युद्धोन्मादी ड्रैगन?

संदीप कुमार

 |  01 Aug 2025 |   2
Culttoday

इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य अभूतपूर्व गति से रूपांतरित हो रहा है। वैश्विक शक्ति का संतुलन, जो कभी संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ (तत्पश्चात रूस) के मध्य तनावों पर केंद्रित था, अब स्पष्ट रूप से एशिया की ओर स्थानांतरित हो रहा है। चीन, जिसने प्रारंभिक तौर पर 'सॉफ्ट पावर' और 'आर्थिक प्रभाव' के माध्यम से अपनी शक्ति का विस्तार किया, वर्तमान में सैन्य क्षेत्र में भी अपनी आक्रामक मंशा का प्रदर्शन कर रहा है। चीन द्वारा युद्ध की तैयारियाँ जिस सुसंगठित, सुनियोजित और निरंतरता के साथ की जा रही हैं, उससे न केवल एशियाई क्षेत्र में, बल्कि संपूर्ण विश्व में चिंता का वातावरण व्याप्त है। भारत के लिए यह चिंता विशेष रूप से गहन है, क्योंकि भारत और चीन की सीमाएं न केवल विस्तृत हैं, अपितु दोनों देशों के मध्य ऐतिहासिक अविश्वास की गहरी खाई भी विद्यमान है।

