समय, संघर्ष, साहित्य और किसान

जलज वर्मा

 |  20 Apr 2017 |   183
Culttoday

किसान से जुडे किसी साहित्य की बात की जाती है तब सब के समक्ष एक ही नाम उपस्थित होता है, और वह है ''होरी''. मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखे गए उपन्यास का नायक ''होरी''. प्रेमचंद जी का यह उपन्यास कृषक जीवन का महाकाव्य कहा गया है. प्रेमचंद जी की एक और रचना जो गोदान से पहले लिखी गई वो है प्रेमाश्रय जिसमें जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण का उल्लेख था. वे उनकी पीड़ा, शोषण, कठिनाइयों से भली-भांति अवगत थे और चाहते थे कि जमींदारी प्रथा समाप्त हो जो किसानों के शोषण के लिए बहुत कुछ उत्तदायी थी.

      उस समय सभी किसानों की हालत कमोवेश होरी जैसी थी. आज समय बदल चुका है. फिर भी किसान की बात की जाए तो किसान को अपनी 'मरजाद (मर्यादा, इज्जत) की चिंता आज भी उसी प्रकार बनी हुई है, जिस प्रकार गोदान में होरी के साथ दिखाया गया है.

आज का युग मशीनी युग, कल कारखानों का युग या यूं कहें कि औद्योगीकिकरण का युग हो गया है. हर तरफ बड़े-बड़े उद्योगों का निर्माण किया जा रहा है. विशाल भवनों का निर्माण किया जा रहा है. ये सभी कार्य परिवर्तित समय की मांग है. मनुष्य निरंतर संघर्ष कर रहा है औऱ जीवन यापन कर रहा है. मनुष्य में सभी बुद्धिजीवी सम्मिलित है, जिसमें किसान भी है. अनाज उत्पन्न करना किसान द्वारा किया जाने वाला व्यवसाय है. यह व्यवसाय प्रत्येक के जीवन को किसी ना किसी तरह से प्रभावित करता है.

ग्रामीण क्षेत्रों का मुख्य व्यवसाय खेती है. किसान पहले कम पढ़े लिखे थे, अतः उन्हें सेठ साहुकारों के शोषण का शिकार होना पड़ता था. आज समय बदल गया है. किसान भी शिक्षा से जुड़ रहे हैं. पर अब समस्या ये आ रही है कि किसान के पढ़े लिखे बच्चे खेती किसानी का कार्य नहीं करना चाहते, वे शहरों की चकाचौध से प्रभावित हो रहे हैं. अगर इसी तरह नव युवक किसानी को अपनाने से इनकार कर दे तो एक दिन कृषकों की संख्या ऊंगलियों पे गिनी जा सकेंगी.

आज किसान औद्योगिकीकरण के प्रभाव से नहीं बच पा रहा है. किसानों को अपनी जमीन के बदले अच्छी धनराशि प्राप्त हो रही है, जिससे वे अपनी जमीन बेंच रहे है. आज भी किसान उद्योग पतियों के शोषण वह उपेक्षाओं का शिकार हो रहे हैं.

किसान का अर्थ क्या मजदूर है या फिर समाज में कम दर्ज का काम करने वाला व्यक्तित्व. यदि विद्यालय में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को पूछा जाता है कि आप बड़े होकर क्या बनेंगे तो हमें जवाब में इंजिनीयर, डॉक्टर, साइंटिस्ट, पायलट, क्रिकेटर इत्यादि जवाब प्राप्त होते हैं. क्या कभी कोई कहता है कि मुझे किसान बनना है? विद्यालय के उन विद्यार्थियों में लगभग 40 से 50 प्रतिशत बच्चे किसान परिवार से होते हैं पर फिर भी वह अपने पिता के इस कार्य को आगे बढ़ाना नहीं चाहते. आखिर क्यों?

जब एक व्यापारी का पुत्र बड़ा हो कर व्यापारी, उद्योगपति का पुत्र उद्योगपति बन सकता है तो एख किसान का पुत्र किसान क्यों नहीं बनना चाहता. क्या है कोई जवाब?

समय के साथ बदलते परिवेश में किसान का स्थान कहीं लुप्त होता जा रहा है. कुछ एक को छोड़ दें तो अधिकांश किसानों की हालत दयनीय बनी हुई है. जहां साहित्यकार एक ओर बदलते समय के साथ संघर्ष कर रहा है और अपना समय साहित्य सृजन में लगा रहा है, तो क्या उसका ध्यान किसान को हिम्मत बंधाने वाले साहित्य लिखने की ओर आकर्षित नहीं किया जा सकता.

हर दिन एक किसान की आत्महत्या का समाचार अखबार में छप जाता है. सबकों एक बात समझ में आती है कि अमुक गांव में अमुक किसान ने आत्महत्या कर ली, पर क्या कोई उस आत्महत्या के कारण को जानना चाहता है? क्यों किसान इतना मजबूर हो जाता है कि उसे यह कृत्य करना पड़ता है. उसका परिवार बिखर जाता है औऱ कोई उसे सांत्वना देने से ज्यादा कुछ नहीं करता है. संतोष कौशिक की ‘अभियान गीत माला’ की एक कविता किसानों की इस त्रासदी को रेखांकित करते हुए तीखे सवाल खड़ी करती है. इस कविता में संपूर्ण कृषण जीवन को चित्रित किया गया है. बताया गया है कि किस प्रकार उसे कष्टों का सामना करना पड़ता है. संघर्षरत रहना पड़ता है.

समय के बदलने के साथ-साथ संघर्षरत किसान अपना अस्तित्व ना खो दें. इस बात का ध्यान रखना और उसकी समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उसे साहित्य के माध्यम से उजागर करना हमारा दायित्व होना चाहिए. नवयुवकों को भी इस ओर आकर्षित करने वाले लेख को बढ़ावा देना होगा. बताना होगा कि समय चाहे कितना भी बदल जाए मनुष्य की आवश्यकताएं कुछ बातों लेकर एक जैसी होनी चाहिए. किसान के संतानों को उसी व्यवसाय को नए ढंग से करने का सुझाव साहित्य के माध्यम से दिया जा सकता है. – “जय जवान – जय किसान” यह नारा केवल नारा न बना रहे बल्कि किसान की सच में जय-जयकार होनी चाहिए. यहीं हमारा मानना है.


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