पूर्वजन्म की एक कहानी महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी हुई है जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. दरअसल, यह कहानी शांतिदेवी नाम की एक महिला से संबंधित है. महात्मा गांधी ने जिज्ञासावश एक बार शांति देवी के पिछले जन्म के दावे की सत्यता के लिए जांच समिति बना दी थी. इससे संबंधित एक रिपोर्ट 1936 में प्रकाशित हुई थी.
4 वर्ष की एक बच्ची शांतिदेवी अपने माता-पिता को अपने पिछले जन्म के बारे में बताने लगी. वह यह भी कहती थी कि उसके पति गोरे हैं और चश्मा लगाते हैं. उनके गाल पर मस्सा है. वह पूर्व जन्म में मथुरा में रहती थी. उसका एक पुत्र भी है. उसने एक बार अपनी मां को यह भी बताया कि डिलेवरी के समय उसका एक बच्चा मृत हुआ था.
मामला यह है कि जब शांतिदेवी महज चार साल की थी तभी उन्हें उनके पिछले जन्म की याद आ गई थी. दिल्ली में रहने वाली शांतिदेवी का कहना था कि उनका घर मथुरा में है और उनके पति उनका इंतजार कर रहे हैं. वह मथुरा जाने की बहुत जिद करती थी लेकिन वह कभी भी अपने पति का नाम नहीं लेती थी.
मात्र चार साल की शांतिदेवी ने मथुरा के अपने गांव के बारे में ऐसी बातें बताई थी जिस पर किसी का भी भरोसा करना मुश्किल था. जब उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया तो वह सबसे यही कहती थी कि वह शादीशुदा है और अपने बच्चे को जन्म देने के 10 दिन बात ही उसकी मृत्यु हो गई थी. जब स्कूल के अध्यापकों और छात्राओं से बात की गई तब उन्होंने बताया कि यह लड़की मथुरा की क्षेत्रीय भाषा में बात करती है.
एक बार उनके दूर के रिश्तेदार बाबू बीचन चंद्र जो दिल्ली के दरियागंज के रामजस उच्च विद्यालय के प्राध्यापक थे. उन्होंने शांतिदेवी को प्रलोभन दिया कि वे यदि उनके पूर्वजन्म के पति का नाम बता दे तो वे उन्हें मथुरा ले जाएंगे. इस प्रलोभन में आकर उन्होंने अपने पति का नाम बताया केदारनाथ चौबे.
बीचन चंद्रजी ने केदारनाथजी को पत्र लिखा और सारी बाते विस्तारपूर्वक बताई. केदारनाथजी ने पत्र का उत्तर देकर बताया कि शांतिदेवी जो भी कह रही है, वह सत्य है और वह उनके दिल्ली निवासी भाई पंडित कांजिवन से मिलें. पंडित कांजिवन शांतिदेवी से मिलने जब उनके घर आए तो शांतिदेवी ने उन्हें शीघ्र ही पहचान लिया. शांतिदेवी ने कहा कि वे केदारनाथ जी के चचेरे भाई हैं और यह भी बताया की उन्होंने मटके में छुपाकर एक जगह पैसा रखा है.
उपरोक्त घटना घटने के बाद शांतिदेवी से मिलने केदारनाथजी अपने पुत्र व तीसरी पत्नी के साथ आए. कहते हैं कि केदारनाथ और उनके बेटे को शांतिदेवी के सामने अलग-अलग नाम से पेश किया गया. लेकिन शांतिदेवी ने उन्हें देखते ही पहचान लिया. शांतिदेवी ने केदारनाथ को कई ऐसी घटनाओं के बारे में बताया जिसे जानकर वे भी चौंक गए और उन्हें विश्वास हो गया कि वे उसकी पत्नीं है. लेकिन शांतिदेवी को यह देखकर धक्का लगा कि केदारनाथ ने दूसरी शादी कर ली है. उन्होंने (शांतिदेवी ने) पूछा कि आपने लुग्दी देवी से वादा किया था कि आप दुबारा शादी नहीं करेंगे? इसका केदारनाथ कोई जवाब नहीं दे पाए.
यह मसला महात्मा गांधी के पास आया तो उन्होंने इस केस की सत्यता की जांच के लिए 15 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर दी. यह कमेटी शांतिदेवी को लेकर मथुरा गई, वहां पर तांगे में उन्हें बैठाकर वे केदारनाथजी के घर की तरफ निकले, शांतिदेवी तांगे वाले को रास्ता बता रही थी.
मथुरा पहुंचकर शांतिदेवी ने कई लोगों को पहचान लिया. केदारनाथ और लुग्दी देवी के सभी रिश्तेदार घर, परिवार आदि सभी को वह पहचान गई. शांतिदेवी ने यह भी बताया कि मथुरा में उनके घर के आंगन में एक कुआ था. शांतिदेवी ने यह भी बताया कि केदारनाथजी की दुकान द्वारकाधीश मंदिर के सामने हैं. अंत में वह अपने कमरे में गई और पैसे से भरा मटका निकालकर बताया.
जांच समिति ने यह निष्कर्ष निकाला था कि शांतिदेवी के रूप में ही लुग्दी देवी ने दूसरा जन्म लिया है. शांतिदेवी उम्रभर अविवाहित रही. उनके मन में यह दुख भी गहरा रहा कि उनके पूर्वजन्म के पति केदारनाथ ने उनके मरने के बाद दूसरा विवाह कर लिया.
बाद में शांतिदेवी खुद को सही साबित करने के लिए कई इंटरव्यू देती रही. उन्होंने अपना आखिरी इंटरव्यू अपनी मौत के चार दिन पहले दिया था, जिसमें उन्होंने लुग्दी देवी के दर्द को बयां किया था. जब वे अपने जीवन के अंतिम क्षणों में थी. शांतिदेवी का कहना था कि जब लुग्दी देवी अपनी देह त्यागने वाली थी तब उनके पति ने उनसे कई वादे किए. जिन्हें वे अब तक पूरा नहीं कर पाएं.
उल्लेखनीय है कि 18 जनवरी सन 1902 मथुरा के चत्रभुज में एक बालिका का जन्म हुआ था, जिसका नाम लुग्दी देवी रखा गया. जब वह 10 वर्ष की थी तो उनका विवाह मथुरा के कपड़ा व्यापारी पंडित केदारनाथ चौबे से कर दिया गया. कहते हैं कि लुग्दी देवी का पहला पुत्र मृत पैदा हुआ था. 25 सितम्बर 1925 को लुगदी देवी पुन: मां बनी उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, परन्तु 9 दिन बाद ही लुग्दी देवी की मृत्यु हो गई.
इसके बाद 11 दिसंबर 1926 को दिल्ली के एक छोटे मोहल्ले में बाबूरंग बहादुर माथुर के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम शांतिदेवी रखा गया. बताया जाता है कि शांति देवी की मौत 27 दिसंबर 1987 को हुई.