शांति का मायाजाल
संदीप कुमार
| 02 Sep 2025 |
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15 अगस्त 2025 में अलास्का की ठंडी हवाओं और वाशिंगटन डीसी के सत्ता के गलियारों में जो हुआ, वह पारंपरिक कूटनीति नहीं थी; वह एक रूप से रचा गया प्रदर्शन था। गोपनीयता के पर्दे में लिपटी, डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई शिखर वार्ताओं ने एक ऐसी शांति प्रक्रिया का भ्रम पैदा किया, जो वास्तविकता से कोसों दूर थी। ट्रंप की अति-महत्वाकांक्षी 'शटल डिप्लोमेसी', जो उनकी व्यक्तिगत विरासत और नोबेल शांति पुरस्कार की चाह से प्रेरित थी, ने एक ऐसी कूटनीतिक मृगतृष्णा को जन्म दिया है, जिसने संघर्ष के मूल मुद्दों को सुलझाने के बजाय व्लादिमीर पुतिन के दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्यों को ही साधा है। यह विश्लेषण इस बात की पड़ताल करता है कि कैसे ट्रंप की लेन-देन वाली शैली, पुतिन की धैर्यवान रणनीति और ज़ेलेंस्की की विवश स्थिति ने मिलकर एक ऐसे जटिल समीकरण का निर्माण किया है, जहाँ शांति की बातें तो हो रही हैं, लेकिन युद्ध के लंबी खींचने के आसार और भी प्रबल हो गए हैं। यह केवल दो राष्ट्रपतियों की बैठक नहीं, बल्कि एक सौदागर, एक रणनीतिकार और एक उत्तरजीवी के बीच खेला जा रहा एक उच्च-स्तरीय भू-राजनीतिक खेल है।
सौदागर बनाम रणनीतिकार
इस कूटनीतिक नाटक के केंद्र में दो बिल्कुल भिन्न विश्वदृष्टि और कार्यशैली वाले नेता हैं, और यही असमानता इस प्रक्रिया के परिणामों को आकार दे रही है।
डोनाल्ड ट्रंप: सौदागर राष्ट्रपति
ट्रंप के लिए यूक्रेन युद्ध एक जटिल ऐतिहासिक और राष्ट्रीय अस्तित्व का संघर्ष नहीं, बल्कि एक अचल संपत्ति का सौदा है, जिसे सही कीमत पर बंद किया जा सकता है। उनकी कूटनीति लेन-देन पर आधारित है, जहाँ हर चीज़ की एक कीमत होती है। उनका लक्ष्य एक त्वरित, ठोस और सुर्खियाँ बटोरने वाला 'शांति समझौता' है, जिसे वे 10 अक्टूबर को नोबेल पुरस्कारों की घोषणा से पहले अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर सकें। उनकी भाषा 'सौदा,' 'समझौता,' और 'तालमेल' जैसी शब्दावली से भरी है। उन्होंने संघर्ष के सबसे जटिल मुद्दे—'ज़मीन' और 'सुरक्षा'—को सरलीकृत कर दिया है, मानो यह दो कंपनियों के बीच संपत्ति के बंटवारे का मामला हो। उनका अचानक युद्धविराम से हटकर शांति समझौते पर जोर देना इसी जल्दबाजी का प्रतीक है। वे एक ऐसा परिणाम चाहते हैं जिसे वे बेच सकें, भले ही उसकी नींव कितनी भी कमजोर क्यों न हो।
व्लादिमीर पुतिन: धैर्यवान रणनीतिकार
दूसरी ओर, व्लादिमीर पुतिन एक शतरंज के खिलाड़ी की तरह काम कर रहे हैं जो कई चालें आगे की सोचता है। वे ट्रंप की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और उनकी अधीरता को बखूबी समझते हैं और इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पुतिन के लिए समय कोई बाधा नहीं है; उनके पास न तो कोई चुनावी दबाव है और न ही देश में किसी महत्वपूर्ण विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वे जानते हैं कि ट्रंप का