‘बस्तर बोलता भी है’ - वर्तमान दौर के प्रतिरोध का प्रतीक

संदीप कुमार

 |   28 Nov 2020 |   476
Culttoday

साहित्य की हर विधा अपने समय का प्रतिनिधित्व करती है. इसीलिए साहित्य केवल अपने शिल्प और कथ्य की वजह से ही नहीं बल्कि तथ्य की वजह से ऐतिहासिक दस्तावेज में भी परिवर्तित हो जाता है. ऐसी ही एक काव्य संग्रह ‘बस्तर बोलता भी है’ का शनिवार को नई दिल्ली में लोकार्पण किया गया. यह काव्य संग्रह प्रगतीशील किसान व कवि डॉ राजाराम त्रिपाठी द्वारा रचित है. डॉ त्रिपाठी की यह पांचवीं कृति है.

लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात पत्रकार व पर्यावरणविद् पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि ‘बस्तर बोलता भी है’ संग्रह केवल बस्तर नहीं बल्कि देश के सभी आदिवासी बहुल क्षेत्रों के जनमानस के प्रतिरोध का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि सिर्फ सस्ते चावल का लालच देकर सत्ता प्रतिष्ठान उनका जीवन हरण करने की परिपाटी पर वर्षों से चला रहा है औऱ अब आदिवासी जनसमूह सचेत हुआ है और अब अपने प्रतिरोध को सार्वजनिक तौर पर लाने लगा है. प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए पूरी दुनिया में सत्ता के साथ मिल कर पूंजीपति समूह उदात्त है, ऐसे में क्या बस्तर और क्या लोहरदगा, हर जगह इसकी वजह से समाज के वंचित व आदिवासी समूह अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है औऱ उस संघर्ष से उपजे आक्रोश की अभिव्यक्ति है डॉ राजाराम त्रिपाठी की यह काव्य संग्रह.

वरिष्ठ आलोचक डॉ संदीप अवस्थी ने कहा कि संग्रह की हर कविता एक अलग आयाम प्रस्तुत करती है, जिसके बरअक्श बस्तर को समग्रता के साथ देखा जाए. बस्तर केवल एक स्थान भर नहीं है बल्कि आदिवासी बहुल यह क्षेत्र अपनी गरिमामयी पंरपरा, प्रकृति प्रेम, अनूठी संस्कृति, सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा उपेक्षित और उपेक्षा के दंश से आक्रोशित समूह है.

कल्ट करंट के संपादक व कवि श्रीराजेश ने लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह काव्य संग्रह प्रतिरोध का सशक्त हुंकार है. उन्होंने कहा कि डॉ त्रिपाठी के इस संग्रह से पहले उनके पहले काव्य संग्रह ‘बस्तर बोल रहा है’ पर भी नजर दौड़ानी होगी.  ‘बस्तर बोलता भी है’ उसी संग्रह की अगली कड़ी है और वह भी पूरे विद्रोह के साथ. ‘बस्तर बोल रहा है’ के जरिये कवि ने वहां कि कथा-व्यथा को सामने लाने की कोशिश की थी लेकिन जब सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा बस्तर के सौम्य स्वर को नजर अंदाज किया जाता है तो फिर बस्तर हुंकारते हुए कहता है- ‘बस्तर बोलता भी है’. इन दोनों काव्य संग्रह के बीच की यात्रा लोकतंत्र के लोकविमुखता के पक्ष को निर्ममता के साथ उजागर करता है. संग्रह की एक कविता की चंद पंक्तियां- ‘उठा ले जाओ चाहे/ अपनी सड़कें, खंभे, दुकानें/ उठा ले जाओ चाहेये चमचमाती शराब की दुकानें/ बिना सांकल के बालिकाश्रम/ बिना डॉक्टर और दवाई के अस्पताल/ बिना गुरु जी के स्कूल/ बंद कर दो चाहे भीख की रसद.मखमली खोल के नीचे फटे ओढन को बेपर्दा करती है.

