सरकार ने फैसला किया है कि वह देखेगी कि अपने छात्रों का वैश्विक स्तर कैसा है, यह इस सरकार का एक हिम्मत भरा और उचित फैसला माना जायेगा. क्योंकि पहले एक बार ऐसा प्रयस संसार भर में हमारी हंसी उड़वा चुका है. वैज्ञानिक बनने की चाह रखने वाले संसार के सबसे ज्यादा बच्चे भारत में हैं. कैंब्रिज इंटरनेशनल ग्लोबल एज्युकेशन सेंसस रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका, पाकिस्तान, मलयेशिया, साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना जैसे तमाम देशों की तुलना में अपने देश के 66% अभिभावक बच्चों की पढाई और उनके बढिया भविष्य के लिये सर्वाधिक चिंतित और प्रतिबद्ध रहते पढाई के लिये रट लगाये रहते हैं. स्कूल के बाद ट्यूशन पढने वाले छात्रों के बारे में अपना देश अव्वल है. यहां 74 फीसद से ज्यादा बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन पढते हैं. व्यापक सर्वेक्षण के इन नतीजों से लगता यही है कि देश में पढाई का व्यापक और बेहतर माहौल है। हो सकता है कि दुनिया में हमारे वहां पढाई का हौव्वा और माहौल सबसे ज्यादा हो पर क्या हमारे छात्र संसार भर में सबसे ज्यादा कुशल और बुद्धिमान हैं? हर क्षेत्र में विकास के सच्चे सारथी ये कुशल छात्र ही होंगे जो भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों की सक्षमता के साथ अगुवाई करेंगे.
अब सरकारी फैसले के बाद 2021 में यह पता चल सकेगा कि संसार भर के 80 से अधिक देशों के छात्रों के मुकाबले हमारे छात्रों का शैक्षिक स्तर क्या है. क्या हमारे 15 वर्ष तक के छात्र इस लायक हैं कि वे भविष्य की दुनिया में अपना स्थान बना सकें। वे उच्च स्तर की शिक्षा के योग्य हैं? क्या वे इस काबिल हैं कि दुनिया भर के छात्रों के सामने अपना दावा पेश कर सकें? यह परीक्षा बतायेगी कि अगले एक दशक के भीतर देश के तकनीक विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में किस तरह की प्रगति होगी.
निजी स्कूल माध्यमिक शिक्षा में विगत दशक के भीतर नयी चमक दमक ले आये हैं, नांगलोई से नासा तक पहुंचाने का दावा कर रहे हैं। क्या इनके दावों में दम है. कौन सा देश अपने भविष्य के छात्रों को किस स्तर पर कैसी तैयारी करवा रहा है, इस वहां पढाये जाने वाला पाठ्यक्रम और पढाई की व्यवस्था कैसी है. उस शैक्षिक व्यवस्था से कैसे छात्र तैयार हो रहे हैं, क्या ये दुनिया के दूसरे देशों के छात्रों के साथ बराबर का मुकाबले करने लायक हैं अथवा फिड्डी. इसको आंकने के लिये ऑईसीडी का एक कार्यक्रम है.इस प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट एसेसमेंट यानी पीसा के तहत संस्था 15 साल तक के छात्रों का गणित, विज्ञान और भाषा पाठन की परीक्षा लेता है. तालिका और श्रेणी निर्धारित करता है.
.किसी भी देश में शिक्षा की बटलोई में क्या पक रहा है, इस एक चावल के दाने वाले अंदाज़े से पता चलता है. निस्संदेह यह देश भर में शैक्षिक वातावरण और स्तर का पूरा पता तो नहीं दे सकता फिर भी एक मोटा आकलन ज़रूर पेश करते हैं कि वहां के स्कूलों का और पढाई का स्तर क्या है,पूत के पाँव पालने में कैसे नजर आ रहे हैं. भारत अब 2021 के पीसा परीक्षा में भाग लेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऑर्गनाइजेशन फॉर एकॉनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट कंट्रीज नामक संस्था के साथ इस बावत एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये हैं कि वह इस परीक्षा में भाग लेगा. देश के तमाम केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों बड़े सरकारी स्कूलों के साथ निजी क्षेत्र के स्कूलों को भी इस परीक्षा में भाग लेने के बारे में चेता दिया गया है.
दो दशक पहले 2009 में देश के छात्रों ने इस परीक्षा में भाग लिया था, देश के छात्रों ने इस में हिस्सा लिया था. तब इस परीक्षा में कुल 74 देशों ने हिस्सा लिया था. देश की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलते हुये भारतीय छात्रों ने निचले से महज तीसरा स्थान प्राप्त किया। 74 देशों में से भारत का 72 वां स्थान था.