उनका सफर मध्य दिसंबर में सैन फ्रांसिस्को में समाप्त हुआ, जहां वे एक दुर्लभ फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे थे। लेकिन उनका धरोहर... उनका संगीत... हमेशा जीवित रहेगा, करोड़ों दिलों में गूंजता रहेगा। उस्ताद जाकिर हुसैन के जाने से भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक सुनहरे युग का अंत हो गया है। उनका तबला सिर्फ़ एक वाद्य नहीं था; यह उनकी आत्मा का विस्तार था। हर ताल, हर स्ट्रोक में सदियों पुरानी परंपरा की समृद्धि झलकती थी, और इसे उन्होंने एक आधुनिक जीवंतता के साथ जोड़ा जो सीमाओं से परे थी। उस्ताद अल्ला रक्खा के वंश में जन्मे, जाकिर हुसैन की महारत सिर्फ़ तबला वादन में निरंतरता ही नहीं थी – वास्तव में, शास्त्रीय संगीत का एक पुनर्जागरण था।
हुसैन के हाथ तबले पर जब नाचते थे, तब ऐसी लय सृजित होती थी, जो श्रोता की आत्मा से सीधे संवाद करती थी। जॉर्ज हैरिसन और जॉन मैकलॉघलिन जैसे दिग्गजों सहित अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ उनके सहयोग ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को जैज़, रॉक और विश्व संगीत के साथ मिलाकर पूर्व और पश्चिम को एक तार में जोड़ने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया। यह फ्यूजन महज़ प्रयोग नहीं था - यह संस्कृतियों के बीच दिल से किया गया संवाद था, जहाँ तबला सार्वभौमिक सद्भाव की आवाज़ था। फिर भी, वैश्विक प्रसिद्धि के बीच, वे शास्त्रीय संगीत के सच्चे संरक्षक बने रहे। शांत, मंद रोशनी वाले हॉल में उनके प्रदर्शन ने कालातीत राग परंपराओं को जगाया, क्योंकि उनका तबला तानपुरा और सितार के साथ इस तरह से संवाद करता था कि दर्शक तो मंत्रमुग्ध हो जाते थे। इन प्रदर्शनों में एक अंतरंगता थी, जैसे कि उनके द्वारा बजायी गई प्रत्येक ताल ब्रह्मांड के साथ प्रतिध्वनित हो रही हो, जो प्राचीन और शाश्वत दोनों को बुला रही हो। उनकी उपस्थिति चुंबकीय थी - न केवल उनकी विलक्षण प्रतिभा के लिए, बल्कि उसके साथ जुड़ी विनम्रता के लिए भी। उनकी आंखों में चमक, शरारती मुस्कान जो तब दिखाई देती थी जब वे विशेष रूप से जटिल लय बजाते थे, उन्हें लाखों लोग पसंद करते थे, वे लाखों संगीत प्रेमियों के चहते थे। वह एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने संगीत को तो गंभीरता से लिया, लेकिन कभी खुद को नहीं।
जाकिर हुसैन ने जो कुछ पीछे छोड़ा है वह रिकॉर्डिंग या प्रदर्शन से कहीं अधिक है; यह गहन संगीत संवाद की विरासत है। उन्होंने दुनिया को दिखाया है कि संगीत एक ऐसी भाषा है जो शब्दों से परे है भले ही अब उनके हाथ तबला की शोभा न बढ़ा सकें, वह चीर-परिचीत लय कानों में मिसरी न घोल सके, लेकिन उनका यादें सदैव जेहन में रहेगा, संगीत के हृदय में एक शाश्वत लय बनी रहेगी।