भारत का एक गणराज्य के रूप में उदय अभी हाल की बात है. लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप की प्रशासनिक इकाइयाँ, क़बीले, रजवाड़े आपस में बात तो लगातार करते रहे, सदी-दर-सदी. यह तब की बात होगी जब भारत में अंग्रेज़ी का पदार्पण नहीं हुआ था. और संस्कृत कभी भी आम बोलचाल सी भाषा नहीं रही. आज जब भी भाषाओं की बात होती है तो उत्तर भारत के लोग आँख-मूँद कर द्रविड़ भाषाओं को अलग मान लेते हैं और इस प्रकार से एक प्रकार के अलगाव की रेखा खींच देते हैं कि द्रविड़ भाषाएँ अलग हैं और उत्तर भारत की भाषाएँ अलग हैं. इस अलगाववाद में खाद पानी डाला अंग्रेज़ों ने एक नया जुमला ‘भारोपीय भाषा वर्ग’ का छोड़कर. और पूरा उत्तर भारत अपने को यूरोप का आर्य प्रतिनिधि मान कर मगन है - हुँह द्रविड़ भाषाएँ भी कोई भाषा हैं!
अभी हाल में एक ऑनलाइन समाचार चैनेल ने गोंडी भाषा में समाचार का प्रसारण शुरू किया. इस लेखक ने ग़ौर से सुना और हतप्रभ रह गया कि यह तो तमिऴ से मिलती जुलती भाषा है. उत्सुकता मिटाने के लिए इंटरनेट की सहायता ली गई. इस लेख में जो भी बातें हैं कोई पहली बार नहीं कही जा रही होंगी. कई शोध छात्र गोंडी भाषा पर रिसर्च करके अपनी थीसिस जमा कर चुके होंगे, और किसी न किसी विश्वविद्यालय में अध्यापन भी कर रहे होंगे. लेकिन किसको मालूम कि गोंडी भाषा है भी कि नहीं और है भी तो उसका क्या स्वरूप है. यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत का उत्तरी हिस्सा और खासकर हिंदी भाषी हिस्सा अपनी भाषा के घमंड में चूर रहते हुए दूसरी भाषाओं पर टीका-टिप्पणी किया करता है. जबकि तथ्य और सत्य है कि हिंदी का जन्म अगर भारत की अन्य भाषाओं के समक्ष रखी जाए तो हिंदी का अभी जन्म ही हुआ है.
यह लेखक भाषा वैज्ञानिक नहीं है इसलिए किसी भी त्रुटि को बहस में लाया जा सकता है. गोंड का मतलब है पहाड़ों पर रहने वाले लोग. उनका मूल घर गोंडवाना क्षेत्र रहा है. गोंड जनजाति जो भाषा बोलती है उसे गोंडी कहते हैं. अभी हाल में ही सन् 2011 की जनगणना के आधार पर भाषाई जनगणना का प्रकाशन किया गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार गोंडी भाषा परिवार को बोलने वाली जनसंख्या 2984453 है. गोंडी परिवार में शामिल भाषाओं के नाम हैं डोर्ली, गोंडी, कलरी, मरिया/मुरिया आदि. अकेले गोंडी भाषा बोलने वालों की जनसंख्या 2856581 है. ग़ौरतलब बात यह है कि गोंडी भाषा बोलने वालों की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. सन् 1971 में गोंडी बोलने वालों की जनसंख्या 1688284 थी और वर्ष 2001 से 2011 के बीच इनकी जनसंख्या में 9.97 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई. वर्ष 1991-2001 के बीच तो इनकी जनसंख्या में बढोत्तरी 27.72 प्रतिशत के दर से हुई. जनसंख्या और उसकी वृद्धि दर को ध्यान में रखते हुए इस भाषा का विशेष अध्ययन किया जाना चाहिए. गोंडी भाषा को जनसंख्या जनगणना में द्रविड़ भाषाओं के वर्ग में रखा गया है. इस भाषा को बोलने वाली जनसंख्या का लगभग तिहत्तर प्रतिशत छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में रहती है, लगभग पन्द्रह प्रतिशत महाराष्ट्र में और सात प्रतिशत आन्ध्र प्रदेश में. अगर जनसंख्या जनगणना को देखें तो कश्मीर से कन्याकुमरी और गुजरात से नागालैंड तक गोंडी बोलने वाले लोग फैले हुए हैं. अन्य राज्यों में फैले हुए गोंडी-भाषी लोग नौकरी-मजदूरी के लिए गए हुए लोग हो सकते हैं. लेकिन ध्यान देने की बात है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हिंदी भाषी राज्यों में गिना जाता है और उत्तरप्रदेश और बिहार की नाक के नीचे यह द्रविड़ भाषा बोली जाती है. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में गोंडी बोलने वालों की अच्छी-खासी तादाद मिलेगी. सोनभद्र वाराणसी के बहुत ही नज़दीक है. वह बनारस जहाँ भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने आज के खड़ी बोली की नींव रखी. शुद्ध द्रविड़ राज्य जहाँ गोंडी बोलने वाले लोग काफ़ी संख्या में रहते हैं वह आन्ध्र प्रदेश है. तो यह सीधा सिद्ध होता है कि उत्तर भारत जिसे “भारोपीय” भाषा का गढ़ बोला जाता है वहाँ पर ऐन उसके दिल में द्रविड़ भाषा बसती है.
