पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के प्रसिद्ध स्टार थिएटर का नाम बदलकर बिनोदिनी थिएटर करने का निर्णय लिया है। यह फैसला बंगाली रंगमंच की अग्रणी महिला कलाकार बिनोदिनी दासी को सम्मानित करने के लिए लिया गया है। बिनोदिनी, जो कोलकाता के रेड-लाइट इलाके से निकलकर रंगमंच पर अपनी पहचान बनाने वाली पहली महिला थीं, समाज द्वारा बहिष्कृत कर दी गई थीं। इस ऐतिहासिक निर्णय को थिएटर जगत ने पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ एक बड़ी जीत माना है।
बिनोदिनी दासी का संघर्ष और योगदान
बिनोदिनी दासी का नाम बंगाली रंगमंच के इतिहास में अमिट है। 21 जुलाई, 1883 को गिरीश चंद्र घोष के मार्गदर्शन में बीडन स्ट्रीट पर एक थिएटर स्थापित किया गया। इस थिएटर का पहला प्रदर्शन बिनोदिनी अभिनीत 'दक्षयज्ञ' था। इसके बावजूद, थिएटर का नाम उनके नाम पर नहीं रखा गया। सामाजिक विरोध के कारण उन्हें वह मान्यता नहीं मिली जिसकी वे हकदार थीं।
चार साल बाद, जनवरी 1887 में, बिनोदिनी ने स्वेच्छा से थिएटर से अलग होने का फैसला किया। उनके योगदान को रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों का आशीर्वाद भी मिला, जिन्होंने 'चैतन्य लीला' के प्रदर्शन के दौरान बिनोदिनी और उनके सह-अभिनेताओं को सराहा।
ममता बनर्जी का फैसला
एक सार्वजनिक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने इस बदलाव की घोषणा करते हुए कहा, "यह हमारी माताओं और बहनों को सम्मान देने का प्रयास है।" उनकी घोषणा के तुरंत बाद, कोलकाता नगर निगम ने इस फैसले को औपचारिक रूप देते हुए अधिसूचना जारी की। कोलकाता के मेयर फरहाद हकीम ने इसे बिनोदिनी के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय का सुधार बताया।
नाम बदलने के पीछे का ऐतिहासिक संदर्भ
1883 में बीडन स्ट्रीट पर बने पहले थिएटर का नाम कई बार बदला गया। इसे एमराल्ड, कोहिनूर, और मनमोहन थिएटर के नामों से जाना गया, लेकिन 1931 में सेंट्रल एवेन्यू के विस्तार के दौरान ब्रिटिश सरकार ने इसे ध्वस्त कर दिया। वर्तमान स्टार थिएटर, जिसे अब बिनोदिनी थिएटर कहा जाएगा, दिसंबर 1887 में बिधान सरानी पर स्थापित हुआ था।
दर्शकों और कलाकारों की प्रतिक्रिया
बिनोदिनी के जीवन पर आधारित नाटक 'बिनोदिनी ओपेरा' में उनकी भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री सुदीप्ता चक्रवर्ती ने कहा, "यह फैसला हमारी लंबी मुहिम की जीत है। दर्शकों ने हमेशा थिएटर का नाम बिनोदिनी के नाम पर रखने का समर्थन किया। यह कदम पितृसत्तात्मक सोच पर तमाचा है।"
रंगमंच व्यक्तित्व अर्पिता घोष ने उम्मीद जताई कि नाम बदलने के बाद थिएटर में नाटकों की संख्या बढ़ेगी। वहीं, थिएटर का प्रबंधन करने वाले जॉयदीप मुखर्जी ने बताया कि अब तक एक नाटक के लिए 7,000 रुपये किराया लिया जाता था और संग्रह पर कोई हिस्सा नहीं रखा जाता था।
एक नई शुरुआत
इस फैसले ने बंगाली रंगमंच को उसकी जड़ों से जोड़ते हुए बिनोदिनी दासी के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारा है। यह कदम केवल एक नाम बदलने का फैसला नहीं, बल्कि बंगाली रंगमंच के इतिहास और महिलाओं के सम्मान की पुनर्स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।