कोरोना वायरस से फैली महामारी ने जहां एक ओर पूरी दुनिया की रफ़्तार रोक दी है, वहीं लैटिन अमेरिकी देशों में चीन की सक्रियता बढ़ी है. लैटिन अमरिकी देशों को कोविड-19 की महामारी से लड़ने के लिए चीन से मेडिकल इक्विपमेंट, विशेषज्ञ और सलाह, मदद के तौर पर मिल रही हैं. कई विश्लेषक इन देशों को मिल रही इस मदद को चीन की नई 'मास्क डिप्लोमेसी' करार दे रहे हैं.
दरअसल, यह एक बड़ा बदलाव है, और विश्लेषक इसे चीन द्वारा इबारत बदलने की कवायद के तौर पर देख रहे हैं. चीन दुनिया में अपनी छवि सुधारने में लगा है, ख़ासकर लैटिन अमरिका में जहां अमेरिका आजकल वहां दिखाई नहीं दे रहा है. वह अपने देश में फैली महामारी को नियंत्रित करने में ही लगा हुआ है. अमेरिका के पड़ोसी देशों में चीन ने मदद देने के लिए सबसे पहले वेनेज़ुएला को चुना है. 15 मार्च के आस-पास वेनेज़ुएला को चीन से भेजे गए 4000 कोडिव टेस्ट-किट की डिलेवरी कर दी गई. इसके ठीक पहले निकोलस मादुरो की सरकार ने इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड से पांच अरब डॉलर की मदद मांगी थी जिसे आईएमएफ़ ने ठुकरा दिया था. हालांकि अतीत में निकोलस मादुरो की सरकार इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड की कड़ी आलोचना करती रही थी.
चीन की मदद पाने वालों में केवल वेनेज़ुएला नहीं है. इस लिस्ट में बोलिविया, इक्वाडोर, अर्जेंटीना और चिली जैसे देश हैं जिन्होंने चीन की दरियादिली को मुक्तकंठ से सराहा है. यहां तक कि इन देशों ने कोविड-19 पर स्टडी के लिए अपने विशेषज्ञ भी चीन भेजे हैं.
चीन के उप विदेश मंत्री लु झाओहुई ने कहा था, "कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जब तक आख़िरी जीत न हासिल कर ली जाए, तब तक हम दूसरे देशों के साथ सहयोग मजबूत करने की दिशा में काम करते रहेंगे." बहुत सारे राजनेता और विशेषज्ञ चीन की मदद की सराहना करते हैं लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो ये मानते हैं कि चीन कोई परोपकार नहीं कर रहा है.
थिंकटैंक 'सेंटर फ़ॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़' (सीएसआईएस) में एशिया मामलों के एक्सपर्ट बॉनी ग्लेज़र कहते हैं, "चीन पैसा बनाना चाह रहा है. वो दुनिया की कोई मदद नहीं कर रहा है." साल 2008 के संकट के समय भी चीन ने लैटिन अमेरिकी देशों को पैसे से और व्यावसायिक मदद दी थी.
चीन और लैटिन अमेरिका के रिश्तों पर लंबे समय से नज़र रखती आ रहीं मार्ग्रेट मेयर्स मौजूदा हालात में लैटिन अमेरिका में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर ज़ोर देती हैं. वो कहती हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि चीन इस इलाके को पटरी पर लाने के लिए प्रमुख भूमिका निभाएगा." लेकिन मार्ग्रेट मेयर्स की कुछ चिंताएं भी हैं, "साल 2008 के संकट के बाद चीन ने जिस तरह से मदद की थी, इस बार उसकी मदद करने का तरीका पहले से अलग हो सकता है. "
विशेषज्ञ इस ओर भी इशारा करते हैं कि लैटिन अमेरिका को चीन की संभावित मदद काफी कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वो इस इलाके में आर्थिक सुधार की कितनी संभावनाएं देखता है और अपनी भूमिका वो किस हद तक बढ़ाना चाहेगा.
इसकी वजहें भी हैं. पिछले सालों में लैटिन अमेरिका में चीन के निवेश की रफ़्तार काफी कम हुई है. इसलिए इस नई मदद को लेकर लोगों के मन में अपने सवाल हैं.
जानकार इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि कोरोना वायरस का प्रकोप चीन से शुरू हुआ. अज्ञात निमोनिया के बारे में आगाह करने वाले डॉक्टरों को चीन में खामोश कर दिया गया और यहां तक कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने अपने हालिया बयानों में इस तथ्य पर भी सवाल उठाया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन से शुरू हुई.
चायनीज़ यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग में चीनी अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर विली लैम कहते हैं, "चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों ने जिम्मेदारी के मुद्दे पर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश की. इसमें कोई शक नहीं कि ये वायरस चीन से ही फैला और प्रांतीय और केंद्रीय सरकार की ग़लतियों की वजह से हालात बहुत बिगड़ गए.
सीएसआईएस के एक्सपर्ट बॉनी ग्लेज़र भी चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करते हैं. उनका मानना है कि चीन अब संकट के हालात का आर्थिक फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहा है. ब्राज़ील लैटिन अमेरिका के उन गिने-चुने देशों में से हैं जिसने चीन पर इस सिलसिले में आरोप लगाया है. हालांकि चीन ने इसे खारिज करते हुए इन आरोपों को नस्लवादी करार दिया है.
रेनमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सुई शोउजुन कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि चीन अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो अमेरिका की जगह लेना चाहता है. अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर देश है और रहेगा. पश्चिमी गोलार्ध में कोई देश उसकी जगह नहीं ले सकता है."