कभी आंसू, कभी ख़ुशी बेची हम गरीबों ने बेची बेबसी,
चंद सांसें खरीदने के लिए रोज थोड़ी सी जिन्दगी बेची...
कहने के लिए तो ये एक शायरी है लेकिन ये शब्द गरीबी के दर्द को बयां करते हैं. इस दर्द को हर कोई नहीं समझ सकता, ये बस वो ही समझ सकता है, जो भूख की तड़प को जानता हो, जिसने बच्चे को भूख से तड़प कर मरते देखा हो, औरत को इज्जत ढंकने के लिए कपड़े के कतरन को बटोरते देखा हो, गरीबी को बस वही समझ सकता है.
कहने के लिए गरीबों की बेबसी का सहारा लेकर हमारे देश की सरकारें खड़ी होती हैं लेकिन जब बात उनके लिए कुछ करने की आती है तो जाति के नाम पर आरक्षण दे दी जाती है. खैर ये तो सियासी बाते हैं. सरकार जो करती है उसका एक हिस्सा ही गरीबों तक पहुंचता है बाकी तो रास्ते में अमीरों के घर चला जाता है. ये सिलसिला तो चलता रहेगा.
भारत और पूरे विश्व में जहां भारत के वंशज बसे हैं वहां कई दिन पहले से ही दीपावली के दीपों भरे त्यौहार ने दस्तक दे दी है. घर-बाजार दीपावली के लिए सज गए, सजाए जा रहे हैं. खुशियों भरे संदेश देने का क्रम भी गति से चल रहा है. अपने-अपने साधनों और अपने तरीकों से लक्ष्मी पूजन की तैयारियां भी लगभग पूरी हो गई हैं. भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या में भी ऐसा लगता है इस वर्ष की दीपावली का प्रकाश अभूतपूर्व होगा. संभवत: दीपमाला वैसी ही होगी जैसी भगवान श्रीरामचंद्र जी के वनवास से लौटने के बाद और राज्याभिषेक की तैयारी के समय हुई थी. यूपी के मुख्यमंत्री के अनुसार इस दीपावली का स्वागत तीन लाख दीपकों से किया जाएगा और हजारों दीपक सरयू नदी में प्रवाहित करके दीपावली मनाई जाएगी. अब तो श्रीराममंदिर का निर्माण कार्य भी प्रारंभ हो गया. इसकी भी पहली दीवाली है.
दीपावली भारत का सांस्कृतिक त्यौहार है. लक्ष्मी पूजन और राष्ट्र की धन संपदा को बढ़ाने, उसका प्रदर्शन करने तथा बांट कर खाने का पर्व है. हम भारतवासी तमसो मा ज्योतिर्मय अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली संस्कृति के उपासक हैं, इसलिए हमारे अधिकतर त्यौहार दीप ज्योति प्रज्ज्वलन के साथ ही पूरे होते हैं और दीपावली तो है ही दीपावली, पूरे विश्व में असंख्य दीपक जलेंगे, वास्तव में यह केवल मिट्टी और तेल के दीयों का प्रश्न नहीं, यह भारत की गौरवमयी परंपरा को विश्व तक पहुंचाने का पर्व है. आज हमारी दीपावली अमेरिका की संसद में भी स्थान पा गई और विश्व के सभी बड़े देश और वहां के निवासी भारतीयों के साथ मिलकर दीपावली के हर्ष पर्व के भागीदार बनते हैं.अयोध्या जी में पांच लाख से ज्यादा दीपक जलें, पूरे देश के लिए यह गौरव के पल हैं. नगरों, महानगरों, गांवों और गलियों में जगमग दिखाई दे हर भारतीय यह चाहता है, पर हमारा एक उद्देश्य यह भी है- चलो जलाएं दीप वहां जहां अभी भी अंधेरा है. हमें और विशेषकर हमारी सरकारों को यह याद रखना होगा कि केवल बड़े-बड़े राजभवनों, मंदिरों, महलों को जगमगाकर दीपावली पूरी नहीं हो जाती. राम राज्य में आम जन की जो सुंदर, सुखद, स्वस्थ स्थिति थी, जब तक हम उसे पुन: भारत में स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं करते तब तक कैसी दीपावली. एक कवि ने बहुत सुंदर लिखा है- खिल जाएं अधर, हंस दें आंखें. ऐसा बसंत कब आएगा. आज का प्रश्न यह है कि वह दीवाली भी कैसी दीवाली जब आंखें फीकी पड़ी हों, होंठ भूख से सूखे हों, चेहरे मजबूरी में पीले पड़े हों और सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के बीस करोड़ से ज्यादा लोग रात को भूखे सोने पर मजबूर हों. यह पक्की बात है कि ये बेचारे उस दिन भी भूखे ही सोएंगे जिस दिन करोड़ों क्विंटल मिठाई का देन-लेन, धन संपन्न और सत्ता संपन्न लोगों द्वारा किया जाएगा. पर्व मनाने के नाम पर जब कुछ लोग लाल पानी पर ही करोड़ों खर्च कर देंगे उस समय बहुत से लोग अपने ही देश के अपने ही भारत बंधु एक घूंट स्वच्छ पानी के लिए भी तरसते जाएंगे और उस पानी को पिएंगे जिसे देखकर वे लोग नाक भौं सिकोड़ेंगे. जिनका कर्तव्य सबको स्वच्छ पानी और रोटी देना है. दीपावली के दिन कोई सहृदय देशवासी यह नहीं भूल सकेगा कि दुनिया के 117 देशों में जो भूख का आकलन किया गया उसमें भारत 94वें स्थान पर है अर्थात अभी भारत के करोड़ों लोग कुपोषित और भूखे हैं.