द्रविड़ भाषा वर्ग में होने के कारण गोंडी भाषा और तमिऴ और कन्नड़ भाषाओं में अचरज में डालने वाली समानता है. गोंडवाना का इतिहास अगर देखें तो मराठों ने कभी इनको पराजित कर वहाँ राज किया. इस प्रकार गोंडी मराठी से भी घुल-मिल गई. आन्ध्रप्रदेश की सीमा छत्तीसगढ़ से लगती है तो साधारण सी बात है कि इसमें तेलुगु का छौंका भी है. यह लेखक तीन साल तटीय कर्नाटक के इलाक़े में रहा जहाँ की मुख्य भाषा कन्नड़ तो है ही, तुऴु भी एक भाषा है जिसको बोलने वालों की अच्छी-खासी तादाद है. लेखक ने कन्नड़ और तुऴु में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को सीधे-सीधे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की हिंदी में इस्तेमाल होते देखा है. इतने शब्द हैं कि इसी पर एक पीएचडी हो सकती है. ऐसा लगता है कभी कन्नड़-तुऴु भाषा-भाषी और बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग ज़रूर साथ रह कर दोसा-इडली या बाटी-चोला खाए होंगे. गोंडी के बारे में जानने के बाद यह स्पष्ट है कि गोंडी और ऐसी ही अन्य द्रविड़ भाषाएँ हिंदी-भाषी और द्रविड़ भाषी इलाकों के बीच पुल का काम करती रहती हैं.
भाषा वैज्ञानिक बताएँगे कि गोंडी एक प्राकृत से जन्मी भाषा है जैसे कि हिंदी या अन्य उत्तर भारतीय भाषाएँ हैं. ग़ौर करें तमिऴ, कन्नड़ और गोंडी में संख्याओं के नामकरण पर:
हिंदी गोंडी तमिऴ कन्नड़
एक उंडी ऒन्दु ओंदु
दो रंड इरंडु ऎरडु
तीन मूंद मून्ऱु मूरु
इसी तरह से आगे भी गिनती में जबरदस्त समानता है. होगी भी क्योंकि द्रविड़ परिवार की यह भाषा है. संज्ञा और सर्वनाम पूरी तरह से द्रविड़ पद्धति में है. लेकिन वाक्य रचना पूरी तरह से हिंदी से मिलती जुलती है. मैं के लिए द्रविड़ भाषाओं के नानु, नेनु, नान् की तरह नाना है. तुम के लिए निमा है जैसे कि कन्नड़ में निम्म है. लेख बड़ा न हो जाए इसलिए व्याकरण विस्तार को यहीं छोड़ते हैं.
भाषाएँ इन्द्रधनुष की तरह होती हैं जो एकाएक रंग नहीं बदलती हैं. भाषाएँ अपने पूरे स्पेक्ट्रम पर धीरे धीरे रंग बदलते हुए एक दूसरे में विलीन होती रहती हैं. इस प्रकार भारत नाम के भू-भाग में संदेश-बात एक इलाक़े से दूसरे इलाक़े तक यात्रा करती रहे. भारत की सारी भाषाओं का वाक्य-विन्यास एक है, पद-विन्यास एक सा है, साझा शब्दकोश है लेकिन हमारी भाषाएँ बँटी हुई हैं. भारतीय भाषाओं के बीच अलगाव का इतिहास लिखा जाना चाहिए. जैसा कि ऊपर लिखा गया है और जो सबसे स्पष्ट प्रमाण है अट्ठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ों द्वारा द्रविड़-भारोपीय भाषा वर्ग का आरोपित सिद्धांत. भारतीय भू-भाग के लोग उस समय से बात करते रहे हैं जब अंग्रेज़ी नहीं थी और तब जब संस्कृत आम बोलचाल की भाषा कभी नहीं रही.
उत्तर भारतीय भाषा-भाषियों ख़ासकर हिंदी भाषा-भाषियों को अपने अन्तर में झाँककर सोचना होगा कि क्या हम उत्तर-द्रविड़ में बँटे हुए हैं? गोंडी बताती है कि हम एक-ज़बान थे, हैं और रहेंगे.