भारत-कनाडा संबंधः भरोसे की बहाली या कूटनीतिक दिखावा ?
जलज वर्मा
| 30 Jun 2025 |
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भारत और कनाडा के बीच हालिया कूटनीतिक नरमी — जिसे नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति के निर्णय से चिह्नित किया गया है — वर्षों से चले आ रहे तनावपूर्ण संबंधों के बीच आशा की एक नाज़ुक किरण प्रदान करती है। लेकिन चमकदार बयानों और कूटनीतिक मुस्कानों के पीछे खालिस्तान उग्रवाद जैसे मुद्दों से जुड़ा एक विस्फोटक क्षेत्र छिपा है। यह तथाकथित रीसेट एक खोखली रस्म बनकर रह जाएगा, यदि दोनों देश मूल मुद्दों का सामना ईमानदारी, जवाबदेही और राजनीतिक साहस के साथ नहीं करते। आखिरकार, भरोसा केवल कूटनीतिक नियुक्तियों से नहीं बनता।
भारत और कनाडा के बीच हाल ही में नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति ने यह संकेत दिया है कि दोनों देश अपने बिगड़े संबंधों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह नियुक्ति एक लंबे तनावपूर्ण दौर के बाद आई है, जब दोनों देशों के बीच राजनीतिक और राजनयिक संबंध लगभग ठप हो गए थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ प्रतिनिधि बदलने से रिश्ते सुधर सकते हैं? क्या यह बदलाव सच्चे भरोसे की ओर ले जाएगा, या यह केवल एक राजनयिक औपचारिकता बनकर रह जाएगा?
इस लेख में हम भारत-कनाडा संबंधों की जटिलताओं को सरल भाषा में समझेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि इस 'रीसेट' की सफलता किन बातों पर निर्भर करती है।
भारत-कनाडा: ऐतिहासिक रूप से मित्र लेकिन हालिया कटुता
भारत और कनाडा लंबे समय से लोकतंत्र, बहुलता, और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग के साझेदार रहे हैं। लाखों भारतीय प्रवासी कनाडा में रहते हैं, जो दोनों देशों के बीच एक मानवीय पुल की तरह हैं। शिक्षा, व्यापार, विज्ञान और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग होता रहा है।
लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह रिश्ता तनावपूर्ण हो गया, जिसका प्रमुख कारण खालिस्तान समर्थक गतिविधियाँ और उन पर कनाडा की प्रतिक्रिया रही है।
खालिस्तान मुद्दा: भारत की सबसे बड़ी चिंता
भारत के लिए खालिस्तान आंदोलन केवल एक वैचारिक मतभेद नहीं, बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है। इस आंदोलन की जड़ें पंजाब में हैं, जहाँ कुछ तत्व एक अलग सिख राष्ट्र की माँग करते हैं। यह विचार भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सीधी चुनौती देता है।
भारत का आरोप है कि कनाडा में रहने वाले कुछ खालिस्तान समर्थक लोग न सिर्फ भारत विरोधी बातें करते हैं, बल्कि कभी-कभी हिंसा या सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश भी करते हैं। भारत में कई ऐसे संगठनों को आतंकवादी घोषित किया गया है। भारत को यह भी लगता है कि कनाडा की सरकार ने इन तत्वों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
कई बार खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा में भारतीय दूतावासों और मंदिरों पर हमले किए या विरोध प्रदर्शन किए, जिससे भारत में गुस्सा और चिंता दोनों बढ़े।
2023: जब विवाद चरम पर पहुंचा
G20 सम्मेलन के दौरान कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक गंभीर आरोप लगाया कि भारत की एजेंसियों का हाथ कनाडा में खालिस्तानी नेता हरदीपे सिंह निज्जर की हत्या में हो सकता है। यह बयान पूरी दुनिया में सुर्खियाँ बना और भारत ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया।
इसके बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित किया। भारत ने आरोप लगाया कि कनाडा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है, और कनाडा ने कहा कि भारत ने उनके संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन किया है। यह घटना दोनों देशों के संबंधों में एक गहरी खाई बना गई।
नए उच्चायुक्त: क्या यह वास्तव में नई शुरुआत है?
