वैश्विक व्यापार में अमेरिकी बवंडरः भारत बनेगा आसियान का संकटमोचक?
संदीप कुमार
| 30 Sep 2025 |
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विश्व की आर्थिक बिसात पर एक नया भूचाल आया है। अमेरिका की 'ट्रंपियन' व्यापार नीतियों ने एक ऐसा बवंडर खड़ा कर दिया है, जिसकी चपेट में दुनिया के कई देश आ गए हैं। इस तूफान के केंद्र में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान) भी है, जो दशकों से अपनी आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए जाना जाता रहा है। अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी-भरकम आयात शुल्कों (टैरिफ) की तलवार आसियान के सिर पर लटक रही है, जिससे उसके समृद्ध निर्यात बाजार के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
ऐसे में आसियान एक दोराहे पर है। उसके सामने चुनौती सिर्फ अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक को खोने की नहीं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को बचाए रखने की भी है। इस संकट की घड़ी में, जब पुराने रास्ते बंद हो रहे हों, तो नए रास्ते तलाशना ही बुद्धिमानी है। और यही वह मोड़ है, जहाँ भारत, आसियान के लिए एक रणनीतिक जीवनरेखा और एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में उभर सकता है।
टैरिफ का चौतरफा दबाव और आसियान का असमंजस
आसियान और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध बेहद गहरे रहे हैं। 2024 में यह व्यापार 571.7 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार कर गया था। लेकिन अमेरिका के विशाल व्यापार घाटे को कम करने की अपनी मुहिम के तहत, ट्रंप प्रशासन ने आसियान देशों पर भी भारी टैरिफ लगा दिए हैं। कंबोडिया पर 36%, वियतनाम पर 20%, इंडोनेशिया पर 19% और थाईलैंड पर 36% जैसे शुल्क इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़े झटके से कम नहीं हैं।
इस अप्रत्याशित कदम ने आसियान को एक अजीब असमंजस में डाल दिया है। एक तरफ, संगठन ने सामूहिक एकता दिखाते हुए इन टैरिफ का विरोध किया है। लेकिन दूसरी ओर, अपने आर्थिक हितों को बचाने के लिए वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों ने अमेरिका के साथ अलग से द्विपक्षीय समझौते भी किए हैं। यह स्थिति आसियान की दोहरी रणनीति को दर्शाती है—सामूहिक रूप से मजबूत दिखना, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर नुकसान कम करने की कोशिश करना।
चीन का कोण: अवसर या एक और चुनौती?
पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध आसियान के लिए एक अवसर है। जब अमेरिका चीनी सामानों पर टैरिफ लगाएगा, तो अमेरिकी खरीदार स्वाभाविक रूप से आसियान जैसे वैकल्पिक बाजारों की ओर रुख करेंगे। विश्व बैंक के एक विश्लेषण में भी यह बात सामने आई है कि व्यापार के इस डायवर्जन से आसियान को बाजार हिस्सेदारी में फायदा हो सकता है।
लेकिन यह तस्वीर इतनी सीधी नहीं है। आसियान की अर्थव्यवस्थाएं अपनी आपूर्ति श्रृंखला के लिए चीन पर बहुत गहराई से निर्भर हैं। वे चीन से कच्चा माल और मध्यवर्ती उत्पाद आयात करते हैं, उन्हें तैयार माल में बदलते हैं और फिर दुनिया भर में निर्यात करते हैं। अगर चीन की लागत बढ़ती है, तो आसियान के उत्पादों की लागत भी बढ़ेगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी। यह एक दोधारी तलवार है, जहाँ फायदा दिखने के साथ-साथ एक छिपा हुआ जोखिम भी है।
उम्मीद की किरण: भारत क्यों है आसियान के लिए एक रणनीतिक दांव?
जब आसियान के पारंपरिक बाजार अस्थिर हो रहे हों और चीन पर निर्भरता जोखिम भरी लग रही हो, तो उसे एक ऐसे भागीदार की तलाश है जो स्थिर, विशाल और विश्वसनीय हो। इन सभी पैमानों पर भारत खरा उतरता है। आसियान-भारत व्यापार समझौता इस संकट को अवसर में बदलने की कुंजी साबित हो सकता है।
- एक विशाल और बढ़ता बाजार: भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यहाँ एक विशाल मध्यम वर्ग है जिसकी क्रय शक्ति लगातार बढ़ रही है। आसियान के निर्यातक इस बढ़ती मांग का लाभ उठा सकते हैं, जो अमेरिकी बाजार में होने वाले नुकसान की भरपाई करने में मदद करेगा।
- पूरक अर्थव्यवस्थाएं: भारत और आसियान की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि पूरक हैं। भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और ऑटो पार्ट्स की जरूरत है, जिन्हें आसियान देश कुशलता से बनाते हैं। वहीं, भारत सेवा क्षेत्र, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों में मजबूत है, जिनकी आसियान में मांग है। यह एक स्वाभाविक व्यापारिक साझेदारी का आधार बनता है।
- लचीली आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण: कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनावों ने दुनिया को सिखाया है कि किसी एक देश (विशेषकर चीन) पर निर्भर रहना कितना खतरनाक हो सकता है। भारत और आसियान दोनों ही अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मिलकर, वे एक ऐसी लचीली और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला बना सकते हैं जो वैश्विक झटकों का सामना कर सके।
- मौजूदा मुक्त व्यापार समझौता (FTA): सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आसियान और भारत के बीच पहले से ही एक मुक्त व्यापार समझौता मौजूद है। इसे केवल और अधिक प्रभावी बनाने और गहरा करने की जरूरत है। सेवाओं और निवेश जैसे क्षेत्रों में समझौते को उन्नत करके दोनों पक्ष अपने आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
निष्कर्ष: भविष्य की राह
अमेरिकी टैरिफ ने वैश्विक व्यापार के नियमों को बदल दिया है। इस नई दुनिया में টিকে रहने के लिए आसियान को साहस और दूरदर्शिता दिखानी होगी। उसे अपने आंतरिक बाजार को मजबूत करने, एक ब्लॉक के रूप में सौदेबाजी करने और नए बाजारों की सक्रियता से तलाश करने की जरूरत है।
चीन एक महत्वपूर्ण भागीदार बना रहेगा, लेकिन उस पर अत्यधिक निर्भरता अब एक रणनीतिक भूल होगी। ऐसे में, भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को गहरा करना आसियान के लिए सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है। यह न केवल मौजूदा अमेरिकी व्यवधानों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान करेगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकास और स्थिरता का एक नया इंजन भी तैयार करेगा। यह एक ऐसा ऐतिहासिक अवसर है, जिसे दोनों पक्षों को पूरी दृढ़ता से पकड़ना चाहिए, क्योंकि इसे गंवाना भविष्य के लिए एक बड़ी भूल होगी।