साझा जल, विभाजित भविष्य

संदीप कुमार

 |  02 Sep 2025 |   5
Culttoday

पाकिस्तान 2025 की बाढ़ों से एक बार फिर इतिहास की सबसे भयावह प्राकृतिक आपदाओं में से एक का सामना कर रहा है। पंजाब, सिंध और खैबर पख़्तूनख़्वा (केपीके) में सैकड़ों गाँव जलमग्न हो गए, हज़ारों घर बह गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। विश्व मौसम विज्ञान अध्ययन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) के अनुसार, इस बार की बाढ़ सामान्य मानसूनी पैटर्न से 10–15% अधिक वर्षा का परिणाम है, जो सीधे-सीधे मानवजनित जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है। यह केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि वैश्विक जलवायु न्याय की अनदेखी, राज्य की नीतिगत विफलताओं और क्षेत्रीय जल-प्रबंधन के अभाव का गूंजता एक जटिल प्रश्न है। रावी नदी के उफान ने पंजाब (भारत) में भी खतरनाक स्थिति पैदा की, जिससे यह विभिषिका सीमाओं के पार साझा संकट बन गई। इस बार की तबाही 2022 की भीषण बाढ़ों की दर्दनाक याद दिलाती है, जो इस बात पर गंभीर सवाल उठाती है कि क्या हमने पिछली आपदाओं से कोई सबक सीखा है।
मानवीय त्रासदी का विशाल कैनवास
बाढ़ की विभिषिका को केवल आँकड़ों में समेटना मुश्किल है, क्योंकि ये संख्याएँ अनगिनत जिंदगियों की टूटी उम्मीदों और संघर्षों की कहानी कहती हैं। गार्जियन (30 अगस्त 2025) के अनुसार, केवल पंजाब प्रांत में ही 800 से अधिक मौतें और लगभग 1,400 गाँव जलमग्न हुए। समूचे पाकिस्तान में यह संख्या 2,000 से अधिक मृतकों और क़रीब 3 करोड़ प्रभावित आबादी तक पहुँच चुकी है। ये आंकड़े केवल शुरुआत हैं, क्योंकि दूरदराज के इलाकों में वास्तविक स्थिति कहीं अधिक भयावह हो सकती है।
एपी न्यूज़ के अनुसार, लगभग 3 लाख लोग राहत शिविरों में और 20 लाख से अधिक लोग अपने घर व आजीविका छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने को मजबूर हुए। इन विस्थापितों के लिए शिविरों में भी जीवन किसी चुनौती से कम नहीं। यहाँ भोजन, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की घोर कमी है।
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में स्वास्थ्य संकट एक और गंभीर आयाम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में बताया गया कि बाढ़ के दो सप्ताह भीतर ही 30 हज़ार से अधिक डायरिया और हैजा के मामले दर्ज हुए। इसके अतिरिक्त, टाइफॉइड, हेपेटाइटिस ई और मलेरिया जैसे जल-जनित रोग तेजी से फैले, जिससे पहले से ही कमज़ोर स्वास्थ्य ढाँचा चरमरा गया। बच्चों और वृद्धों के लिए यह स्थिति विशेष रूप से जानलेवा साबित हुई।
पाकिस्तान की 60% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, और बाढ़ ने इस पर गहरा आघात किया है। सिंध और पंजाब के धान व कपास क्षेत्रों में लगभग 25 लाख हेक्टेयर फसलें नष्ट हो गईं। यह केवल किसानों का नुकसान नहीं, बल्कि देश की समग्र खाद्य सुरक्षा पर मंडराता एक बड़ा संकट है। इससे न केवल स्थानीय स्तर पर भुखमरी का खतरा बढ़ा है, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ पड़ा है, जो पहले से ही चुनौतियों से जूझ रही है।
जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रहार
डब्ल्यूडब्ल्यूए के अध्ययन में स्पष्ट कहा गया कि पाकिस्तान की मौजूदा बाढ़ें केवल एक ‘प्राकृतिक घटना’ नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। यह इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे मानवजनित गतिविधियाँ वैश्विक मौसम पैटर्न को बदल रही हैं, जिससे संवेदनशील क्षेत्रों में चरम मौसमी घटनाएँ बढ़ रही हैं।
तापमान वृद्धि: दक्षिण एशिया में औसत तापमान पिछले 100 वर्षों में लगभग 1.1°C बढ़ चुका है। यह वृद्धि न केवल अत्यधिक गर्मी की लहरों को जन्म देती है, बल्कि वायुमंडल में अधिक नमी धारण करने की क्षमता भी बढ़ाती है। परिणामस्वरूप, जब वर्षा होती है, तो वह पहले की तुलना में अधिक तीव्र और केंद्रित होती है, जिससे अचानक बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
