एक सलाहकार फर्म द्वारा हाल ही में कराए गए एक सर्वेक्षण के नतीजे ने सूचना प्रौद्योग से जुड़े दिग्गजों को चौंका दिया था. सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 49 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ताओं ने कहा कि अगर उन्हें हिन्दी भाषा में वेबसाइट देखने को मिलें तो वे उन्हें विज़िट करना ज़्यादा पसंद करेंगे. 20 प्रतिशत अन्य लोगों ने अन्य भारतीय भाषाओं की वेबसाइटों के प्रति अपनी पसंद ज़ाहिर की. यानी भारत में अँग्रेज़ी सिर्फ 31 प्रतिशत लोगों के लिए इंटरनेट की प्राथमिक भाषा रह गई है. जो लोग अब तक इंटरनेट को अँग्रेज़ी को एक-दूसरे का पर्याय समझने लगे थे उन्हें इस सर्वेक्षण से ख़ासा आघात लगा. लेकिन संभवतः उन्हें नहीं, जो बरसों से भारत की विशाल हिन्दी भाषी आबादी की आर्थिक शक्ति में भरोसा करते आए हैं. तो क्या अब तक तकनीक से बेख़बर माना जाता रहा दुनिया में व्यस्त आबादी का यह तबका अंततः सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति में हिस्सा लेने आ जुटा है? क्या हिन्दी भाषी वर्ग आर्थिक समृद्धि, तकनीकी ज्ञान और जागरूकता के लिहाज़ से इतना सुदृढ़ हो गया है कि आई.टी. बाज़ार के नफे-नुकसान को प्रभावित कर सके या उसे अपनी दिशा बदलने पर विवश कर सके?
पिछले दो-तीन वर्षों में हिन्दी में सूचना प्रौद्योगिकी का बाज़ार काफी बढ़ गया है. बदलती परिस्थितियों में भी माइक्रोसॉफ्ट सहित आई.टी. के दिग्गज हिन्दी, तमिल और कुछ अन्य भारतीय भाषाओं को गंभीरता से लेने लगे हैं. उन्होंने डेस्कटॉप कम्प्यूटरों के लिए तो कई भाषायी उत्पाद लॉन्च किए ही हैं, इंटरनेट आधारित एप्लिकेशन का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है. इंटरनेट जगत में भारत और हिन्दी की सुदृढ़ होती संभावनाओं को गूगल के मुख्य कार्यकारी ने और भी साफ कर दिया है कि मौजूदा रुख के अनुसार, अगले पाँच साल में चीन नहीं बल्कि भारत विश्व का सबसे बड़ा इंटरनेट बाज़ार बनाने जा रहा है. श्मिड ने आगे कहा है कि जिन तीन भाषाओं का इंटरनेट पर दबदबा रहने वाला है उनमें स्पेनिश नहीं बल्कि हिन्दी की संभावनाएँ ज़्यादा अच्छी हैं. बाकी दो भाषाएँ हैं जैसे – अँग्रेज़ी और चीनी.
ऐसे समय में, जबकि अँग्रेज़ी जैसी केन्द्रीय भाषाओं में आई.टी. का बाज़ार कमो-बेश अपने सर्वोच्च बिन्दु पर पहुँच गया है, आई.टी. के दिग्गजों को वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश है. ऐसे में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के आई.टी. बाज़ार में निहित अपार संभावनाओं को नकारना विश्वव्यापी वेब के क्षेत्र में दबदबा रखने वाली गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसी कंपनियों के लिए संभव नहीं है. गूगल तो पहले ही अपने सर्च इंजन का हिन्दी इंटरफेस और यूनिकोड हिन्दी सर्च शुरू कर चुका है, माइक्रोसॉफ्ट भी अपने विशाल पोर्टल एम.एस.एन. डॉट कॉम का हिन्दी संस्करण लाने की प्रक्रिया में है. इंटरनेट आधारित लोकप्रिय विश्वकोश विकिपीडिया कॉम भी हिन्दी में आ ही चुका है. और अपनी कुछ सेवाओं में हिन्दी को जोड़ने जा रहा है. ऐसे समय पर, जबकि अन्तरराष्ट्रीय कंपनियाँ उभरते हुए हिन्दी बाज़ार का लाभ उठाने को तैयारी में हैं, उन भारतीय पोर्टलों और वेबसाइटों के योगदान को याद करना ज़रूरी है जिन्होंने तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए हिन्दी में इंटरनेट को लोकप्रिय बनाने और उसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
