‘बस्तर बोलता भी है’ यह पुस्तक डॉ. राजाराम त्रिपाठी द्वारा लिखित केवल काव्य संग्रह ही नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ के एक ऐसे जिले से मुलाकात है जिसके बारे में, उसमें रहने वाले आदिवासियों, उनकी समस्याओं, वहां की संस्कृति, संपदा, को भावों के साथ उकेरा गया है. इस पुस्तक में उस बस्तर का चित्रण किया गया है, जिसके बारे जानने की फुर्सत किसी को नहीं है. लेकिन इसी के बीच पढ़े -बढ़े डॉ. राजराम त्रिपाठी ने बैंक की नौकरी को छोड़ कर आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए जद्दोजहद करने की जो कोशिश की है. उन्होंने बस्तर में रहते हुए यहां जो देखा और महसूस किया है. उसे बड़ी ही बारीकी और संवेदनाओं के साथ इस पुस्तक में अपने शब्दों से उकेरा है.
इस काव्य संग्रह की पहली कविता "मैं बस्तर बोल रहा हूँ" आपको उस बस्तर से मिलवाती है जिसका सरकारों नें और पूंजीपतियों ने सिर्फ दोहन ही किया है. इस कविता की कुछ लाइनें इसे जीवंत कर देती हैं-
लोहा, लकड़ी, महुआ, मेवा, लांदा, सल्फी घोटुल सेवा,
सब कुछ बिना मांगे देता हूँ.
नहीं किसी से कुछ लेता हूँ,
अपनी धुन में खुश रहता हूँ,
जल जंगल जमीन के बदले ,
मुफ़्त का चावल तौल रहा हूँ.
हाँ मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
इसके अलावा इस संग्रह की दूसरी कविता "कैसा मेरा देश महान ? गांवों के बदलते हालात के बीच वास्तविक हालात पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है. इस संग्रह की अगली कविताएं "सोमारू की सुबह", और "सोनचिरैया" वर्तमान के जिन हालतों को बयां करती है वह दिल में नस्तर की तरह चुभती है.
संग्रह की कविता "फैसला लेना ही होगा" बस्तर के शोषण और वहाँ के जल, जंगल और जमीन के दोहन की तस्वीर पेश करती है. उन्होंने अपनी कविता मुझे मेरा बस्तर कब लौटा रहे हो के जरिये यह दिखाने की कोशिश की है कि वहां के हालात कितने गंभीर हैं. इस कविता की लाइनें-
उठा ले जाओ चाहे,
अपनी सड़कें, खंभे, दुकानें.
उठा ले जाओ चाहे,
ये चमचमाती शराब की दुकानें,
बिना सांकल के बालिकाश्रम,
बिना डॉक्टर और दवाई के अस्पताल,
बिना गुरु जी के स्कूल.
बंद कर दो चाहे भीख की रसद,
यह कविता दर्शाती है कि बस्तर को और वहाँ के रहने वाले भोले भाले लोगों को सरकारों ने सिर्फ ठगा ही है.
इस कविता संग्रह की बाकी कविताएं सस्ता चावल, मैं कविता नहीं लिखता, आंगन की तुलसी, इंद्रावती के बहाने,माँ, अक्स, मुखौटे, कौन हो तुम लोग , गोरैया, मौत, सच, बीज, झूठ-सच, वजह, तलाश, मेरे मुँडेर पर सहित सभी कविताएं एक से बढ़ कर एक है.
डॉ राजा राम द्वारा लिखित इस काव्य संग्रह की जो सबसे बड़ी ख़ासियत है वह यह है कि इस संग्रह की सभी रचनाओं में बस्तर के स्थानीय बोली, भाषा और संस्कृति का पुट झलकता है. उन्होंने यहां के बोली भाषा के शब्दों से भी अपनी कविता को सजाया और सवांरा है. मेला, मड़ई, घोटुल, माँदर, सोमारू, भतरी, हल्बी, मुंडेर, सरली, कुड़ी, कांदा, हाजून जैसे सैकड़ों शब्दों का प्रयोग कर बस्तर की आंचलिकता को जिंदा कर दिया है.
इस संग्रह की कविताएं बोरियत का एहसास कभी भी नहीं होने देती हैं जैसा कि हमें अधिकांश कविता संग्रहों के पढ़ने पर महसूस होता है. इस लिए जो भी इस संग्रह को एक बार पढ़ना शुरू करता है वह जब तक सभी कविताएं पढ़ नहीं लेता है तब तक चाह कर भी किताब के पन्नों को बंद नही कर पाता है.
इस संग्रह का आवरण पृष्ठ बेहद आकर्षक है. इसके आवरण पृष्ठ पर छतीसगढ़ ख़ासकर बस्तर क्षेत्र के कलाकृतियों का मनमोहक चित्र बरबस ही अंदर के पन्नों में झांकने को मजबूर कर देता है. वैसे इसका आवरण पृष्ठ ही नहीं बल्कि अंदर के पन्नों में भी बस्तर के चित्रों के जरिये बस्तर के संस्कृति और कलाओं की झलक देखने को मिलती है.
डॉ राजराम त्रिपाठी जी ने बस्तर के बादलाव के लिए किए जा रहे प्रयासों के बीच जो कुछ देखा, सुना और महसूस किया है उसे हूबहू शब्दों के जरिये कागज के पन्नों पर उतार दिया है.
इस काव्य संग्रह को लेकर अगर सम्पूर्ण दृष्टि से कहा जाए तो अगर आप बस्तर को समझना चाहते हैं तो इस पुस्तक को जरूर पढ़ें.
पुस्तक - बस्तर बोलता भी है.... (काव्य संग्रह)
लेखक- डॉ. राजराम त्रिपाठी
प्रकाशक- लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
पुस्तक मूल्य- ₹ 200/-