हाल के दिनों में सामने आई खुफिया जानकारी और उपग्रह चित्रों से पता चलता है कि इजरायल ने ईरान के परमाणु प्रोग्राम पर एक गुप्त, मगर असरदार हमला किया है। हालांकि दोनों देशों ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन पूरे मध्य पूर्व में तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। यह हमला ऐसे वक्त पर हुआ है जब ईरान का परमाणु कार्यक्रम पहले से ही दुनिया की नजर में है। इजरायल ने शायद यह कदम इस डर से उठाया कि ईरान जल्द ही खतरनाक स्तर तक पहुँच जाएगा। लेकिन सवाल यह है—इजरायल का असल मकसद क्या था? और ईरान इसका जवाब कैसे देगा?
इजरायल की चाल क्या थी?
इजरायल हमेशा से कहता आया है कि वह ईरान के परमाणु हथियार बनाने को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह हमला शायद ईरान के प्रोग्राम को धीमा करने के साथ-साथ एक साफ संदेश देने के लिए था—सिर्फ ईरान को ही नहीं, बल्कि उन वैश्विक ताकतों को भी जो सिर्फ बातचीत का रास्ता अपनाना चाहती हैं। इसके अलावा, इजरायल शायद यह भी दिखाना चाहता है कि वह इस इलाके में अपनी ताकत बनाए रखेगा, जहाँ हिजबुल्लाह, हमास और हूथी जैसे ईरानी समर्थित गुटों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। एक और मकसद हो सकता है—दुनिया की प्रतिक्रिया जाँचना। इजरायल यह देखना चाहता होगा कि दूसरे देश कितना सहेंगे—क्या वे चुप रहेंगे या विरोध करेंगे?
ईरान क्या करेगा?
ईरान आवेश में आकर जल्दबाजी में कुछ नहीं करेगा। उसका इतिहास रहा है कि वह सीधे की बजाय छुपकर जवाब देता है। हिजबुल्लाह जैसे गुट इजरायल की सीमाओं पर हमले कर सकते हैं, या ईरानी साइबर यूनिट्स इजरायली इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बना सकती हैं। ईरान सीरिया या इराक में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाकर भी दबाव बना सकता है। लेकिन सीधी जंग की संभावना कम है, क्योंकि इससे अमेरिका और यूरोप इजरायल के और करीब आ सकते हैं। एक और विकल्प यह है कि ईरान खुद को पीड़ित बताकर दुनिया से सहानुभूति हासिल करे और परमाणु वार्ता को फिर से शुरू करवाने की कोशिश करे।
पूरा मध्य पूस्त तनाव में
यह हमला एक ऐसे इलाके में हुआ है जो पहले से ही अस्थिर है। लेबनान, सीरिया और गाजा जैसी जगहों पर ईरानी समर्थित गुटों का बड़ा प्रभाव है—अगर ईरान ने इनके जरिए जवाब दिया, तो हिंसा और बढ़ सकती है। एक बड़ा खतरा तेल की सप्लाई पर भी है। अगर ईरान ने होर्मुज की खाड़ी (स्ट्रेट ऑफ होर्मुज) को बंद करने की धमकी दी, तो पूरी दुनिया में तेल के दाम आसमान छू सकते हैं। वहीं, सऊदी अरब और UAE जैसे देश चुपके से इजरायल के कदम का समर्थन कर सकते हैं (क्योंकि वे भी ईरान के परमाणु प्रोग्राम से डरे हुए हैं), लेकिन सार्वजनिक तौर पर वे शांति की अपील करेंगे ताकि उनकी छवि खराब न हो।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया?
अमेरिका मुश्किल में फँसा हुआ है। वह तो बातचीत का दिखावा करता है, लेकिन ईरान पर उसका भरोसा खत्म हो रहा है। हो सकता है, अमेरिका खुलकर इजरायल का साथ न दे, मगर पर्दे के पीछे वह इस हमले को ईरान पर दबाव बनाने का मौका मान रहा हो। यूरोप, जो यूक्रेन युद्ध और आर्थिक मुश्किलों में उलझा हुआ है, बस औपचारिक तौर पर शांति की बात करेगा—उसकी असल में कोई भूमिका नहीं है। खाड़ी देश दोहरी रणनीति अपनाएँगे: सार्वजनिक तौर पर हिंसा की निंदा, मगर मन ही मन राहत की साँस।
अब आगे क्या?
इजरायल और ईरान की छुपी लड़ाई एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुँच गई है। एक छोटी सी घटना भी बड़े हादसों को जन्म दे सकती है। अगर ईरान ने जवाबी कार्रवाई की, तो पूरा इलाका हिंसा में धँस सकता है। अगर दुनिया ने तनाव कम करने में कोई भूमिका नहीं निभाई, तो बातचीत का दौर खत्म हो सकता है और मध्य पूस्त एक बार फिर गुप्त जंगों और खुली अशांति का शिकार हो जाएगा। अगला कदम—चाहे वह शब्दों में हो या हथियारों में—आने वाले सालों का रास्ता तय करेगा।
समय बीत रहा है...पूरा मध्य पूस्त साँस रोके देख रहा है।
श्रेया गुप्ता कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
निजी हैं और कल्ट करंट का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।