ट्रंप-मुनीर मुलाकात: रणनीतिक संदेश या सामरिक कूटनीति?

संदीप कुमार

 |  18 Jun 2025 |   9
Culttoday

दुनियाभर की नजरें उस समय पाकिस्तान और अमेरिका की सैन्य कूटनीति पर टिक गईं, जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर के अमेरिका दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की घोषणा हुई।

व्हाइट हाउस में प्रस्तावित लंच और विदेश मंत्री मार्को रुबियो एवं रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ के साथ होने वाली उच्चस्तरीय वार्ताएं, इस दुर्लभ दौरे को सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती हैं। यह दौरा उस समय हो रहा है जब कुछ दिन पहले ही यह रिपोर्ट सामने आई थी कि मुनीर को अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ समारोह में आमंत्रित किया गया है, जिसे अमेरिकी रक्षा मंत्रालय और व्हाइट हाउस ने तत्काल खंडन करते हुए कहा कि किसी विदेशी सैन्य अधिकारी को औपचारिक रूप से निमंत्रण नहीं भेजा गया।

हालांकि, इस खंडन की जरूरत खुद बताती है कि मुनीर की अमेरिका में मौजूदगी कितनी राजनीतिक रूप से संवेदनशील है — खासकर भारत के लिए, जो लंबे समय से अमेरिका-पाकिस्तान सैन्य संबंधों को संदेह की दृष्टि से देखता आया है। 

प्रतीकवाद के परे: सैन्य कूटनीति का स्पष्ट संदेश

जहां निमंत्रण न दिए जाने का खंडन शायद भारत को शांत करने के लिए किया गया हो, वहीं जनरल मुनीर की यह उच्चस्तरीय मुलाकातें दर्शाती हैं कि यह यात्रा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि मौलिक और रणनीतिक संवाद का हिस्सा है। यह दर्शाता है कि भले ही बाहरी दिखावा संयमित हो, लेकिन पाकिस्तान-अमेरिका सैन्य संवाद अभी जीवित है और महत्व रखता है।

ट्रंप और मुनीर की मुलाकात का निहितार्थ

भले ही यह मुलाकात अनौपचारिक हो, लेकिन ट्रंप और मुनीर के बीच प्रस्तावित लंच एक गहरा कूटनीतिक संदेश देता है।

यह मुलाकात तीन प्रमुख कारणों से महत्वपूर्ण मानी जा रही है:

अफगानिस्तान और आतंकवाद विरोध:

अमेरिका अब भी अफगान क्षेत्र में सक्रिय चरमपंथी गुटों पर नजर रखने के लिए पाकिस्तान की खुफिया जानकारी और सहयोग पर निर्भर करता है। ISIS-K के बढ़ते प्रभाव और तालिबान सरकार की वैधता के संकट के बीच पाकिस्तान एक अहम कड़ी बना हुआ है।

चीन का बढ़ता प्रभाव:

पाकिस्तान का चीन के साथ बढ़ता रक्षा सहयोग और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) अमेरिका के लिए चिंता का कारण है। अमेरिका शायद इस दौरे के जरिए पाकिस्तान को चीनी प्रभाव के विकल्प के रूप में पश्चिमी सहयोग की संभावना दिखाना चाहता है।

मध्य पूर्व और ईरान की स्थिति:

ईरान-इस्राइल तनाव के बीच, अमेरिका को क्षेत्र में रणनीतिक गहराई की तलाश है। ईरान से लगी सीमा और खाड़ी देशों के साथ जटिल संबंधों के चलते, पाकिस्तान को एक मध्यस्थ के रूप में देखा जा सकता है — खासकर आतंकवाद और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में।

रुबियो और हेगसेथ से मुलाकातें: रक्षा संवाद की पुनर्रचना

ट्रंप के अलावा, जनरल मुनीर की विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ से मुलाकात भी तय है।

इन बैठकों का मुख्य उद्देश्य है — खुफिया सहयोग को औपचारिक बनाना, रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करना और क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीतियों का मूल्यांकन। रुबियो, जो चीन और ईरान को लेकर सख्त रुख रखते हैं, पाकिस्तान से उसकी दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिबद्धताओं पर स्पष्टता मांग सकते हैं। वहीं, हेगसेथ के साथ बातचीत में संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, रक्षा सौदे और आपातकालीन रणनीतियाँ भी एजेंडे में हो सकती हैं।

भारत की सतर्क नजर

भारत इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से देखेगा। नई दिल्ली का मानना रहा है कि पाकिस्तान की सेना क्षेत्रीय अस्थिरता की जड़ है और अमेरिका का उसके साथ संवाद इस भूमिका को वैधता देता है। विशेषकर उस समय जब अमेरिका-भारत रक्षा संबंध QUAD, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और तकनीकी साझेदारी के ज़रिए मजबूत हो रहे हैं — तब मुनीर की व्हाइट हाउस उपस्थिति भारत की राजनयिक स्थिति को जटिल बना सकती है। हालांकि, अमेरिका यह कह सकता है कि यह 'जीरो सम गेम' नहीं है। बल्कि यह पाकिस्तान को चीन के प्रभाव से दूर रखने की यथार्थवादी कूटनीति है, जबकि भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी भी बनी रहे।

संदेशों और रणनीतियों के बीच

जनरल मुनीर की यह यात्रा परेड या औपचारिक स्वागत समारोह जैसी भव्यता के साथ भले न हो, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि अमेरिका दक्षिण एशिया की नई रणनीति तैयार कर रहा है — जिसमें चीन की बढ़त को थामना, अफगान क्षेत्र की अस्थिरता को नियंत्रित करना और ईरान के व्यवहार को संतुलित रखना शामिल है — और यह सब भारत को साथ लेकर, लेकिन पाकिस्तान को पूरी तरह छोड़े बिना।   पाकिस्तान की सेना देश की सबसे प्रभावशाली संस्था के रूप में उभर रही है, यह कूटनीतिक पहल अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों की निरंतरता ही नहीं, बल्कि उनके अगले अध्याय की भूमिका तय कर रही है — जहां एक लंच, कभी-कभी कानून से भी ज्यादा असरदार साबित हो सकता है।

आकांक्षा शर्मा  कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।


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