वर्षा पैटर्न में बदलाव: 2025 की मानसून अवधि में पाकिस्तान के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में सामान्य से 40% अधिक वर्षा हुई। लेकिन यह केवल वर्षा की मात्रा नहीं, बल्कि उसके पैटर्न में आया बदलाव है जो अधिक विनाशकारी है। कम समय में अत्यधिक बारिश, विशेषकर पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में एक साथ, नदियों को उफान पर ला देती है और जल निकासी प्रणालियों को ध्वस्त कर देती है।
हिमनद पिघलना और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ): कराकोरम और हिमालय की पहाड़ियों से आने वाले ग्लेशियर, जिन्हें अक्सर 'तीसरा ध्रुव' कहा जाता है, वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण तेजी से पिघल रहे हैं। इससे ग्लेशियर झीलों का निर्माण होता है और उनके टूटने से 'ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड' (जीएलओएफ) जैसी विनाशकारी घटनाएँ होती हैं, जो मानसून की वर्षा से नदियों में आए पानी को और भी भयावह बना देती हैं। पाकिस्तान का उत्तरी भाग ऐसे खतरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए विशेष रूप से कमजोर बनाती है। यह देश शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित है, जहाँ जल संसाधनों का प्रबंधन पहले से ही एक चुनौती है। जलवायु परिवर्तन ने इस चुनौती को और गहरा कर दिया है, जिससे पाकिस्तान 'जलवायु भेद्यता हॉटस्पॉट' बन गया है।
कुप्रबंधन की अंतहीन गाथा
पाकिस्तान के थिंक टैंक जर्नल ने इस आपदा को 'क्लाइमेट कैओस मीट्स ह्यूमन नेगलेक्ट' करार दिया है, जो पाकिस्तान की प्रशासनिक और नीतिगत विफलताओं का सटीक चित्रण है। यह केवल जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं, बल्कि दशकों के कुप्रबंधन और अदूरदर्शिता का भी फल है।
अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: पाकिस्तान में दशकों से बाढ़ नियंत्रण के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश की भारी कमी रही है। पुराने बाँध और जलाशय पर्याप्त नहीं हैं, और कई तटबंध (लेवी) जर्जर अवस्था में हैं, जो भारी जलप्रवाह को सहन नहीं कर पाते। जल निकासी प्रणालियाँ अविकसित या अवरुद्ध हैं, जिससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में जलभराव की समस्या विकराल रूप ले लेती है। 2022 की बाढ़ के बाद भी इन संरचनाओं को मजबूत करने या नई परियोजनाएँ शुरू करने में अपेक्षित प्रगति नहीं हुई।
प्रशासनिक तैयारी का अभाव: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) जैसी एजेंसियों के पास आपदा से निपटने के लिए संसाधनों (मानव और वित्तीय) की भारी कमी रही है। अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) आपदा प्रबंधन के बजाय, प्रतिक्रियाशील (रिएक्टिव) दृष्टिकोण हावी रहा है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ (अर्ली वार्निंग सिस्टम) अपर्याप्त हैं और उनका संचार तंत्र भी कमजोर है, जिससे समुदायों को समय पर सूचित कर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाना मुश्किल हो जाता है। राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और भ्रष्टाचार भी इन विफलताओं में एक प्रमुख कारक रहे हैं।
अनियोजित शहरी विस्तार: लाहौर, मुल्तान और कराची जैसे प्रमुख शहरों के आसपास अनियोजित निर्माण और अतिक्रमण ने प्राकृतिक जल निकासी मार्गों को अवरुद्ध कर दिया है। नदियों के किनारों और बाढ़ के मैदानों पर अवैध बस्तियाँ बनने से न केवल बाढ़ का खतरा बढ़ा है, बल्कि निकासी और राहत कार्यों में भी बाधा उत्पन्न हुई है। ठोस कचरा प्रबंधन की कमी से जल निकासी प्रणालियाँ जाम हो जाती हैं, जिससे मामूली बारिश भी शहरी बाढ़ का कारण बन जाती है।
अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भरता का दुष्चक्र: पाकिस्तान आपदा के बाद हमेशा अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर रहा है। 2022 की बाढ़ के बाद भी संरचनात्मक सुधार और दीर्घकालिक लचीलापन (रेसिलिएंस) विकसित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए, और पाकिस्तान फिर से अंतरराष्ट्रीय राहत पर निर्भर हो गया। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जहाँ आपदा के बाद तात्कालिक राहत तो मिलती है, लेकिन मूल कारणों का स्थायी समाधान नहीं होता, जिससे अगली आपदा का मंच तैयार होता रहता है।
भू-राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
पाकिस्तान की बाढ़ विभिषिका ने वैश्विक मंच पर जलवायु न्याय और क्षेत्रीय सहयोग के सवालों को फिर से केंद्र में ला दिया है।
लॉस एंड डैमेज फंड: सीओपी28 (दुबई, 2023) में विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से होने वाले 'नुकसान और क्षति' की भरपाई के लिए लॉस एंड डैमेज फंड की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम था। पाकिस्तान टुडे के अनुसार, पाकिस्तान अब इस फंड से 5 अरब डॉलर की सहायता का दावा कर रहा है। यह फंड उन देशों के लिए उम्मीद की किरण है जो ऐतिहासिक रूप से कम उत्सर्जन के बावजूद जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे परिणामों को भुगत रहे हैं। हालांकि, इस फंड का वास्तविक वितरण, इसकी पारदर्शिता और पर्याप्तता अभी भी सवालों के घेरे में है। जलवायु न्याय की अवधारणा तब तक अधूरी रहेगी जब तक विकसित देश अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार कर उचित फंडिंग प्रदान नहीं करते।
भारत-पाक जल संबंध और सिंधु जल संधि: सिंधु जल संधि (1960) के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी का बँटवारा तय है। यह संधि दशकों से दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद पानी के प्रबंधन में एक स्थिर ढाँचा प्रदान करती रही है। लेकिन बढ़ते जलवायु दबाव ने इस संधि की सीमाओं को उजागर कर दिया है। यह संधि मुख्य रूप से पानी के बँटवारे पर केंद्रित है, न कि बाढ़ प्रबंधन या अत्यधिक जल प्रवाह के समन्वित निपटान पर। जब ग्लेशियर पिघलते हैं और मानसून चरम पर होता है, तो दोनों देशों को एक साझा और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो मौजूदा संधि में पूरी तरह से परिलक्षित नहीं होता।
क्षेत्रीय अस्थिरता: जलवायु आपदाएँ आंतरिक विस्थापन, खाद्य असुरक्षा और आर्थिक संकट को जन्म देती हैं, जो बदले में सामाजिक अशांति और भू-राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती हैं। पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देश में ऐसी स्थिति के क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थ हो सकते हैं, जिससे सुरक्षा चुनौतियाँ और बढ़ सकती हैं।
रावी का रोना
पाकिस्तान की बाढ़ का प्रभाव सीमाओं के पार भारत तक फैला, विशेष रूप से रावी नदी के उफान ने साझा संकट की भयावह तस्वीर पेश की।
पंजाब (भारत) पर असर: अगस्त 2025 में रावी नदी के उफान से गुरदासपुर और पठानकोट जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आई बाढ़ का असर भारतीय पंजाब के निचले इलाकों तक पहुँचा, जिससे स्पष्ट हो गया कि नदियाँ कोई सीमा नहीं मानतीं।
विस्थापन और क्षति: पंजाब सरकार के आँकड़ों के अनुसार, 70 से अधिक गाँव खाली कराए गए और लगभग 50,000 लोग अस्थायी शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए। ठीक पाकिस्तान की तरह, यहाँ भी लोगों ने अपनी ज़मीन, घर और आजीविका खो दी। बाढ़ ने 10,000 हेक्टेयर से अधिक धान और मक्का की फसल को नुकसान पहुँचाया, जिससे भारतीय किसानों को भी भारी आर्थिक चोट पहुँची।
अवसंरचना का टूटना: सीमा पर स्थित सड़क और पुलों का संपर्क टूट गया, जिससे न केवल स्थानीय आवागमन बाधित हुआ, बल्कि राहत और बचाव कार्यों में भी अड़चनें आईं। यह दोनों देशों के लिए एक समान चुनौती थी।