अब, जब कनाडा में नई सरकार के आने की संभावना जताई जा रही है और प्रधानमंत्री मार्क कार्नी (काल्पनिक नाम, भविष्य की परिकल्पना के अनुसार) भारत के साथ संबंध सुधारने की बात कर रहे हैं, तब उम्मीदें एक बार फिर से जगी हैं।
G7 सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कार्नी की मुलाकात, और फिर दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे के लिए उच्चायुक्तों की नियुक्ति इस दिशा में अहम कदम हैं।
इससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देश अब फिर से संवाद और सहयोग की दिशा में जाना चाहते हैं। लेकिन सिर्फ प्रतिनिधि भेजने से समस्याएँ खत्म नहीं होतीं। असली सवाल यह है कि क्या दोनों पक्ष अपनी-अपनी चिंताओं को समझने और समाधान निकालने के लिए ईमानदारी से तैयार हैं?
भारत की अपेक्षाएँ: सिर्फ बातें नहीं, काम चाहिए
भारत चाहता है कि कनाडा खालिस्तान समर्थकों पर कठोर कार्रवाई करे, खासकर तब जब वे खुलेआम भारत-विरोधी नारों, हिंसक प्रदर्शनों या सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं।
भारत को यह भी चिंता है कि कनाडा में कुछ नेता सिख समुदाय के वोट बैंक को खुश करने के लिए इस तरह के तत्वों पर नरमी बरतते हैं। भारत का यह भी मानना है कि आपसी संबंधों को मज़बूत करने के लिए कनाडा को दिखाना होगा कि वह सिर्फ लोकतांत्रिक आज़ादी की दुहाई नहीं दे रहा, बल्कि उन आज़ादियों के दुरुपयोग को भी रोकने के लिए गंभीर है।
विश्वास बहाली के 4 ज़रूरी कदम
1. सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता:
कनाडा को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह जरूरी है कि वह चरमपंथियों के लिए सुरक्षित ठिकाना न बने।
2. बंद कमरे में संवाद:
सार्वजनिक बयानबाज़ी और मीडिया में आरोप-प्रत्यारोप से बचा जाना चाहिए। गंभीर मुद्दों को निजी और कूटनीतिक बातचीत से हल किया जाना ज़्यादा असरदार होता है।
3. संप्रभुता का पारस्परिक सम्मान:
दोनों देशों को एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए।
4. आर्थिक और शैक्षिक सहयोग:
भारत और कनाडा व्यापार, शिक्षा, टेक्नोलॉजी और आप्रवासन जैसे क्षेत्रों में एक-दूसरे के बड़े साझेदार हो सकते हैं। इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने से आपसी समझ और विश्वास भी गहराएगा।
निष्कर्ष: भरोसा काम से बनता है, बातों से नहीं
भारत और कनाडा दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं और उनकी साझेदारी ऐतिहासिक रूप से मज़बूत रही है। लेकिन रिश्तों की बहाली सिर्फ अच्छी नीयत या राजनयिक औपचारिकताओं से नहीं होगी। इसके लिए ठोस कदम, पारदर्शिता और आपसी संवेदनशीलता ज़रूरी हैं।
भारत के लिए खालिस्तान सिर्फ एक मतभेद नहीं, एक राष्ट्रीय सुरक्षा संकट है। जब तक कनाडा इसे गंभीरता से नहीं लेता और केवल 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' की आड़ में इन गतिविधियों को नज़रअंदाज़ करता रहेगा, तब तक भरोसे की असली बहाली नहीं होगी।
यह रिश्ता तभी सुधरेगा जब दोनों देश यह समझें कि कूटनीति केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों का संतुलन है।