अफ्रीका: सैन्य शासन का नया युग

संदीप कुमार

 |  30 Jun 2025 |   2
Culttoday

पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका, विशेष रूप से सहेल क्षेत्र, में सैन्य तख्तापलट की बाढ़ सी आ गई है। एक समय जिस महाद्वीप को लोकतंत्र की ओर बढ़ते हुए देखा जा रहा था, वहां अब सैन्य शासन का एक नया युग उभर रहा है। माली, बुर्किना फासो, चाड और नाइजर जैसे देशों में लोकतांत्रिक सरकारें गिर चुकी हैं और सैनिक सत्ता में आ चुके हैं। यह स्थिति न केवल अफ्रीका की राजनीति को प्रभावित कर रही है, बल्कि क्षेत्रीय गठबंधनों, वैश्विक रिश्तों और लोकतंत्र की संभावनाओं को भी गहराई से चुनौती दे रही है।
2020 से 2024 के बीच बढ़ते तख्तापलट
इस अवधि में अफ्रीका में कम से कम नौ सफल सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं। इनमें माली (2020, 2021), गिनी (2021), बुर्किना फासो (2022 में दो बार), चाड (2021), नाइजर (2023) और गैबॉन (2023) शामिल हैं। इन तख्तापलटों के पीछे एक जैसी ही वजहें रही हैं — सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार, बढ़ती असुरक्षा, आर्थिक संकट और सत्ता से आम नागरिकों की बढ़ती दूरी।
शहरों में आम जनता ने इन सैन्य तख्तापलटों का कई बार खुले दिल से स्वागत किया है। माली की राजधानी बामाको और नाइजर की राजधानी नियामे में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और सैनिकों को ‘उद्धारकर्ता’ के रूप में देखा। कुछ प्रदर्शनकारियों ने तो रूसी झंडे भी लहराए, जो एक बड़े वैश्विक भू-राजनीतिक परिवर्तन की ओर संकेत करता है।
क्यों बढ़ रहे हैं सैन्य तख्तापलट?
सुरक्षा तंत्र का पतन

