रंगमंच के एक स्वर्णिम अध्याय का समापन

जलज वर्मा

 |  04 May 2020 |   110
Culttoday

पश्चिम बंगाल में रहकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी रंगमंच को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाली उषा गांगुली अब इस संसार में नहीं हैं. उनका 23 अप्रैल 2020 की सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे दक्षिण कोलकाता स्थित अपने फ्लैट में अकेले रहतीं थीं. उषा गांगुली का एक बेटा भी है. उनके पति कमलेन्दु की कुछ साल पहले मौत हो चुकी है. तीन दिन पहले उषा गांगुली के भाई का निधन हो गया था. उषा मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली थीं लेकिन उनका जन्म राजस्थान में हुआ था और उनकी सारी पढ़ाई लिखाई कोलकाता में हुई थी. वे मूल रूप से कानपुर के पास नर्वा गांव की थीं. उन्होंने 1976 में 'रंगकर्मी' नाट्य ग्रुप की स्थापना की थी. महाभोज, लोककथा, होली, कोर्ट मार्शल, रुदाली, हिम्मत माई, मुक्ति, अंतर्यात्रा, काशीनामा, सरहद पार मंटो जैसे नाटकों में अपने अभिनय-निर्देशन के लिए वे जानी जाती थीं. वे 'भरतनाट्यम' की नृत्यांगना भी थीं. उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला था. उषा गांगुली ने गौतम घोष की हिंदी फिल्म 'पार' में भी अभिनय किया था. निर्देशक ऋतुपर्णो घोष की हिंदी फिल्म 'रेनकोट' की पटकथा उषा गांगुली ने लिखी थी. उन्हें बांग्ला और हिंदी सांस्कृतिक दुनिया के बीच का सेतु माना जाता था. बंगाल में उनके दर्शकों ने बांग्ला समुदाय के लोग अधिक होते थे. बंगाल में वामपंथी राजनीति से उनका गहरा लगाव था.

पिछले तीन दशकों में उनसे कई बार मुलाकात हुई और टुकड़ों-टुकड़ों में बात होती रही. उनके कुछ नाटकों को देखने का अवसर भी मिला. जिस किसी ने उनके नाटक की एक भी प्रस्तुति देखी हो उसकी अमिट छाप उस पर जरूर पड़ेगी यह तय था. कोलकाता के गैलरी गोल्ड में लगी कला प्रदर्शनी में वे अतिथि के तौर पर आयी थीं और उन्होंने मेरी पेंटिग्स देखी थी और सराहना भी की. पिछली मुलाकात कुछ माह पूर्व 29 सितम्बर 2019 में हुई थी, जब वे नेज़ इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में मुख्य अतिथि के तौर पर आयीं थीं. अतिथियों में फिल्म अभिनेता अमन यतन वर्मा भी थे. मैं समारोह में बतौर जूरी उपस्थित था. विभिन्न मुलाकातों में उनसे हुई जो बातें याद हैं लेकिन वह बात खास तौर पर 29 अप्रैल को कही थी, उससे लगता है उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था. उषा गांगुली ने कहा कि थियेटर बहुत शक्तिशाली माध्यम है. हालांकि अब वह छोटा बक्सा टीवी भी बहुत लोकप्रिय और बहुत शक्तिशाली माध्यम है. लेकिन रंगमंच सबसे ज्यादा शक्तिशाली माध्यम है. यह आपको केवल मनोरजंन या लोकप्रियता नहीं देता, वह आपको धक्का देता है. आपसे सवाल करता है और आपको कहीं न कहीं बदल देता है. आपकी ज़िन्दगी को बदल देता है. वह इतना बदल देता कि आपकी नयी शख्सियत का जन्म होता है. एक नया व्यक्तित्व एक नयी उर्जा देता है. दर्शकों के साथ साथ यह कलाकार को भी बदलता है. उसने मुझे भी एक नयी सोच दी है. उन्होंने चर्चा में कहा था कि मैंने हिन्दी में मास्टर्स किया है. विश्वभारती विश्वविद्यालय में पढ़ाती थी. अध्यापन को मैंने 37 साल दिये.

