हाल ही में अमेरिका द्वारा इराक, बहरीन और कुवैत स्थित अपने दूतावासों से गैर-जरूरी राजनयिक कर्मचारियों और सैन्य परिवारों को आंशिक रूप से निकाले जाने का निर्णय वैश्विक स्तर पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। क्या यह केवल एक सुरक्षा-संबंधी एहतियाती कदम है, या हम पश्चिम एशिया में एक संभावित सैन्य संघर्ष की पूर्व चेतावनी देख रहे हैं — विशेष रूप से ईरान को लेकर?
इस पूरे घटनाक्रम का मूल केंद्र ईरान का परमाणु कार्यक्रम है, जो अमेरिका की विदेश नीति में वर्षों से विवाद का विषय बना हुआ है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस क्षेत्र को “संभावित रूप से खतरनाक” बताते हुए इस निकासी को उचित ठहराया। हालांकि इसे एक सामान्य सावधानी बताया जा रहा है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं है — यह संभावित टकराव का संकेत भी हो सकता है।
ईरान के साथ परमाणु समझौते को लेकर चल रही वार्ताएं इस समय अनिश्चितता के दौर से गुजर रही हैं। 2015 में हस्ताक्षरित संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) या ईरान परमाणु समझौते ने ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित किया था, बदले में उस पर से कई प्रतिबंध हटाए गए थे। लेकिन 2018 में अमेरिका ने इस समझौते से एकतरफा रूप से खुद को अलग कर लिया, यह कहते हुए कि समझौता त्रुटिपूर्ण है। इसके बाद से ईरान ने धीरे-धीरे अपने यूरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया को फिर शुरू कर दिया है, जिससे वैश्विक तनाव बढ़ गया है।
अब, जब यह वार्ताएं फिर से गतिरोध में हैं, अमेरिका को आशंका है कि उसका सहयोगी इज़राइल, जो पहले से ही इस समझौते का विरोधी रहा है, ईरान के परमाणु ठिकानों पर अकेले हमला कर सकता है — चाहे अमेरिका की सहमति हो या न हो। ऐसी किसी कार्रवाई से पूरा क्षेत्र अशांत हो सकता है और एक बहुपक्षीय युद्ध की आशंका पैदा हो जाती है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने हालिया इंटरव्यू में यह संकेत दिया कि उन्हें अब ईरान के समझौते में शामिल होने की संभावनाओं पर भरोसा नहीं रहा। विशेषकर यूरेनियम संवर्धन रोकने की अमेरिकी मांग पर ईरान की अनिच्छा ने इन अटकलों को और हवा दी है कि अमेरिका या इज़राइल सैन्य कार्रवाई की ओर बढ़ सकते हैं।
ईरानी रक्षा मंत्री अज़ीज़ नासिरज़ादेह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर अमेरिका या इज़राइल ने ईरान पर हमला किया, तो ईरान अमेरिका के पश्चिम एशिया में स्थित सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। हालांकि ईरान यह दावा करता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण ऊर्जा उद्देश्यों के लिए है, पर वह यूरेनियम संवर्धन रोकने को तैयार नहीं है।
ईरानी अधिकारियों ने अमेरिका पर यह आरोप भी लगाया है कि वह अनावश्यक दबाव और रणनीतिक अलगाव की नीति अपनाकर क्षेत्र में तनाव को बढ़ा रहा है, जिससे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
11 जून 2025 को अमेरिकी विदेश विभाग ने इराक, बहरीन और कुवैत में स्थित अपने दूतावासों से गैर-आपातकालीन कर्मचारियों को हटाने का आदेश दिया। अन्य खाड़ी देशों — जैसे कतर, यूएई और सऊदी अरब — में भी अमेरिकी दूतावासों और सैन्य अड्डों को सतर्क कर दिया गया है। यह निकासी एक रणनीतिक संकेत भी है कि अमेरिका अब सभी संभावनाओं के लिए खुद को तैयार कर रहा है — चाहे वह कूटनीतिक विफलता हो, इज़राइली हमला हो, या व्यापक सैन्य संघर्ष।
इस तनाव का वैश्विक प्रभाव भी देखने को मिला है। ब्रेंट क्रूड तेल की कीमतें लगभग 5% बढ़कर 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जो संभावित आपूर्ति संकट की आशंका को दर्शाता है। ब्रिटेन और अन्य देशों ने खाड़ी क्षेत्र की यात्रा को लेकर चेतावनियां जारी की हैं और पूरी दुनिया इस स्थिति पर नजर रखे हुए है।
हालांकि स्थितियां गंभीर हैं, फिर भी कूटनीति का रास्ता अभी खुला है। 15 जून 2025 को ओमान में होने वाली वार्ता इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है। अगर इस बैठक से कोई समाधान निकलता है, तो तनाव कम हो सकता है। लेकिन अगर वार्ता विफल रही, तो यह क्षेत्र पूर्ण सैन्यीकरण की ओर बढ़ सकता है।
आखिरकार, यह निकासी केवल एक एहतियात है या युद्ध का पूर्वाभास — इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा। फिलहाल, इतना निश्चित है कि वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन एक बार फिर डगमगा रहा है — और सारी दुनिया इसकी ओर देख रही है।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।