सहेल क्षेत्र इस समय जिहादी आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठन लगातार अपने पांव पसार रहे हैं, जबकि सरकारें सुरक्षा बहाल करने में विफल रही हैं। बुर्किना फासो में लगभग आधा देश सरकार के नियंत्रण से बाहर है। इस खालीपन का फायदा सैन्य ताकतों ने उठाया और खुद को एकमात्र "उपाय" के रूप में प्रस्तुत किया।
असफल लोकतांत्रिक शासन
गिनी और गैबॉन जैसे देशों में चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और संस्थानों की गिरती हालत ने लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठाया है। कुछ देशों में सत्ता वंश परंपरा में बदल चुकी थी, जिससे युवा वर्ग और आम जनता में गुस्सा और मोहभंग पैदा हुआ।
वैश्विक शक्तियों की भूमिका
रूस ने वैगनर ग्रुप के माध्यम से इन देशों में सैन्य सहयोग दिया, जो बिना किसी लोकतांत्रिक शर्तों के आता है। माली और बुर्किना फासो में रूसी समर्थन ने फ्रांसीसी और अमेरिकी प्रभाव को पूरी तरह चुनौती दी है।
वहीं, चीन ने अपने गैर-हस्तक्षेप वाले दृष्टिकोण के चलते इन सैन्य सरकारों के साथ भी आर्थिक संबंध बनाए रखे हैं। उसने आधारभूत ढांचे में निवेश जारी रखा है, जो इन देशों को बहुत लुभाता है।
इसके विपरीत, पश्चिमी देशों — विशेषकर फ्रांस और अमेरिका — का प्रभाव कमजोर हो गया है। फ्रांस को कई देशों से बाहर कर दिया गया है और अमेरिकी प्रतिबंध भी कोई बड़ा असर नहीं दिखा पाए हैं। अब पश्चिम को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है, जहां लोकतांत्रिक आदर्श और सुरक्षा की व्यावहारिकता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
लोकतंत्र की गिरावट
इन सैन्य तख्तापलटों को केवल क्षणिक राजनीतिक घटनाएं मानना भूल होगी। यह एक गहरे संकट की ओर इशारा कर रहे हैं, जहां सैन्य शासन सामान्य होता जा रहा है। कई देशों में, जैसे माली और बुर्किना फासो, सैनिक सरकारों ने वादा किया था कि वे जल्दी चुनाव कराएंगे, लेकिन बार-बार इसे टालते रहे हैं।
क्षेत्रीय संगठन जैसे ECOWAS और अफ्रीकी संघ (AU) इन तख्तापलटों पर प्रभावी प्रतिक्रिया देने में असमर्थ साबित हुए हैं। प्रतिबंधों का असर सीमित रहा है और लोकतंत्र की बहाली की प्रक्रिया कहीं खो गई है।
मानवाधिकार और सुरक्षा की कीमत
इन तख्तापलटों से यह अपेक्षा थी कि सुरक्षा की स्थिति सुधरेगी, लेकिन इसके विपरीत आतंकवाद और हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है। सैनिक सरकारों का ध्यान राजनीतिक नियंत्रण पर केंद्रित है, जिससे आतंकी विरोधी अभियानों में तालमेल की कमी आई है। संयुक्त सैन्य अभियान बिखर गए हैं और आतंकवाद के खिलाफ क्षेत्रीय संघर्ष कमजोर हो गया है।
इसके साथ ही, मानवीय संकट और गहरा गया है। पांच मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं और खाद्य संकट गहराता जा रहा है। हिंसा के चलते कृषि कार्य बाधित हो गया है और राहत सामग्री भी प्रभावित हो रही है।
सहेल से आगे: संक्रमण का खतरा
सहेल क्षेत्र से यह लहर अब अफ्रीका के अन्य हिस्सों में फैलने लगी है। गैबॉन का 2023 का तख्तापलट भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति के विरोध में हुआ था। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यदि शासन व्यवस्था में कोई ठोस सुधार नहीं होता, तो अन्य कमजोर लोकतंत्र भी इसी रास्ते पर जा सकते हैं।
लोकतंत्र को फिर से खड़ा करने की राह
अफ्रीकी नेतृत्व की भूमिका
ECOWAS और अफ्रीकी संघ को केवल प्रतिबंधों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें संस्थागत सुधारों, सुशासन, और सुरक्षा प्रशिक्षण में सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि सैन्य हस्तक्षेप के बजाय लोकतांत्रिक रास्ता अपनाने की प्रेरणा मिले।
लोकतंत्र में भरोसा बहाल करना
नागरिक सरकारों को यह साबित करना होगा कि वे केवल वादे करने वाली संस्थाएं नहीं हैं। युवाओं को रोजगार, शिक्षा, और बुनियादी सेवाएं मुहैया कराना अब सबसे जरूरी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाना भी अनिवार्य है।
वैश्विक भागीदारी का पुनर्मूल्यांकन
पश्चिमी देशों को अब अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को एक संरक्षक की तरह नहीं, बल्कि साझेदार के रूप में देखना होगा। वहीं रूस और चीन जैसे देशों की बढ़ती भूमिका को समझते हुए, एक संतुलित कूटनीति की आवश्यकता है। यह कोई शीत युद्ध नहीं, बल्कि सहयोग और प्रतिस्पर्धा का नया मॉडल है।
निर्णायक मोड़ पर अफ्रीका
अफ्रीका में लोकतंत्र पर संकट एक गंभीर चेतावनी है। यह दशकों की असफल सरकारों, सुरक्षा संकटों, और बाहरी प्रभावों का परिणाम है। यह केवल सैन्य तख्तापलट की श्रृंखला नहीं, बल्कि अफ्रीका के भविष्य की दिशा तय करने वाला एक मोड़ है। 

श्रेया गुप्ता वर्तमान में कल्ट करंट में पत्रकारिता 
कर रही हैं और वैश्विक राजनीति पर पैनी दृष्टि रखती हैं।


Browse By Tags

RECENT NEWS

आवरण कथा- ट्रंपाघात
संजय श्रीवास्तव |  30 Jun 2025  |  7
निर्दयता की क़ीमत
कल्ट करंट डेस्क |  30 Jun 2025  |  2
टैरिफ की तकरार
कल्ट करंट डेस्क |  30 Jun 2025  |  2
सुरक्षा नहीं, सौदा: ट्रंप की नाटो नीति
कल्ट करंट डेस्क |  30 Jun 2025  |  2
ट्रम्प का अहंकार,धरती का संताप
कल्ट करंट डेस्क |  30 Jun 2025  |  2
USAID में कटौती वैश्विक तबाही
कल्ट करंट डेस्क |  30 Jun 2025  |  3
अफ्रीका: सैन्य शासन का नया युग
श्रेया गुप्ता |  30 Jun 2025  |  2
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)