गगनयान से आदित्य तकः इसरो गढ़ रहा नई पहचान
संदीप कुमार
| 02 Sep 2025 |
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अगस्त 2025 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए एक ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी माह के रूप में दर्ज हुआ। इस अवधि में हुई प्रमुख तकनीकी उपलब्धियों—मानव-रेटेड अंतरिक्ष यान का सफल परीक्षण, एक अभूतपूर्व संयुक्त उपग्रह मिशन का क्रियान्वयन, एक सुपर-हैवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन की घोषणा, और सौर भौतिकी में महत्वपूर्ण योगदान—ने भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को एक नई कक्षा में स्थापित कर दिया है। ये उपलब्धियाँ भारत को केवल एक उभरती हुई अंतरिक्ष शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष व्यवस्था में एक प्रमुख, स्वायत्त और प्रभावशाली स्तंभ के रूप में स्थापित करती हैं। इसरो की इस यात्रा ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के विकासवादी प्रक्षेपवक्र के समानांतर, भारत के 'अनुसरणकर्ता' से 'समानांतर शक्ति' बनने के उपलब्धियों को रेखांकित करता है।
अंतरिक्ष प्रभुत्व का बदलता समीकरण
21वीं सदी में अंतरिक्ष अन्वेषण केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा का विषय नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक प्रभुत्व, तकनीकी श्रेष्ठता और आर्थिक अवसरों का एक निर्णायक क्षेत्र बन गया है। शीत युद्ध काल के द्विध्रुवीय अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा (अमेरिका बनाम सोवियत संघ) से आगे बढ़कर, आज का परिदृश्य बहुध्रुवीय है, जिसमें चीन, यूरोप और अब भारत जैसे प्रमुख अभिकर्ता शामिल हैं। इस प्रतिस्पर्धी माहौल में, अगस्त 2025 इसरो के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जब संगठन ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति मौलिक रूप से बदल गई। ये उपलब्धियों दर्शाती है कि इसरो अब नासा जैसे स्थापित संस्थानों के साथ बराबरी पर खड़ा होकर वैश्विक अंतरिक्ष के भविष्य को आकार देने की क्षमता रखता है।
सामरिक स्वायत्तता की प्राप्ति
किसी भी राष्ट्र के लिए अंतरिक्ष महाशक्ति का दर्जा प्राप्त करने की दो प्रमुख कसौटियाँ हैं: मानव को अंतरिक्ष में भेजने की संप्रभु क्षमता और भारी पेलोड को इच्छित कक्षा में स्थापित करने की आत्मनिर्भरता। अगस्त 2025 में इसरो ने इन दोनों क्षेत्रों में निर्णायक प्रगति की।
24 अगस्त 2025 को संपन्न हुआ आईएडीटी-01 परीक्षण, गगनयान मिशन की तकनीकी परिपक्वता का प्रतीक है। इस परीक्षण में क्रू मॉड्यूल के वायुमंडलीय पुनः प्रवेश और पैराशूट-आधारित अवतरण प्रणाली की सटीकता का सफलतापूर्वक मूल्यांकन किया गया। यह प्रक्रिया मानव अंतरिक्ष उड़ान का सबसे जटिल और जोखिम भरा चरण है, जहाँ त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं होती। नासा ने अपने अपोलो और स्पेस शटल कार्यक्रमों के लिए इस तकनीक को सिद्ध करने में वर्षों लगाए थे। इसरो द्वारा इस महत्वपूर्ण पड़ाव को पार करना यह प्रमाणित करता है कि भारत ने अपने अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक इंजीनियरिंग और प्रणाली एकीकरण में महारत हासिल कर ली है। यह उपलब्धि भारत को अमेरिका, रूस और चीन के उस विशिष्ट क्लब में शामिल करती है, जिनके पास स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान की क्षमता है।
