टैरिफ का तमाशा: क्या अमेरिका लूट रहा भारत की खेती?
जलज वर्मा
| 02 May 2025 |
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दो अप्रैल 2025 को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने भारत के कृषि जगत में भूचाल ला दिया। उन्होंने भारतीय बासमती चावल पर 26% का 'प्रतिसंवेदनात्मक' टैरिफ लगा दिया। ट्रंप ने इसे अमेरिका के लिए 'लिबरेशन डे' बताया, उनका दावा था कि इससे अमेरिका का व्यापार घाटा कम होगा और घरेलू उद्योगों को सुरक्षा मिलेगी। लेकिन इस कदम ने भारत के बासमती चावल उत्पादकों की नींद उड़ा दी। क्या यह सिर्फ एक व्यापारिक फैसला है, या फिर एक सोची-समझी रणनीति के तहत भारतीय किसानों को बर्बाद करने की साजिश?
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल निर्यातक देश है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने 59.4 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिसमें पंजाब और हरियाणा की प्रमुख भूमिका रही। इस चावल की खुशबू विदेशों में भी भारत की पहचान बन गई थी। अमेरिका भारतीय बासमती चावल का एक बड़ा खरीदार था और अब तक सिर्फ 10% आयात शुल्क लगाता था। इससे भारतीय उत्पादकों को एक अच्छी प्रतिस्पर्धात्मकता मिलती थी, वे अपनी फसलें बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे। लेकिन ट्रंप के नए टैरिफ ने इस सुनहरे सपने को चकनाचूर कर दिया।
अप्रैल 2025 में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत आए। मकसद था दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को और मजबूत करना। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और कई व्यापारिक समझौतों पर बातचीत की। वेंस ने भारत से अमेरिकी रक्षा उपकरण खरीदने और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की बात की। बदले में भारत को उम्मीद थी कि अमेरिका बासमती चावल पर लगे टैरिफ में कुछ छूट देगा, लेकिन यह समझौता अभी तक कागजों से ज़मीन पर नहीं उतर पाया है। क्या वेंस का दौरा सिर्फ एक दिखावा था, या वाकई अमेरिका भारत के साथ दोस्ती निभाना चाहता है?
नए टैरिफ के कारण भारतीय बासमती चावल की अमेरिकी बाजार में कीमत बढ़ गई है, जिससे उसकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो गई है। पाकिस्तान, जो पहले से ही कम कीमत पर चावल बेचता था, अब इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिकी आयातक भी भारतीय निर्यातकों पर दबाव बना रहे हैं कि वे 26% टैरिफ का बोझ खुद उठाएं, जिससे भारतीय निर्यातकों की हालत और भी खराब हो रही है।
छोटे किसानों पर तो मानो आसमान ही टूट पड़ा है। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे टैरिफ का बोझ उठा सकें, और अगर उनकी फसलें नहीं बिकती हैं, तो उनके परिवार भूखे मर जाएंगे। क्या ये सिर्फ व्यापार है, या फिर किसी की जान लेने का खेल?
भारत के बासमती चावल उत्पादक किसान इस मुश्किल दौर में सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं। किसान यूनियनों ने सरकार से गुहार लगाई है कि वे अमेरिका के साथ बातचीत करके इस टैरिफ को हटवाएं। उनका कहना है कि अगर सरकार ने उनकी मदद नहीं की, तो उन्हें बासमती की खेती छोड़नी पड़ेगी और साधारण धान की खेती करनी पड़ेगी। इससे बासमती चावल की खेती में भारी गिरावट आ सकती है, और भारत अपनी एक पहचान खो देगा।
सरकार पर दबाव है कि वह किसानों के हितों की रक्षा करे, लेकिन अमेरिका के आगे झुकना भी आसान नहीं है। क्या सरकार कूटनीति और व्यापार के इस मुश्किल खेल में किसानों की नैया पार लगा पाएगी?
यह सिर्फ बासमती चावल पर लगे टैरिफ का मामला नहीं है। यह भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों, किसानों की जिंदगी और देश की अर्थव्यवस्था का सवाल है। यह एक चेतावनी है कि दुनिया में व्यापार के नियम कितने बेरहम हो सकते हैं, और किस तरह एक फैसला लाखों लोगों की जिंदगी बदल सकता है।
भारत सरकार को इस चुनौती का डटकर सामना करना होगा। उसे न सिर्फ अमेरिका के साथ बातचीत करनी होगी, बल्कि अपने किसानों को भी हर संभव मदद देनी होगी। बासमती सिर्फ एक फसल नहीं, भारत की शान है, और उसे बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी होगी। क्या भारत इस चावल-युद्ध में जीत पाएगा, या फिर उसके किसान इस बेरहम दुनिया में हार मान लेंगे? वक्त ही बताएगा। पर इतना तय है कि इस जंग में हार-जीत से ज्यादा, इंसानियत और हमदर्दी की ज़रूरत है।