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अब मात्र एक रक्षात्मक शक्ति के रूप में सीमित नहीं रह गई है। विगत एक दशक में, चीन ने सैन्य आधुनिकीकरण को असाधारण प्राथमिकता प्रदान की है। पीएलए के तीन प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं: प्रौद्योगिकीय उत्थान: चीन अब पारंपरिक युद्ध की सीमाओं को अतिक्रमित करते हुए ‘इंटेलिजेंटाइज्ड वॉरफेयर’ की दिशा में तीव्रता से आगे बढ़ रहा है। इस रणनीति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर क्षमताएँ, अंतरिक्ष-आधारित निगरानी प्रणाली और ड्रोन प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। चीन इन अत्याधुनिक तकनीकों को अपनी सैन्य शक्ति का अभिन्न अंग बनाने के लिए व्यापक निवेश कर रहा है, जिससे भविष्य के युद्धों में उसे निर्णायक लाभ प्राप्त हो सके।
रणनीतिक लचीलापन एवं गतिशीलता: चीन ने अपनी सैन्य संरचना का पुनर्गठन करते हुए इसे अधिक लचीला और त्वरित प्रतिक्रिया देने योग्य बनाया है। उसने थिएटर कमांड सिस्टम को कार्यान्वित किया है, जो उसे युद्ध के किसी भी संभावित मोर्चे पर तत्काल कार्रवाई करने में सक्षम बनाता है। यह पुनर्गठन विभिन्न सैन्य अंगों के मध्य समन्वय को बेहतर बनाने और युद्ध की बदलती परिस्थितियों के अनुसार तेजी से अनुकूलन करने की पीएलए की क्षमता को बढ़ाता है।
मानसिक एवं वैचारिक तैयारी: चीनी सैनिकों के प्रशिक्षण में 'वास्तविक युद्ध जैसी परिस्थितियाँ' निर्मित की जा रही हैं। चीन की सरकारी मीडिया और आधिकारिक वक्तव्यों में बार-बार 'तैयारी' और 'संघर्ष के लिए तत्पर रहने' जैसे वाक्यांशों का उपयोग किया जा रहा है। यह मनोवैज्ञानिक अभियान न केवल सैनिकों को युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार करने का प्रयास करता है, बल्कि घरेलू आबादी को भी संभावित संघर्ष के लिए तैयार रहने का संदेश देता है।
चीन की नीतियों के अंतर्निहित उद्देश्य:
चीन की वर्तमान रणनीति केवल एक सैन्य विस्तार की परियोजना मात्र नहीं है, अपितु यह उसकी दीर्घकालिक भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा का एक अभिन्न भाग है। चीन स्वयं को एशिया के निर्विवाद नेता और संयुक्त राज्य अमेरिका के समकक्ष एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है।
चीनी सरकार यह मानती है कि उसकी सुरक्षा केवल उसकी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर ही सीमित नहीं है, अपितु उसका विस्तार उससे बाहर भी है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, यदि आवश्यक हो तो सैन्य बल का प्रयोग करना न केवल उचित है, बल्कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अनिवार्य भी हो सकता है। ताइवान के प्रति उसका आक्रामक रवैया, दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण और उन पर सैन्य अड्डों की तैनाती इस विस्तारवादी सोच के स्पष्ट प्रमाण हैं। चीन इन कार्रवाइयों के माध्यम से क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने और अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों पर अपना नियंत्रण बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।
भारत के लिए चीन की सैन्य तैयारियों के निहितार्थ:
चीन की उपर्युक्त गतिविधियाँ भारत के लिए विशेष रूप से चिंताजनक हैं, और इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
सीमा विवाद एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव: भारत और चीन के मध्य 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा आज भी स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है। वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प, जिसमें भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाई, ने यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर दिया कि यह सीमा कितनी संवेदनशील है। उस घटना के पश्चात, चीन ने तवांग से लेकर डेपसांग तक अनेक स्थानों पर अपने सैनिकों की तैनाती में वृद्धि की है। इसके अतिरिक्त, उसने तिब्बत में आधारभूत ढाँचे और वायुसेना अड्डों का तेजी से विकास किया है, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में उसकी सैन्य क्षमता और पहुँच में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
हिंद महासागर में चीन की पैठ: भारत का समुद्री सुरक्षा तंत्र भी अब चीन की बढ़ती गतिविधियों के कारण अत्यधिक सतर्क हो गया है। चीन ने श्रीलंका (हंबनटोटा), पाकिस्तान (ग्वादर) और म्यांमार में कई महत्वपूर्ण बंदरगाहों का निर्माण किया है। यह रणनीति, जिसे 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' (मोतियों की माला) के नाम से जाना जाता है, के माध्यम से चीन भारत को समुद्र से भी घेरने की रणनीति पर कार्य कर रहा है, जिससे भारत की नौसैनिक शक्ति और व्यापार मार्गों पर संभावित खतरा उत्पन्न हो सकता है।
चीन-पाकिस्तान गठजोड़: भारत के लिए यह गठजोड़ एक दोहरे खतरे के समान है। चीन और पाकिस्तान के मध्य सैन्य, आर्थिक और रणनीतिक सहयोग अत्यंत प्रगाढ़ हो चुका है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के अंतर्गत चीन द्वारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आधारभूत संरचना में किया गया निवेश भारत की संप्रभुता को एक खुली चुनौती है। इस सहयोग में सामरिक प्रौद्योगिकी, खुफिया जानकारी और संयुक्त सैन्य अभ्यासों का आदान-प्रदान भी शामिल है, जो भारत की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।
चीन की साइबर एवं अंतरिक्ष क्षमता: चीन की साइबर क्षमताएँ विश्व में सर्वाधिक उन्नत मानी जाती हैं। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की एक विशिष्ट इकाई पूर्णतः साइबर जासूसी और नेटवर्क व्यवधान उत्पन्न करने के लिए समर्पित है। भारत जैसे विकासशील देश, जिसकी डिजिटल संरचना तेजी से विकसित हो रही है, परंतु अभी भी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है, इस खतरे के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। इसके अतिरिक्त, चीन की अंतरिक्ष-आधारित निगरानी प्रणाली भी सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की गतिविधियों पर निरंतर दृष्टि रख रही है, जिससे उसे सामरिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया: क्या यह पर्याप्त है?
भारत ने विगत कुछ वर्षों में चीन की इन तैयारियों के परिप्रेक्ष्य में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
सीमा पर आधारभूत संरचना का विस्तार: सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों और पुलों का निर्माण तीव्र गति से किया जा रहा है, जिससे सैन्य बलों की आवाजाही और सामग्री की आपूर्ति सुगम हो सके।
सैन्य तैनाती एवं सशक्तिकरण: भारत ने लेह, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम क्षेत्रों में विशेष बलों और हल्के युद्धक हथियारों की तैनाती में वृद्धि की है, ताकि किसी भी संभावित आक्रमण का प्रभावी ढंग से प्रत्युत्तर दिया जा सके।
रणनीतिक गठबंधन: क्वाड (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और हिंद-प्रशांत रणनीतियों के अंतर्गत भारत ने अपनी कूटनीतिक पहुँच को सुदृढ़ किया है और समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ किया है।
स्वदेशीकरण एवं रक्षा उत्पादन: भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत हथियारों के स्वदेशी उत्पादन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, ताकि विदेशी हथियारों पर निर्भरता को कम किया जा सके और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा सके।
तथापि, इन प्रयासों के बावजूद भारत को अभी भी अपनी रणनीतिक सोच में अधिक सुसंगति और दीर्घकालिक दृष्टिकोण लाने की आवश्यकता है। चीन जैसी आक्रामक शक्ति का सामना करने के लिए केवल सैन्य शक्ति ही पर्याप्त नहीं होगी, अपितु आर्थिक, कूटनीतिक और सूचना-आधारित रणनीतियों का भी समान महत्व होगा। भारत को इन सभी मोर्चों पर एक एकीकृत और समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
चीन की सैन्य तैयारियाँ केवल उसकी सुरक्षा संबंधी चिंताओं का प्रकटीकरण नहीं हैं—बल्कि वे उसकी वैश्विक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को साकार करने के शक्तिशाली उपकरण हैं। भारत के लिए यह खतरा न केवल सीमा पर सैनिकों की उपस्थिति तक सीमित है, अपितु यह आर्थिक प्रभुत्व, डिजिटल सुरक्षा, वैचारिक युद्ध और कूटनीतिक दबाव तक विस्तारित है।
भारत को न केवल सैन्य स्तर पर अपनी क्षमताओं को सुदृढ़ करना होगा, बल्कि राष्ट्रीय एकता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और रणनीतिक जागरूकता को भी सशक्त बनाना होगा। हमें यह समझना होगा कि इक्कीसवीं सदी के युद्ध पारंपरिक सीमाओं में ही नहीं लड़े जाएंगे—और यदि भारत को एक सशक्त शक्ति के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनानी है, तो उसे सभी मोर्चों पर पूर्ण रूप से तैयार रहना होगा। इसके लिए एक सुविचारित, दीर्घकालिक और समग्र राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता है, जो भारत को चीन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाएगी। 


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