दीपावली उनके लिए तो उजाले वाली होती है जिनके पेट में रोटी, रहने के लिए छत और भविष्य प्रकाश में दिखाई देता है, पर हमारे देश में और अपने पंजाब में हजारों कर्मचारियों के लाखों परिवारों के सदस्यों के साथ सरकारें धोखा भी करती हैं. पहले बादल सरकार ने और उसके बाद एक दीपावली पर वर्तमान पंजाब सरकार ने ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों को रोशनी का संदेश दिया था. उनकी नौकरी पक्की होगी और समानता के आधार पर मेहनत का फल मिलेगा. वैसे भी तो हमारे देश के न्याय और संविधान का यही संदेश है कि एक जैसाा काम, एक जैसा वेतन. यह असमानता और विषमता का अंधेरा कोई सरकार दूर नहीं कर पाई. इस दीपावली को कर देगी, इसका उत्तर भी अंधेरे में है. सरकारी खजाना खाली होने का नाम लेकर जो कुछ बचा उस पर सरकारें कुंडी मारकर बैठ गईं, पर शासकों-प्रशासकों, नेताओं के घरों में दीपावली की रोशनी बढ़ाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है. कुछ नया देने के स्थान पर बेचारे ठेका कर्मचारियों के वेतन में से भी सरकार अपना विकास करने के नाम पर 200 रुपया प्रतिमाह काट रही है. संभवत: उनको यही सरकारों की ओर से दीपावली गिफ्ट है. जितना छीन सकते हो उतना छीन लो, पर उनसे जिनकी थाली कई बार बिना रोटी खाली होती है.
भारत सरकार के सरकारी आंकड़े तो काफी बढिय़ा दिखाई देते हैं. हमें यह जानकारी दे दी गई है कि हम विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं. ताजा सुखद जानकारी सरकारों के अनुसार यह है कि अब हमारे देश में विदेशियों के लिए भी व्यापार, उद्योग लगाने आसान हो गए, क्योंकि हम इस रैकिंग में भी 100वें स्थान से एकदम हाई जंप करके 77वें स्थान पर पहुंच गए हैं. अपनी ही सरकार का यह भी आंकड़ा है कि भारत की लगभग तीस प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है.क्या दीपावली पर हमारी सरकारों के लिए यह संभव होगा कि राम राज्य जैसी दीपावली मनाने से पहले इन बेचारों को गरीबी से मुक्ति तो नहीं दे सकते, कम से कम गरीबी रेखा से ऊपर तो ले आएं. अब तो लाकडाउन के बाद देश की गरीबी का जो हृदयविदारक दृश्य देखने को मिला उससे तो दीपावली की रोशनी रोशनी ही नहीं लगती. चिंता यह भी करनी है कि सुरक्षा बलों के जो जवान शहीद होकर तिरंगे में लिपटे संसार से चले गए उन परिवारों की दीपावली कैसी होगी. कुछ घर तो ऐसे हैं जहां करवाचौथ के दिन शहीद की अर्थी पहुंची, चीख पुकार मची. बच्चे अनाथ हो गए. बुढ़ापा बेसहारा और जवानी लडख़ड़ा गई. जब तक उन शहीद परिवारों को पूरा देश अपनाकर उनका दुख दर्द नहीं बांटता, खुशी की एक किरण उनके दरवाजे पर नहीं पहुंचती, तब तक दीपक तीन लाख जलाओ या तीन करोड़ वहां अंधेरा दूर नहीं हो सकता. दीवाली देश मनाएगा, दुनिया मनाएगी पर यह संकल्प तो रखना चाहिए कि दीपावली के बाद देश में राम राज्य आता है. त्रेता युग की गाथा यह है. राम जी के देश के बच्चे अगर किसी स्कूल की दहलीज पर बैठकर दूसरे बच्चों को शिक्षा पाते और स्वयं वंचित रह जाने की पीड़ा झेलते रहेंगे तो दीवाली का आनंद निश्चित ही फीका पड़ जाएगा. भूखे पेट दीवाली नहीं होती. राम राज्य में न कोई भूखा था न अनपढ़. इसलिए संकल्प लीजिए कि राम जी के वनवास से लौटने की खुशी में और राम राज्य की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला दीपावली का पर्व देश के उन लोगों की आंखों में भी एक नई ज्योति लाने का प्रबंध करे जिससे यह भी लगे कि सचमुच ही दीपावली हर घर के हर आंगन के दीपों का त्यौहार है और आंखों में खुशी के दीपक जगमगाए बिना दीपावली का अर्थ अधूरा ही रह जाता है.
स्टेशन के प्लेटफार्म पर सोये, लुटते, पिटते, बेसहारा बच्चों की आंखों में किसी रोशनी की उम्मीद में अंधेरा है. देश के बड़े-बड़े महानगरों में स्लम कोई छोटे नहीं वे भी इस स्लम की विभीषिका से निकलने की प्रतीक्षा में हैं. भारत जैसे देश में वेश्यालयों में भारत की लाखों बेटियां नारकीय जीवन के अंधेरों में सदियों से पड़ी हैं. ऐसा दीपक अभी कोई नहीं जला जो उन्हें इस अंधेरे से निकाल सके. होना तो यह चाहिए कि अब जो नए दीपक जल रहे हैं, जो नए भवन, विशाल प्रतिमाएं, विश्व स्तरीय एयरपोर्ट या सुख सुविधा संपन्न गाडिय़ां चलाने से पहले उन्हें एक-एक किरण रोशनी की दिखाई जाए जो आज तक जानते ही नहीं कि दीप क्या है, प्रकाश क्या है, दीपावली क्या है.