कार्यकाल रूस के लिए एक 'जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर' है, ताकि वे अमेरिका के साथ संबंधों को अपनी शर्तों पर फिर से स्थापित कर सकें। इसलिए, वे ट्रंप को व्यस्त रखने और उन्हें 'जीत' का एहसास दिलाने के लिए छोटी, प्रतिवर्ती रियायतें दे रहे हैं—जैसे आर्कटिक में संयुक्त परियोजनाओं की पेशकश या एक्सन मोबिल को सखालिन-1 परियोजना में लौटने की अनुमति देना। ये कम लागत वाले निवेश हैं, जिनके बदले में वे एक बहुत बड़ा पुरस्कार चाहते हैं: यूक्रेन पर रूसी प्रभुत्व की अमेरिकी स्वीकृति और नए प्रतिबंधों से बचाव, जिसमें वे पहले ही सफल हो चुके हैं।
यह असंतुलन—ट्रंप की तात्कालिकता बनाम पुतिन का धैर्य—ही इस पूरी प्रक्रिया की धुरी है, जिसे पुतिन बड़ी कुशलता से अपने पक्ष में मोड़ रहे हैं।
दो असंभव समीकरण
ट्रंप की कूटनीति दो ऐसे स्तंभों पर टिकी है जो अपनी प्रकृति में ही विरोधाभासी हैं: 'ज़मीन की अदला-बदली' और 'सुरक्षा की गारंटी'। दोनों पक्षों के लिए इन शब्दों के अर्थ इतने भिन्न हैं कि कोई भी मध्य मार्ग लगभग असंभव है।
अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने इसे 'सौदे का केंद्र बिंदु' कहा है, लेकिन यह एक साधारण लेन-देन नहीं है। यूक्रेन के लिए, लुहांस्क, डोनेत्स्क, ज़फ़ोरज़िशिया, खेरसन और क्रीमिया केवल ज़मीन के टुकड़े नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता, पहचान और हजारों कुर्बानियों का प्रतीक हैं। इन क्षेत्रों को रूस को सौंपना राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के लिए राजनीतिक आत्महत्या होगी और यह उस राष्ट्रीय संकल्प के साथ विश्वासघात होगा जिसने दो साल से अधिक समय तक रूसी आक्रमण का सामना किया है। यूक्रेन का संविधान भी ऐसे किसी भी हस्तांतरण को लगभग असंभव बना देता है।
रूस के लिए, ये क्षेत्र रणनीतिक संपत्ति और सौदेबाजी के हथियार हैं। पुतिन ने इन क्षेत्रों को अपने संविधान का हिस्सा बनाकर अपनी स्थिति को और भी कठोर कर लिया है। वे युद्ध के मैदान में अपनी बढ़त का उपयोग यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं, यह संकेत देते हुए कि यदि कीव उनकी शर्तों को स्वीकार नहीं करता है, तो उसे और अधिक क्षेत्र खोना पड़ेगा। इस प्रकार, 'ज़मीन' एक ऐसा मुद्दा है जहाँ दोनों पक्षों के लिए कोई लचीलापन नहीं है, जिससे यह शांति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन गया है।
सुरक्षा की गारंटी
यह दूसरा स्तंभ भी उतना ही अस्थिर है। जब यूक्रेन और यूरोप 'सुरक्षा की गारंटी' की बात करते हैं, तो उनका मतलब 'नाटो की धारा 5 जैसा संरक्षण' होता है—एक विश्वसनीय सैन्य प्रतिबद्धता कि भविष्य में रूसी आक्रमण का सामना सामूहिक रूप से किया जाएगा। इसके बिना, कोई भी शांति समझौता केवल एक अस्थायी युद्धविराम होगा।