मेरे हज़ारों छात्र व कलाकार जो देश-विदेश में हैं मुझसे जुड़े हुए हैं. जब मैं उन्हें रंगमंच से जुड़ा हुआ या अभिनय करता हुआ देखती हूं तो बहुत खुशी होती है. इसलिए मैं कह सकती हूं कि मेरा थिएटर केवल मुझमें नहीं हैं, बल्कि हममें हैं. सृजन प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि रंगमंच में हर समय हम सभी सीखते रहते हैं. इसमें अनुशासन बहुत आवश्यक होता है. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि आपको यह जानना होता है कि आप थिएटर में क्यों आये हैं और आपको क्या करना है. इसे लेकर आपकी क्या फिलासफी है. क्या आप यहां टीवी एक्टर बनने आये हैं. यह टीवी एक्टर वाली बात इसलिए कि मुझे रोज दस फोन कॉल आते हैं कि मुझे अभिनय सीखना है. फोन इसलिए भी आते हैं क्योंकि मेरा अकेला ग्रुप है, जहां पैसे का कोई सवाल नहीं उठता. मैं जानता हूं कि रंगमंच में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वे हमारा सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर कहीं और पहुंचना चाहते हैं. लेकिन मुझे एतराज नहीं. मुझे उनकी मदद करने में खुशी मिलती है. मुझसे सबको कुछ देखकर खुशी होती है क्योंकि हम कनेक्ट हो रहे हैं. हम जुड़ रहे हैं. हम बदल रहे हैं. हम संवाद कर रहे हैं. मैं उन्हें नया व्यक्तित्व दे रही हूं रंगकर्म से. यह संजीवनी है.

रंकमंच की भाषा पर उन्होंने कहा कि हिन्दी थिएटर ने सारी सीमाओं को तोड़ा है. मेरे तो 90 प्रतिशत बंगाली दर्शक हैं. भाषा के बंधन रंगमंच में टूटे हैं. नये पुल बने हैं. और मैंने कोशिश की है कि नयी भाषा बने. थिएटर में जर्मन, बंगाली और हिन्दी क्या है. जब मैं जर्मनी में शो करने गयी तो पाया कि लोग नाटक देख रहे हैं. नाटक के संगीत, कलाकारों की गतिविधियों और अभिनय में उन्हें दिलचस्पी है. थिएटर में हमें फिल्मों से अधिक आजादी है डिस्ट्रीब्यूटर, कैमरामैन आदि आदि पर हम आश्रित नहीं. मुझे काम करते हुए अगले साल साठ साल हो जायेंगे. कई देश हैं जहां मेरे नाटकों को पसंद किया गया. फिल्म अभिनेताओं में मुझे दिलीप कुमार साहब बहुत पसंद हैं.

उन्होंने कहा कि हर रात नये दर्शकों का सामना करना रोमांचकारी अनुभव होता है. और हर रात कलाकार बदल जाता है. हर रात न सिर्फ दर्शक जो नया होता है वही रोमांचित नहीं होता कलाकार भी नये दर्शक के सम्मुख नये सिरे से रोमांचित होता है. कलाकार का दिल और दिमाग और मजबूत होता चला जाता है. एक नयी उत्तेजना एक नया पेशन होता है. और जो मैंने कहा कि मूत्यु के पूर्वाभास उन्हें था तो उन्हीं के शब्दों में देखें-मेरे चाहने वाले हजारों छात्र और कलाकार दुनिया भर में हैं. यह मेरी ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव है. मैं जब जाऊंगी आंखें मुंदेंगी बहुत शांति से प्यार से. जितना प्यार मुझे थिएटर ने दिया है, जितना सम्मान मुझे थिएटर ने दिया है, वह शायद दूसरे जगत में भी मुझे एक सुकून देता रहेगा.


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