ड्रैगन से दोस्तीः मजबूरी या मास्टरस्ट्रोक?

मनोज कुमार

 |  30 Sep 2025 |   15
Culttoday

अगस्त 2025 में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एसीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के तियानजिन शहर पहुँचे। यह 2020 की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प और उसके बाद लंबे समय तक चले सैन्य गतिरोध के बाद प्रधानमंत्री मोदी का पहला चीन दौरा था। इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी मुलाक़ात ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बटोरीं। कई विश्लेषकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अमेरिकी टैरिफ और कूटनीतिक दबावों ने भारत को चीन के करीब धकेल दिया है।
लेकिन, यह व्याख्या स्थिति को बहुत ही सरल तरीके से देखती है। हकीकत इससे कहीं ज़्यादा जटिल है। चीन के साथ भारत का जुड़ाव किसी दबाव में की गई प्रतिक्रिया नहीं है; यह अपनी 'रणनीतिक स्वायत्तता' को बनाए रखते हुए रिश्तों को स्थिर करने के एक सतत प्रयास का हिस्सा है। दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलने की शुरुआत 2024 में रूस के कज़ान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही हो गई थी, जहाँ 2019 के बाद पहली बार मोदी और शी के बीच एक सार्थक द्विपक्षीय चर्चा हुई। इसी बातचीत के परिणामस्वरूप वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों को पीछे हटाने पर एक औपचारिक समझौता हुआ, जिससे देपसांग और डेमचोक जैसे विवादित क्षेत्रों में तनाव कम हुआ।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बीच आर्थिक निर्भरता
राजनीतिक तनावों के बावजूद, भारत और चीन के बीच व्यापार 100 अरब डॉलर से अधिक का है, जो दोनों देशों की आर्थिक निर्भरता को दर्शाता है। चीन आज भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में बहुत अधिक झुका हुआ है। यह असंतुलन भारत को व्यापार में विविधता लाने और संरचनात्मक सुधार करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
इसी समय, भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी व्यापारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अगस्त 2025 में, ट्रंप प्रशासन ने भारत द्वारा रूस से तेल की निरंतर खरीद को एक प्रमुख चिंता बताते हुए भारतीय आयातों पर 50% का भारी टैरिफ लगा दिया। भारतीय नीति निर्माताओं ने इस कदम को एक दंडात्मक कार्रवाई के रूप में देखा, जिसने पश्चिमी और एशियाई, दोनों शक्तियों के प्रति अपनी रणनीति पर पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
भारत की विदेश नीति का मूल मंत्र: रणनीतिक स्वायत्तता
भारत की विदेश नीति का मूल दर्शन 'रणनीतिक स्वायत्तता' है—यानी, एक बहुध्रुवीय दुनिया में किसी एक वैश्विक शक्ति पर अत्यधिक निर्भर हुए बिना स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता। इस संदर्भ में, चीन के साथ भारत का जुड़ाव वैचारिक नहीं, बल्कि पूरी तरह से व्यावहारिक है।
भारत जहाँ आर्थिक और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग चाहता है, वहीं वह सीमा क्षेत्रों, दक्षिण चीन सागर और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी पहलों के माध्यम से चीन की आक्रामकता को लेकर सतर्क भी रहता है। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की भागीदारी, चीन के प्रभाव को सीधे टकराव के बिना संतुलित करते हुए, एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
एक संतुलित दृष्टिकोण: व्यावहारिकता, निर्भरता नहीं
भारत की रणनीति एक सिद्धांत को स्पष्ट करती है: जुड़ाव का मतलब निर्भरता नहीं है। जहाँ व्यापार, जलवायु परिवर्तन और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग फायदेमंद है, वहीं भारत चीन पर अत्यधिक निर्भरता से बचता है। यह दृष्टिकोण भारत को बातचीत में अपना लाभ बनाए रखने, अपनी संप्रभुता की रक्षा करने और वैश्विक शक्तियों से किसी भी संभावित दंडात्मक कार्रवाई के जोखिम को कम करने की अनुमति देता है।
साथ ही, चीन भी अपनी आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। धीमी होती अर्थव्यवस्था, पश्चिमी बाजारों का दबाव और रूस को समर्थन देने पर बढ़ती जांच जैसे कारक बीजिंग को भारत के साथ बातचीत और विश्वास-बहाली के उपायों के लिए अधिक ग्रहणशील बनाते हैं। दोनों देशों का आपसी हित क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने, सैन्य टकराव से बचने और एक प्रतिस्पर्धी माहौल में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में निहित है।
निष्कर्ष: रस्सी पर संतुलन साधने की कला
चीन के प्रति भारत का दृष्टिकोण वैश्विक भू-राजनीति की एक सूक्ष्म समझ को दर्शाता है। देश जुड़ाव और प्रतिरोध, सहयोग और प्रतिस्पर्धा के बीच एक नाजुक संतुलन साध रहा है। जहाँ आर्थिक संबंध और क्षेत्रीय स्थिरता बातचीत के कारण प्रदान करते हैं, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कोई समझौता नहीं हो सकता।
संक्षेप में, भारत चीन पर निर्भर नहीं होना चाहता। इसके बजाय, वह सतर्क जुड़ाव का एक व्यावहारिक मार्ग अपना रहा है, जिसमें वह कूटनीति, व्यापार और बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है और साथ ही पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की संभावनाएं भी तलाशता है। जैसे-जैसे वैश्विक समीकरण बदलते रहेंगे, भारत का यह सधा हुआ दृष्टिकोण उसकी रणनीतिक दूरदर्शिता का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि वह अपनी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना एशिया में एक निर्णायक शक्ति बना रहे।
 


Browse By Tags

RECENT NEWS

आवरणकथा- तरुणाघातः हिल गए सिंहासन
संजय श्रीवास्तव |  30 Sep 2025  |  36
पाक-सउदी समझौताःरणनीतिक झटका
कबीर तनेजा |  30 Sep 2025  |  20
अमेरिका की जुआरी चाल
अनिरुद्ध यादव |  30 Sep 2025  |  17
अफ्रीकाः पानी पर पलता भविष्य
सरीन मलिक |  30 Sep 2025  |  17
शांति का मायाजाल
अनवर हुसैन |  02 Sep 2025  |  45
साझा जल, विभाजित भविष्य
मो. सैफुद्दीन एवं कृष्ण प्रताप गुप्ता |  02 Sep 2025  |  31
ढाका की नई करवट
संतु दास |  02 Sep 2025  |  21
ट्रंप की क्लास व यूरोप की चुप्पी
अनवर हुसैन |  02 Sep 2025  |  33
अकालः असली गुनाहगार कौन?
मारियल फेरागामो |  02 Sep 2025  |  21
अफ्रीका में भारत का दांव
आकांक्षा शर्मा |  01 Aug 2025  |  40
युद्धोन्मादी ड्रैगन?
जलज श्रीवास्तव |  01 Aug 2025  |  37
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)