इस संदर्भ में वेबदुनिया, प्रभासाक्षी और जागरण जैसे मौजूदा इंटरनेट उपक्रमों को तो गिना ही जाना चाहिए. बहुभाषाई पोर्टल नेटजाल डॉट कॉम, निहार ऑनलाइन डॉट कॉम, महिलाओं का पोर्टल वुमानींफोलाइन डॉट कॉम, साहित्यिक वेसाइट लिटेरेटवर्ल्ड डॉट कॉम आदि को भी श्रेय दिया जाना चाहिए जो संसाधनों के अभाव में इंटरनेट पर बने रहने की कठिन चुनौती का सामना नहीं कर सके. बोलोजी डॉट कॉम, हिंदीनेस्ट डॉट कॉम, हिंदीमिलाप डॉट कॉम, संवादभारती डॉट कॉम आदि हिन्दी के बहुत पुराने पोर्टल और वेबसाइट हैं जो आज भी किसी तरह अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं. डॉटकॉम बूम ज़माने में कुछ बड़ी कंपनियों ने भी हिन्दी में वेबसाइट्स शुरू की थी लेकिन इनका उद्देश्य पूर्णतः व्यावसायिक था, कोई भाषायी लगाव या प्रतिबद्धता नहीं. कोई बड़ा राजस्व प्राप्त न होने के कारण इन कंपनियों का धैर्य ज़्यादातर जवाब दे गया और इन्हें ठंडे बस्ते में दाल दिया गया. रीडिफ़ डॉट कॉम, इंडियाइन्फो डॉट कॉम, जीडीनेट डॉट कॉम, अपोलो डॉट कॉम आदि के हिन्दी संस्करण इसी श्रेणी में आते हैं. सिफी डॉट कॉम ने भी हिन्दी संस्करण को बहुत सीमित कर दिया.
हालात अब बदल रहे हैं, बड़ी कंपनियों को भी इस बात का अहसास हो गया है कि वेब भी मीडिया का भीएक रूप है और जिस तरह प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया, रेडियो और फिल्मों में हिन्दी के बिना गुज़ारा नहीं है, इंटरनेट पर भी आज नहीं तो कल हिन्दी का जादू छाने वाला है. हिन्दी कि बदलती स्थिति के पीछे अँग्रेज़ी का सिकुड़ता बाज़ार तो है ही, हिन्दी भाषी शहरों और कस्बों में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रति बढ़ती जागरूकता और इंटरनेट का साधारण लोगों तक पहुँच में आना भी है. प्रभासाक्षी डॉट कॉम जैसे भाषायी पोर्टलों का सबसे ज़्यादा प्रयोग कर रहे है मध्य वर्ग के युवक-युवतियाँ जो इंटरनेट की उपयोगिता से पाँच वर्ष पहले की अपेक्षा ज़्यादा परिचित हैं. भारत में कम्प्यूटरों व दूरसंचार सुविधा का प्रसार हो रहा है, बीएसएनएल जैसी देशव्यापी दूरसंचार कंपनी के ब्रॉडबैंड कनेक्शन उपलब्ध होने से इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार आया है और स्कूल-कॉलेजों में किसी न किसी रूप में छात्र सूचना प्रौद्योगिकी के संपर्क में आ रहे हैं. संदेशों के आदान-प्रदान के तीव्र और सस्ते माध्यम के रूप में ईमेल ने भी इंटरनेट की लोकप्रियता में बड़ा योगदान दिया है. नतीजा सामने है – छोटे शहरों का इंटरनेट-जागरूक युवक वर्ग हिन्दी पोर्टलों, वेबसाइटों और अन्य एप्लीकेशन्स के विकास में हाथ बँटा रहा है. यह सिलसिला अब थमने वाला नहीं है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाली प्रगति का लाभ मध्य वर्ग तक पहुँचकर आइटी उत्पादों व सुविधाओं की माँग को बढ़ाएगा ही.
विनय छजलानी के नेतृत्व में चल रहे वेबदुनिया डॉट कॉम ने, जो हिन्दी का पहला इंटरनेट पोर्टल होने का दावा भी करता है, भाषायी इंटरनेट उत्पादों के मामले में जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कुछ वेंचर निवेशकों और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के आर्थिक सहयोग से चल रहा यह पोर्टल इस साल से मुनाफे की स्थिति में आ गया है. प्रभासाक्षी डॉट कॉम भी मुनाफे की स्थिति में है और इस पर हर महीने लगभग अस्सी लाख हिट्स हो रहे हैं. ये दोनों पोर्टल किसी अखबार के वेब संस्करण के रूप में नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से विकसित किए गए हैं और इन्होंने हिन्दी पोर्टलों को एक पहचान दी है. दूसरी श्रेणी में जागरण डॉट कॉम, अमरउजाला डॉट कॉम, राजस्थानपत्रिका डॉट कॉम, भास्कर डॉट कॉम और प्रभातखबर डॉट कॉम आदि आते हैं जो इन्हीं नामों वाले अखबारों के ऑनलाइन संस्करण हैं. इन अखबारों की अधिकांश सामाग्री इन पोर्टलों के माध्यम से आम इंटरनेट उपभोक्ताओं को उपलब्ध है. बीबीसी, वॉयस ऑफ अमेरिका और चाइना रेडियो भी अपने-अपने हिन्दी ऑनलाइन संस्करणों के माध्यम से इंटरनेट पर मौजूद है. उधर अभिव्यक्ति, वागर्थ, तद्भव और काव्यालय जैसी वेब आधारित साहित्यिक पत्रिकाएँ भी हिन्दी वेबजगत को समृद्ध कर रही है.