वरिष्ठ लेखक  व पत्रकार बृहस्पति कुमार पाण्डेय ने कहा कि इस संग्रह की कविताएं पढ़ते हुए बस्तर को समग्रता के साथ जानने-समझने की एक नई दृष्टि विकसित होती है. ‘बस्तर बोलता भी है’ यह पुस्तक डॉ. राजाराम त्रिपाठी द्वारा लिखित केवल काव्य संग्रह ही नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ के एक ऐसे जिले से मुलाकात है जिसके बारे में, उसमें रहने वाले आदिवासियों, उनकी समस्याओं, वहां की संस्कृति, संपदा, को भावों के साथ उकेरा गया है. इस पुस्तक में उस बस्तर का चित्रण किया गया है, जिसके बारे जानने की फुर्सत किसी को नहीं है. यह संग्रह आपको उस बस्तर से मिलवाती है जिसका सरकारों ने और पूंजीपतियों ने सिर्फ दोहन ही किया है.

वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से कोलकाता से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार व उपन्यासकार अनवर हुसैन ने कहा कि संग्रह की कविता बस्तर के भीतर सुलगते प्रतिरोध को प्रतिविंवित करती है. जहां आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन उनके अधिकार से निकल रहे हैं, उनके अधिकार को संकुचित किया जाना केवल किसी क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए एक चेतावनी है. थोथे सरकारी लोकलुभावन योजनाओं के जरिये आदिवासियों को ठगे जाने की सदियों से चली आ रही कुप्रथा को विरोध समय की मांग है.

कलकत्ता विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राम प्रवेश रजक ने कहा कि यह काव्य संग्रह दर्शाता है कि बस्तर को और वहाँ के रहने वाले भोले भाले लोगों को सरकारों ने सिर्फ ठगा ही है. डॉ राजा राम द्वारा रचित इस काव्य संग्रह की जो सबसे बड़ी ख़ासियत है वह यह है कि इस संग्रह की सभी रचनाओं में बस्तर के स्थानीय बोली, भाषा और संस्कृति का पुट झलकता है. यहां के बोली भाषा के शब्दों से संग्रह की कविताएं अलंकृत की गई है. मेला, मड़ई, घोटुल, मांदर, सोमारू, भतरी, हल्बी, मुंडेर, सरली, कुड़ी, कांदा, हाजून जैसे सैकड़ों शब्दों का प्रयोग कर बस्तर की आंचलिकता को जीवंत किया है.

समारोह को प्रोफेसर अखिलेश त्रिपाठी, वरिष्ठ आलोचक अजय चंद्रवंशी, रोहित आनंद सहित कई वक्ताओं ने भी समारोह को संबोधित किया. समारोह का संचालन वरिष्ठ बाल साहित्यकार कुसुमलता सिंह ने किया तथा सभी आगत अतिथियों का डॉ राजाराम त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम में जनजातीय चेतना के लिए समर्पित मासिक पत्रिका ककसाड़ के नवीनतम अंक का भी लोकार्पण किया गया.  संग्रह को दिल्ली की लिटिल बर्ड पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है.


RECENT NEWS

संवेदनाओं की छन्नी से छन कर निकले शब्द
बृहस्पति कुमार पाण्डेय |  26 Nov 2020 |  
दीवाली से जुड़े रोचक तथ्य
योगेश कुमार गोयल |  13 Nov 2020 |  
संतान के कष्ट हरता है अहोई अष्टमी व्रत
योगेश कुमार गोयल |  07 Nov 2020 |  
बेशर्म (लघुकथा)
डॉ पूरन सिंह |  06 Nov 2020 |  
नारी सब पर है भारी
पी के तिवारी |  21 Oct 2020 |  
अपने अपने राम
प्रज्ञा प्रतीक्षा तिवारी |  15 Oct 2020 |  
टूटता संयुक्त परिवार का ढ़ाचा
लालजी जायसवाल |  15 Oct 2020 |  
अभिनय के ऋषि
श्रीराजेश |  04 May 2020 |  
तुम लड़े और लड़े, खूब लड़े
श्रीराजेश |  04 May 2020 |  
कोरोना संकटः राजनीति फ्राम होम
कल्ट करंट डेस्क |  03 May 2020 |  
2019 में गई 38 बाघों की जान
कल्ट करंट डेस्क |  04 Jan 2020 |  
सरकार देगी शिक्षा की परीक्षा
संजय श्रीवास्तव |  03 Jan 2020 |  
देवताओं के संगीतकार व गायक तुम्बुरु
कल्ट करंट डेस्क |  02 Jan 2020 |  
भारत की भाषाई विविधता में एकता
बिभाष श्रीवास्तव |  04 Oct 2018 |  
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to editor@cultcurrent.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under Chapter V of the Finance Act 1994. (Govt. of India)