गाजा में बीते कुछ दिनों से जो हो रहा है, वह दिल दहला देने वाला है। इज़राइल के हवाई हमले एक बार फिर तेज़ हो गए हैं। इस बार निशाना बने हैं आम लोग—वो भी ऐसे वक्त में जब वे समंदर किनारे अल-बक्का कैफे में कुछ पल की राहत महसूस कर रहे थे। अचानक हुए हमले में करीब 24 से 36 लोग मारे गए। एक स्कूल, जहां विस्थापित परिवारों ने शरण ली हुई थी, वहां भी बम गिरा और कम से कम 17 लोगों की जान चली गई।
सबसे भयानक हादसा वह था जब गाजा के मशहूर अस्पताल के निदेशक डॉक्टर मारवान सुल्तान और उनका पूरा परिवार एक मिसाइल हमले में मारा गया। इज़राइली सेना का कहना है कि उनका निशाना एक हमास सदस्य था, लेकिन मारे गए तो मासूम लोग।
सिर्फ राहत सामग्री लेने की कोशिश कर रहे 94 लोग बमबारी में मारे गए। किसी को खाने की तलाश थी, किसी को पानी की। टेंटों पर सोते हुए, UN ट्रकों के पास कतार में खड़े हुए लोग मलबे के नीचे दब गए। किसी को पता नहीं चला कि आख़िरी सांस कब, कहां और कैसे निकल गई। इज़राइल का दावा है कि ये सारे हमले हमास के खिलाफ़ हैं—क्योंकि उनका आरोप है कि हमास अपने लड़ाकों को आम लोगों के बीच छुपाकर रखता है। वहीं, हमास का कहना है कि इज़राइल जानबूझकर आम नागरिकों को निशाना बना रहा है और भूख और दवाओं की कमी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
इस आग की जड़ कहाँ है?
यह सब 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ, जब हमास ने एक बड़ा हमला किया और 1,200 से ज़्यादा इज़राइली मारे गए। इसके बाद इज़राइल का जवाब था—सख्त हवाई हमले, सीमा बंद करना और ज़मीन पर सेना भेजना। तब से गाजा लगातार जल रहा है।
दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते। हमास कहता है—हमें गारंटी चाहिए, युद्धबंदी, और कैदियों की रिहाई। इज़राइल कहता है—पहले हमास को पूरी तरह खत्म करो, तब बात होगी। इस लड़ाई में आम लोग राजनीति का शिकार बन गए हैं। अस्पताल, स्कूल और रिलीफ कैंप तक अब सुरक्षित नहीं बचे।
इंसानी संकट: भूख, बीमारी और टूटा हौसला
गाजा में हालात बेकाबू हैं। अस्पताल बंद हो चुके हैं, दवाइयां नहीं हैं, खाने को कुछ नहीं। 90% से ज़्यादा घर या तो टूट चुके हैं या रहने लायक नहीं बचे। 19 लाख से ज़्यादा लोग अपने ही मुल्क में बेघर हो गए हैं। पोलियो जैसे रोग लौट आए हैं, और हर कहीं डर फैला है।
हर धमाके के बाद कोई बच्चा अनाथ होता है, कोई माँ अपने बच्चों को ढूंढती रह जाती है और कोई परिवार हमेशा के लिए बिखर जाता है।
दुनिया क्या कह रही है?
दुनियाभर से निंदा हो रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगाया है कि इज़राइल भूख को एक युद्ध नीति की तरह इस्तेमाल कर रहा है। दक्षिण अफ्रीका ने तो अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा भी दायर किया है। WHO ने कहा है कि "शांति ही सबसे बड़ी दवा है"।
लेकिन सिर्फ बयान देने से राहत नहीं आती। जब तक गोली नहीं रुकेगी, राहत भी नहीं पहुँचेगी।
एक उम्मीद... लेकिन बहुत नाज़ुक
एक नई 60-दिन की संघर्षविराम योजना की बात चल रही है—अमेरिका, कतर और मिस्र मिलकर इस कोशिश में हैं। इसमें बंदियों की अदला-बदली, इजराइली फौज की वापसी और बड़ी मात्रा में मानवीय सहायता शामिल है। इजराइल ने इस पर सैद्धांतिक सहमति दी है और हमास फिलहाल आपसी बातचीत कर रहा है।
लेकिन ज़मीन पर हालात अभी भी बहुत नाज़ुक हैं। कई कट्टर गुट इसका विरोध कर रहे हैं, और भरोसे की कमी सबसे बड़ी दीवार बनी हुई है।
क्या आगे शांति है… या फिर नई तबाही?
अगर संघर्षविराम सफल रहा, तो शायद अस्पतालों को फिर से खड़ा किया जा सकेगा, राहत पहुँचाई जा सकेगी और लोगों को एक रात चैन की नींद मिल सकेगी। लेकिन अगर यह टूटता है, तो हालात और भी बेकाबू हो सकते हैं।
गाजा इस वक़्त सिर्फ़ एक युद्धभूमि नहीं है—यह एक जिंदा नरक है। और अगर दुनिया ने मिलकर अभी कोई ठोस क़दम नहीं उठाया, तो हम एक और पीढ़ी को डर, भूख और दर्द के हवाले कर देंगे।
श्रेया गुप्ता कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।