हिन्दी में पोर्टल और वेबसाइट्स सिर्फ समाचार और लेख उपलब्ध कराने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि वे अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से सक्रिय हो रहे हैं, जिनमें ईमेल (ईपत्र और मेलजोन डॉट कॉम), क्रिकेट स्कोर (प्रभासाक्षी डॉट कॉम), वैवाहिक (जीवनसाथी डॉट कॉम का हिन्दी संस्करण), समाचार संकलन (समाचार डॉट कॉम का हिन्दी विभाग), भविष्यफल (प्रभासाक्षी, वेबदुनिया और कई अन्य), तथा खोज (रफ़्तार डॉट कॉम) शामिल हैं. इतना ही नहीं, अब किसी विशेष घटनाक्रम पर आधारित वेबसाईटें भी बनाने लगी हैं और लोकसभाचुनाव डॉट कॉम इसका सशक्त उदाहरण है. आजकल पूरी दुनिया में इंटरनेट पर ब्लॉग की धूम मची हुई है और हिन्दी भी इससे अछूती नहीं है. आज सैकड़ों ब्लॉगर हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे हैं और उन्हें नियमित रूप से अपडेट भी कर रहे हैं.
वेबदुनिया, प्रभासाक्षी, हिंदुस्तानदैनिक और बीबीसी हिंदी जिसे पोर्टलों को आप देखेंगे तो अँग्रेज़ी पोर्टलों के ही समान ‘प्रोफेशनल टच’ दिखाई देगी. उनकी विषयवस्तु तो समृद्ध है ही, डिज़ाइन भी साफ-सुथरी और प्रोफेशनल दिखाई देंगे और कोई विशेष तकनीकी समस्या भी नहीं होगी. गैर-हिन्दी वेबसाइटों और पोर्टलों का निर्माण तकनीक दृष्टि से बहुत चुनौतीपूर्ण और जटिल है लेकिन डायनेमिक फॉन्ट और यूनिकोड के आगमन से स्थिति बेहतर हुई है. हालांकि आज भी कई ऐसे बड़े पोर्टल मौजूद हैं जिन्हें देखने के लिए या तो फॉन्ट डाउनलोड करना पड़ता है या फिर जिनका स्वरूप साफ-सुथरा, उपभोक्ता के अनुकूल, आकर्षक और रुचिकर नहीं लगता. कुछ हिन्दी वेबसाइट खुलने में ही बहुत अधिक समय लगा देते हैं, और कुछ में शीर्षक और अन्य सामग्री इधर-उधर बिखरी हुई दिखाई देती है. बदले हुए ज़माने के लिहाज़ से उन्हें सुयोजित और उपभोक्ता की रुचि के अनुकूल बनाना होगा. वास्तव में अधिकांश संस्थान आज भी हिन्दी वेबसाइटों पर बहुत अधिक खर्च करने को तैयार नहीं है और उन्हें बहुत कम कर्मियों के जरिए चला रहे हैं. माना जाना चाहिए कि जैसे-जैसे राजस्व में वृद्धि होगी, इनकी समग्र गुणवत्ता में उतना और सुधार आएगा.
फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि इंटरनेट पर हिन्दी तेजी और मज़बूती के साथ आगे बढ़ रही है. गूगल पर यदि आप हिन्दी की वर्ड के साथ खोज करेंगे तो 6.5 करोड़ से ज़्यादा नतीजे सामने आएँगे. यानी इंटरनेट पर हिन्दी में या हिन्दी के बारे में कम से कम इतने वेबपेज तो मौजूद हैं ही. इसकी तुलना ज़रा चीनी भाषा ‘मंदारिन’ से करें जिसके प्रयोग से गूगल पर 2.8 करोड़ नतीजे सामने आते हैं. यानी, मानना होगा कि अब इंटरनेट पर हिन्दी पिछड़ी सी भाषा नहीं रही.
साभारः साहित्य कुंज