हुई है। सऊदी अरब ने भी अपना चैटबॉट रेयान उतारा है। रेयान तो महज बाजार विश्लेषक है परंतु दूसरे तमाम चैटबॉट जो आने वाले हैं उनके बारे में सबसे बड़ी चिंता यह है कि इनको बनाने वाले लोग इसमें अपनी पसंद, नापसंद के आंकड़े डाल सकते हैं। इससे इनके जवाब अथवा फैसले एकतरफा हो सकते हैं। चूंकि ग्रोक के बाद यह साबित हो गया है कि ये रटे रटाए जवाब नहीं देते बल्कि सोच समझ कर टिप्पणी करते हैं, ये जनमत को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इनका इस्तेमाल जिम्मेदारी से भरा और सावधानी से हो। यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित इसी तरह के दूसरे अनियंत्रित श्रेणी के चैटबॉट आने शुरू हुए तो सरकारें हमेशा संकट में बनी रहेंगी, भिन्नताओं से भरे भारतीय समाज में घृणा और विद्वेष फैलाना आम बात हो जायेगी। विगत दिनों भारतीय सेना के लिए विशेष एलएलएम यानी लॉन्ग लैंग्वेज मॉडल, बनाने की बात चली जो एक तरह से चैटबोट सरीखा ही काम आयेगा लेकिन मात्र सेना के लिये। सेना ने कहा कि उसे जीरो बायस, जीरो गार्डरेल के साथ यह एलएलएम चाहिये। मतलब यह कि उसे बिना किसी पाबंदी के बेझिझक और लाग लपेट रहित,साफ सही, राय चाहिये। जिस भी चैटबोट को इंटरनेट के सारे आंकड़े के साथ डेटा ट्रेन अथवा प्रशिक्षित करने के बाद उसको क्यूरेट करने फिल्टर लगाने, ताकतवर गार्ड रेल लगाने का काम होगा वह उस मॉडल का चैटबोट उतना ही संभल कर और घुमावदार जवाब देगार जिसमें फिल्टर और गार्ड रेल को जानबूझ कर कमजोर रखा गया होगा वह अधिकतर विवादास्पद और बेबाक बयान देने वाला होगा। ग्रोक कमोबेश ऐसा ही है।
संभव है कि ग्रोक चैटॅबॉट के तुर्की ब तुर्की, चुटीले, बेबाक उत्तर वर्तमान में साहसी, सत्य और मज़ेदार लग रहे हों परंतु भविष्य की ओर देखें और इस तकनीकी परिदृश्य की गहराई से विवेचन करें तो इसका आकलन डरा सकता है। ऐसे चैटबोट नियंत्रित नहीं हुए तो वे अराजकता को जन्म देंगे। जो सरकारों के लिये ही नहीं देश समाज और जनता के लिये नुकसानदायक साबित होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री की इस बात को याद रखना चाहिये कि, एआई निर्मित तकनीकि उपायों की संचालन व्यवस्था और संबंधित मानकों को इस तरह स्थापित करना होगा कि वे हमारे साझा मूल्यों को बनाए रखें, जोखिमों को दूर करें और आपसी भरोसे का निर्माण करें। इसके लिए सामूहिक वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है। जबकि ग्रोक का मामला इसके ठीक उलट है, इसलिये प्रधानमंत्री की बातों को ध्यान में रखते हुए एक्स पर कठोर कार्रवाई अत्यावश्यक लगती है, यह अलग तथ्य है कि भारत के पास इसके लिए उचित क़ानूनी प्रावधान अभी तैयार नहीं है। फिर भी हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बनावटी बुद्धि का इस्तेमाल लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए हो, न कि उसे कमज़ोर करने के लिए। उम्मीद है कि सितंबर में जब स्वदेशी चैटबॉट आयेगा तब उसे देश का एकमात्र आधिकारिक चैटबॉट घोषित कर बाकी से मिले जवाब को सरकार अमान्य घोषित कर दे।