इसी महीने, इसरो प्रमुख द्वारा 120 मीटर ऊँचे और 75 टन पेलोड को निम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ) में ले जाने में सक्षम एक नए रॉकेट की घोषणा, भारत की दीर्घकालिक अंतरिक्ष रणनीति को उजागर करती है। यह क्षमता नासा के 'स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस)' और स्पेसएक्स के 'स्टारशिप' के समकक्ष है। ऐसा वाहन न केवल भारत को वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार के सबसे आकर्षक खंड (भारी संचार और सैन्य उपग्रह) में एक प्रमुख खिलाड़ी बना देगा, बल्कि यह चंद्र आधार (लूनर बेस), मंगल मिशन और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन जैसे अंतरग्रहीय अभियानों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करेगा। यह घोषणा इसरो की सोच में एक रणनीतिक बदलाव का संकेत है—जो अब केवल आवश्यकता-आधारित अनुप्रयोगों तक सीमित नहीं, बल्कि भविष्य के अन्वेषण-संचालित अवसरों पर केंद्रित है।
वैश्विक सहयोग का नया प्रतिमान
निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपरेटर राडार) उपग्रह, जो जुलाई 2025 में प्रक्षेपित हुआ, ने अगस्त में अपने 12-मीटर रिफ्लेक्टर एंटीना को सफलतापूर्वक तैनात कर संचालन शुरू किया। यह मिशन इसरो और नासा के बीच सहयोग के बदलते स्वरूप का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। पूर्व में, ऐसे सहयोगों में इसरो अक्सर एक कनिष्ठ भागीदार की भूमिका में होता था, जो डेटा या छोटे घटकों का योगदान करता था। निसार में, इसरो ने एस-बैंड एसएआर पेलोड, अंतरिक्ष यान बस और प्रक्षेपण वाहन प्रदान किया, जो मिशन की सफलता के लिए नासा के एल-बैंड पेलोड जितना ही महत्वपूर्ण है।
निसार की सफलता यह दर्शाती है कि भारत अब केवल प्रौद्योगिकी का प्राप्तकर्ता नहीं, बल्कि एक समान भागीदार है जो अत्याधुनिक प्रणालियों का सह-विकास और सह-संचालन कर सकता है। यह मिशन जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और पारिस्थितिक निगरानी जैसे वैश्विक मुद्दों पर डेटा प्रदान करेगा, जिससे भारत की भूमिका एक जिम्मेदार वैश्विक वैज्ञानिक हितधारक के रूप में और मजबूत होगी।
विज्ञान और समाज का संगम
अंतरिक्ष कार्यक्रमों की स्थायी सफलता केवल तकनीकी उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि सार्वजनिक समर्थन और अगली पीढ़ी को प्रेरित करने की क्षमता पर भी निर्भर करती है।
राष्ट्रीय चेतना का निर्माण
23 अगस्त को मनाया गया राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस, जिसकी थीम 'आर्यभट्ट से गगनयान: प्राचीन प्रज्ञान से अनंत संभावनाएं' थी, इसरो के सार्वजनिक जुड़ाव के परिपक्व दृष्टिकोण को दर्शाती है। नासा की तरह, जिसने दशकों से अपने अभियानों को अमेरिकी गौरव और प्रेरणा का स्रोत बनाया है, इसरो भी अब अंतरिक्ष को राष्ट्रीय चेतना से जोड़ने का सचेत प्रयास कर रहा है। एनसीईआरटी के माध्यम से शैक्षणिक मॉड्यूल जारी करना और भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों को एक राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करना, यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल एक सरकारी पहल न रहकर एक जन आंदोलन बने।
आदित्य-एल 1
अगस्त 2025 में आदित्य-एल1 मिशन द्वारा अपने संचालन का एक वर्ष पूरा करना, भारत को सौर भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण डेटा उत्पादक के रूप में स्थापित करता है। इसके एसयूआईटी पेलोड द्वारा प्रदान किए गए अद्वितीय डेटा ने सूर्य के कोरोना और सौर ज्वालाओं पर वैश्विक समझ को बढ़ाया है। पहले जहाँ दुनिया काफी हद तक नासा के सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी (एसडीओ) जैसे मिशनों पर निर्भर थी, वहीं अब आदित्य-एल1 एक पूरक और स्वतंत्र डेटा स्रोत प्रदान कर रहा है। यह इसरो के 'डेटा आयातक' से 'डेटा निर्यातक' बनने की स्थिति का द्योतक है।
अगस्त 2025 में इसरो की उपलब्धियों का सामूहिक विश्लेषण एक स्पष्ट निष्कर्ष प्रस्तुत करता है: भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में केवल एक प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि एक समानांतर शक्ति के रूप में उभरा है।