संयुक्त चुनौती, राजनीतिक दीवारें: भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के किसानों, व्यापारियों और सीमा समुदायों पर इस साझा आपदा का गहरा असर हुआ। लोगों की पीड़ा समान थी, लेकिन राजनीतिक तनाव ने किसी संयुक्त राहत प्रयास की संभावना को लगभग समाप्त कर दिया। ऐसी स्थिति में मानवीय संकट को भी भू-राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, जो त्रासदी को और गहरा करता है और प्रभावी समाधानों में बाधा डालता है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जब तक क्षेत्रीय सहयोग नहीं होगा, जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटना असंभव है।
अदृश्य घाव और टूटती उम्मीदें
बाढ़ केवल भौतिक तबाही नहीं लाती, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी तोड़ देती है और गहरे मनोवैज्ञानिक घाव छोड़ जाती है। लोगों की गवाहियाँ अक्सर आँकड़ों से ज़्यादा मार्मिक होती हैं। गार्जियन ने एक महिला का उद्धरण प्रकाशित किया: 'पानी सब कुछ ले गया—घर, फसलें, और हमारे बच्चों की किताबें तक। अब हम किस सहारे जिएँगे?' यह एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि लाखों लोगों की कहानी है जिनकी उम्मीदें पानी में बह गईं।
महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित: लगभग 60% विस्थापितों में महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं। उनके लिए स्वास्थ्य सेवाएँ, सुरक्षित आश्रय और शिक्षा की व्यवस्था लगभग ठप हो गई है। राहत शिविरों में महिलाओं को स्वच्छता, सुरक्षा और गरिमा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बच्चों की शिक्षा बाधित होती है, और कुपोषण तथा बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। मनोवैज्ञानिक आघात, डर और अनिश्चितता उनके भविष्य पर गहरी छाप छोड़ते हैं।
सीमा पार कठिनाई और साझा पीड़ा: भारत और पाकिस्तान के सीमावर्ती गाँवों में समान पीड़ा है। दोनों तरफ के लोग अपने घर, खेत और भविष्य खो चुके हैं। लेकिन विभाजित राजनीति इन्हें जोड़ने के बजाय अलग करती है। सीमा पार मानवीय सहायता, डेटा साझाकरण या संयुक्त निगरानी जैसे कदम शायद हजारों जिंदगियां बचा सकते थे, लेकिन राजनीतिक अड़चनों ने इसे असंभव बना दिया। यह मानवीय भावना और सहयोग की आवश्यकता पर एक दुखद टिप्पणी है।
भविष्य की राह
पाकिस्तान की मौजूदा बाढ़ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए बहुआयामी और समन्वित दृष्टिकोण आवश्यक है।
क्षेत्रीय जल प्रबंधन तंत्र: भारत और पाकिस्तान को सिंधु जल संधि की सीमाओं से आगे बढ़कर जलवायु-आधारित साझा जल प्रबंधन तंत्र विकसित करना चाहिए। इसमें रियल-टाइम डेटा साझाकरण, संयुक्त बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना, और दोनों देशों के बीच नदियों के ऊपरी और निचले हिस्सों में बाँधों व जलाशयों के समन्वित संचालन पर चर्चा शामिल होनी चाहिए। संयुक्त नदी बेसिन आयोगों का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और जलवायु न्याय: लॉस एंड डैमेज फंड को केवल घोषणा नहीं, बल्कि अनिवार्य और पर्याप्त वितरण की दिशा में ले जाना होगा। विकसित देशों को अपनी जलवायु संबंधी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से लेना चाहिए और विकासशील देशों को अनुकूलन (एडैप्टेशन) और शमन (मिटिगेशन) प्रयासों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
 


Browse By Tags

RECENT NEWS

शांति का मायाजाल
अनवर हुसैन |  02 Sep 2025  |  12
साझा जल, विभाजित भविष्य
मो. सैफुद्दीन एवं कृष्ण प्रताप गुप्ता |  02 Sep 2025  |  5
ढाका की नई करवट
संतु दास |  02 Sep 2025  |  4
ट्रंप की क्लास व यूरोप की चुप्पी
अनवर हुसैन |  02 Sep 2025  |  14
अकालः असली गुनाहगार कौन?
मारियल फेरागामो |  02 Sep 2025  |  4
अफ्रीका में भारत का दांव
आकांक्षा शर्मा |  01 Aug 2025  |  22
युद्धोन्मादी ड्रैगन?
जलज श्रीवास्तव |  01 Aug 2025  |  22
BRICS बनाम डॉलर: नई वैश्विक जंग की दस्तक
श्रेया गुप्ता |  08 Jul 2025  |  30
गाजा की त्रासदी: खून, आंसू और उम्मीद
श्रेया गुप्ता |  04 Jul 2025  |  39
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to cultcurrent@gmail.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under UDHYOG AADHAR-UDYAM-WB-14-0119166 (Govt. of India)