लेकिन पुतिन के लिए 'सुरक्षा की गारंटी' का अर्थ ठीक इसके विपरीत है: यूक्रेन का पूर्ण विसैन्यीकरण और उसकी स्थायी तटस्थता। वे एक ऐसा यूक्रेन चाहते हैं जो कभी भी पश्चिमी गठबंधनों में शामिल न हो सके और रूस के लिए कोई खतरा न बने। इस संदर्भ में, ट्रंप का दृष्टिकोण बेहद अस्पष्ट और अप्रभावी है। वे यूक्रेन को हथियार बेचने की बात तो करते हैं, लेकिन अमेरिकी सैनिकों की तैनाती से इनकार करते हैं। यह स्थिति न तो यूक्रेन को वास्तविक सुरक्षा प्रदान करती है और न ही यह पुतिन को स्वीकार्य है, क्योंकि यह यूक्रेन को सैन्य रूप से सक्षम बनाए रखती है।
इस प्रकार, ट्रंप की कूटनीति इन दो मूलभूत रूप से असंगत अवधारणाओं के बीच फंसी हुई है, जिससे कोई भी सार्थक प्रगति असंभव हो जाती है।
प्रदर्शन की कीमत
इस कूटनीतिक प्रदर्शन का सबसे बड़ा लाभार्थी रूस रहा है। पुतिन ने बिना कोई बड़ी रणनीतिक रियायत दिए कई महत्वपूर्ण लाभ हासिल किए हैं:
1. अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का टूटना: एक अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ उच्च-स्तरीय शिखर वार्ता ने पुतिन को वैश्विक मंच पर फिर से एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर दिया है, जिससे पश्चिम द्वारा उन्हें अलग-थलग करने की कोशिशें कमजोर हुई हैं।
2. वार्ता की शर्तों को बदलना: पुतिन ने सफलतापूर्वक विमर्श को यूक्रेन की मांग (तत्काल युद्धविराम और रूसी सैनिकों की वापसी) से हटाकर अपनी पसंद (एक व्यापक शांति समझौता जो रूस के क्षेत्रीय लाभ को वैध बनाता है) पर केंद्रित कर दिया है।
3.पश्चिमी एकता में दरार: ट्रंप का एकतरफा दृष्टिकोण यूरोपीय सहयोगियों को हाशिए पर डालता है, जिनका इस संघर्ष में अमेरिका से कहीं अधिक सीधा दांव लगा है। यह पश्चिमी गठबंधन में दरार पैदा करता है, जो हमेशा से पुतिन का एक प्रमुख लक्ष्य रहा है।
यह पूरी प्रक्रिया एक ऐसी स्थिति का निर्माण कर रही है जहाँ ज़ेलेंस्की पर एक असंभव शांति समझौते के लिए दबाव बढ़ रहा है, जबकि पुतिन को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए और समय मिल रहा है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप की यूक्रेन में 'शटल डिप्लोमेसी' एक साहसिक और महत्वाकांक्षी प्रयास हो सकती है, लेकिन यह एक गहरी त्रुटिपूर्ण नींव पर आधारित है। यह संघर्ष की ऐतिहासिक जटिलताओं को नजरअंदाज करती है, प्रमुख खिलाड़ियों की मौलिक रूप से भिन्न प्रेरणाओं को समझने में विफल रहती है, और एक त्वरित व्यक्तिगत जीत के लिए दीर्घकालिक स्थिरता का त्याग करती है।
रूस और यूक्रेन के बीच के मूलभूत मतभेद इतने गहरे हैं कि उन्हें किसी शिखर सम्मेलन के करिश्मे से हल नहीं किया जा सकता। न तो अमेरिका और यूरोप के पास रूस को अपनी शर्तें मानने के लिए मजबूर करने का पर्याप्त दबाव है, और न ही रूस यूक्रेन को झुकाने में पूरी तरह से सफल हो पाया है। इस गतिरोध के बीच, ट्रंप की कूटनीति एक कूटनीतिक धुंध पैदा कर रही है, जो इस कठोर वास्तविकता को छिपाती है कि यह युद्ध एक लंबी और थका देने वाली लड़ाई होने के लिए अभिशप्त है। शांति की कोई भी उम्मीद, जब तक कि वह ज़मीन पर मौजूद वास्तविकताओं पर आधारित न हो, एक मृगतृष्णा ही साबित होगी—एक ऐसा मायाजाल जो एक नेता की विरासत की भूख और दूसरे की रणनीतिक चालाकी से बुना गया है।