नया कैलेडोनिया इस समय एक गहरे सामाजिक संकट से जूझ रहा है। फ्रांस द्वारा लाए गए विवादास्पद चुनावी सुधारों ने वहां हिंसक प्रदर्शनों को जन्म दिया है। इन सुधारों के अंतर्गत उन फ्रांसीसी नागरिकों को भी वोट देने का अधिकार दिया गया है जो पिछले 10 वर्षों से इस द्वीप पर रह रहे हैं। यह बदलाव वहाँ के मूल निवासी कानक समुदाय के लिए आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता की दिशा में एक गंभीर खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
नया कैलेडोनिया दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक फ्रांसीसी विदेशी क्षेत्र है जिसे 1853 में फ्रांस ने निकेल संसाधनों के दोहन के लिए अपने अधीन किया था। 1998 में हुए 'नोमिया समझौते' के तहत नया कैलेडोनिया को कुछ हद तक स्वायत्तता दी गई थी और स्थानीय राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित किया गया था। परंतु, 2024 में आए संविधान संशोधन ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया। कानक नेताओं ने इस बदलाव को अपने अधिकारों और संप्रभुता पर हमला माना जिससे राजधानी नोमिया में हिंसक प्रदर्शन हुए।
हालांकि अक्टूबर 2024 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस बिल को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया, जिससे अस्थायी रूप से शांति बहाल हुई, लेकिन मूल समस्याएं अब भी जस की तस बनी हुई हैं। यह सवाल अभी भी बना हुआ है — क्या यह कदम केवल तात्कालिक अशांति को शांत करने के लिए उठाया गया था, या यह एक दीर्घकालिक रणनीतिक चाल थी?
नया कैलेडोनिया फ्रांस के इंडो-पैसिफिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह क्षेत्र न केवल महत्वपूर्ण फ्रांसीसी सैन्य ठिकानों का घर है बल्कि इसमें विश्व के सबसे बड़े निकेल भंडार भी मौजूद हैं। इसके माध्यम से फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में बना रह सकता है। लेकिन द्वीप में अस्थिरता और आंदोलन, फ्रांस की इस स्थिति को कमजोर बना सकते हैं। चीन इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। उसने खुद को एक "उपनिवेश विरोधी" ताकत के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रशांत द्वीप देशों में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। यह संकट न केवल फ्रांस की छवि को नुकसान पहुँचा रहा है बल्कि इसे संयुक्त राष्ट्र से भी आलोचना झेलनी पड़ रही है।
फ्रांस द्वारा अपनाई गई नीति को कई लोग आधुनिक समय के उपनिवेशवादी रवैये के रूप में देख रहे हैं। कानक समुदाय के अधिकारों को नजरअंदाज करना, उनकी संप्रभुता पर चोट करना और सैन्य बल का प्रयोग करना — यह सब उस औपनिवेशिक अतीत की याद दिलाता है जिसे फ्रांस ने पीछे छोड़ने का दावा किया था। प्रशांत द्वीप समूह, जिनमें से कई खुद उपनिवेशवाद का शिकार रहे हैं, इस प्रकार की घटनाओं के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। यही कारण है कि इस संकट ने क्षेत्रीय विश्वास को गहरी चोट पहुँचाई है।
ऑस्ट्रेलिया, जो फ्रांस का करीबी सहयोगी है, उसने सामरिक चुप्पी रखते हुए अपने समर्थन को राहत और छात्रवृत्ति के रूप में प्रकट किया है। वहीं, फिजी और वानुअतु जैसे कुछ प्रशांत द्वीप देशों ने कानक समुदाय के आत्मनिर्णय के समर्थन में कूटनीतिक बयान दिए हैं और निष्पक्ष जनमत संग्रह की माँग की है। हालांकि उनकी प्रतिक्रिया संतुलित और सीमित रही है ताकि फ्रांस और चीन के साथ उनके संबंध प्रभावित न हों। चीन इस संकट में अवसर तलाश रहा है। वह खुद को "प्रशांत द्वीपों के मित्र" के रूप में प्रस्तुत कर रहा है और क्षेत्र में आर्थिक निवेश बढ़ा रहा है, खासकर मछली पकड़ने और खनिज संसाधनों पर नियंत्रण की कोशिश में है।
अब प्रश्न यह है कि फ्रांस क्या चुनेगा — नया कैलेडोनिया पर नियंत्रण बनाए रखते हुए इंडो-पैसिफिक में अपनी शक्ति बनाए रखना या कानक समुदाय और क्षेत्रीय सहयोगियों की नाराजगी झेलना। यदि फ्रांस इस संकट का समाधान सही तरीके से नहीं करता, तो वहाँ फिर से हिंसक आंदोलन शुरू हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ्रांस की स्थिति और अधिक कमजोर हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप उसके पारंपरिक सहयोगी — अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया — भी उससे दूरी बना सकते हैं, खासकर यदि जनमत और मीडिया दबाव बढ़ता है। इस स्थिति में चीन को आगे बढ़ने का और अधिक अवसर मिल सकता है, जिससे फ्रांस का प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति में कम होता जाएगा।
नया कैलेडोनिया संकट केवल एक द्वीप की समस्या नहीं है; यह फ्रांस के वैश्विक कूटनीतिक दृष्टिकोण, लोकतांत्रिक छवि, और रणनीतिक महत्व को चुनौती देने वाला मुद्दा बन चुका है। यह समय है जब फ्रांस को लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए कानक समुदाय की आवाज़ को सुनना होगा, अन्यथा यह संकट वैश्विक स्तर पर फ्रांस की भूमिका को प्रभावित कर सकता है।
रिया गोयल कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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