बांग्लादेश में टीबी के खिलाफ चल रही लड़ाई अचानक धीमी पड़ गई है, और इसकी सबसे बड़ी वजह है अमेरिका की ओर से अचानक रोकी गई मदद। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में USAID द्वारा दिया जाने वाला 48 मिलियन डॉलर का फंड रुकने से देश की टीबी नियंत्रण प्रणाली हिल गई है। बांग्लादेश, जो दक्षिण एशिया के उन देशों में से एक है जहां टीबी सबसे ज्यादा फैलता है, पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी के खिलाफ काफी हद तक जीत दर्ज करता आ रहा था। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं।
ढाका में रहने वाले 35 वर्षीय मोहम्मद परवेज की कहानी बहुत कुछ बयां करती है। वे मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (MDR-TB) से जूझ रहे हैं। इलाज लंबा, खर्चीला और बेहद थकाने वाला है। पहले उन्हें USAID समर्थित क्लिनिक से मुफ्त दवाएं, सलाह और नियमित जांच मिलती थी। पर अब इलाज अधूरा छूटने की चिंता उन्हें खा रही है। “अगर दवा बीच में छूट गई, तो शायद मैं बच न सकूं,” परवेज ने आंखों में डर लिए कहा।
इसी तरह मोहम्मदपुर की 17 वर्षीय काजोल भी इलाज के बीच में अटक गई है। उसने बताया कि उसे अब न दवा मिल रही है, न ही नियमित जांच। NGO और स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि अगर मरीजों का इलाज अधूरा रह गया, तो टीबी की दवा बेअसर हो जाएगी और ये बीमारी और ज्यादा खतरनाक रूप ले लेगी।
इस फंड से बांग्लादेश में करीब 52 मिलियन लोगों की जांच की गई थी और हजारों मामलों की समय रहते पहचान हो पाई थी। विशेष तौर पर बच्चों और दवा-प्रतिरोधी मामलों की पहचान और इलाज में USAID का बड़ा योगदान था। लेकिन अब एक झटके में ये सारे कार्यक्रम या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर हैं। ICDDR,B जैसे संस्थानों ने कर्मचारियों को नौकरी से निकालना शुरू कर दिया है। इलाज, जांच और डेटा संग्रहण जैसे काम ठप पड़ गए हैं।
ढाका के टीबी अस्पताल की डॉक्टर आयशा अख्तर बताती हैं कि टीबी उन्मूलन का जो लक्ष्य 2035 तक रखा गया था, वह अब खतरे में है। “इतने वर्षों की मेहनत से जो सिस्टम बना था, वह अब बिखरने लगा है,” उन्होंने कहा। BRAC की फरहाना निशात कहती हैं, “थोड़े समय तक तो सिस्टम झेल लेगा, लेकिन अगर फंडिंग जल्द नहीं आई, तो हालात हाथ से निकल जाएंगे।”
बांग्लादेश में साल 2024 में 3 लाख से ज्यादा टीबी केस सामने आए, जिनमें से करीब 17 फीसदी मरीज इलाज नहीं करवा पाए। बिना इलाज के ये लोग दूसरों में बीमारी फैलाने का भी खतरा बनते हैं। WHO और Stop TB Partnership जैसी संस्थाएं भी चेतावनी दे रही हैं कि अगर USAID की फंडिंग लंबे समय तक बंद रही, तो आने वाले वर्षों में लाखों नई मौतें हो सकती हैं।
सबसे दुखद यह है कि यह केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह उन परिवारों की कहानी है जो हर दिन अपने किसी सदस्य को मौत से लड़ते देख रहे हैं। मोहम्मद परवेज, काजोल जैसे हजारों लोग बीच रास्ते में छोड़ दिए गए हैं। यह सिर्फ एक फंडिंग की बात नहीं है—यह विश्वास की बात है, जीवन की बात है। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बांग्लादेश में टीबी के खिलाफ हुई सालों की मेहनत मिट्टी में मिल सकती है। और इसकी कीमत सबसे ज्यादा वही लोग चुकाएंगे, जो पहले से ही सबसे कमजोर हैं।
श्रेया गुप्ता कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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