क्यों दुनियाभर के निवेशकों को बेहतर लग रहा है भारत?

श्रीराजेश

 |   21 Oct 2020 |   415
Culttoday

कोरोना काल के संकटपूर्ण अंधकार और नकारात्मक माहौल के बीच भारतीय नागरिकों के लिये एक सुखद खबर आई है. खबर यह है कि चालू साल के अप्रैल से अगस्त, 2020 के दौरान 35.73 अरब रुपए का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश (एफडीआई) देश में आया है. यह किसी भी पूर्व के वित्तीय वर्षों के पहले 5 महीनों की तुलना में सबसे अधिक है और 2019-20 के पहले पांच महीनों के 31.60 अरब रुपए के निवेश की तुलना में भी 13 फीसद अधिक है. यह सच में बहुत बड़ी रकम है और देश के आर्थिक विकास में यह मील का पत्थर साबित हो सकती है. इस रकम से देश भर में नए-नए उद्योग लगेंगे और लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

क्या होता है एफडीआई ? दरअसल किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश ही एफडीआई कहलाता है. ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के मैनेजमेंट में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है. एफडीआई दो प्रकार से आती है. पहला, ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट में. इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि भारत में यदि कोई कंपनी स्थापित हो रही है और उसमें जब किसी अन्य देश की कंपनी निवेश करती है तब उसे ही ग्रीन फील्ड एफडीआई कहते हैं.

 दूसरा तरीका यह होगा है कि कोई विदेशी कंपनी पहले से चल रही किसी कंपनी के शेयर खरीद ले. उदाहरण के रूप में सिंगापुर की सॉवरेन वेल्थ फंड जीआईसी  रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने तय किया है कि वह रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड  में मात्र 1.22 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 5,512.5 करोड़ रुपये का निवेश करेगी. यह ही कहलाता है एफडीआई. कई चोटी की भारतीय कंपनियां भी अन्य देशों में निवेश करती ही रहती हैं. पर फिलहाल बात हो रही है भारत में तेजी से बढती चली आ रही एफडीआई की.

अब यह तो साफ हो जाना चाहिए कि अन्य देशों से आई पूंजी से ही अनेकों कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं को अंतिम रूप देती हैं. उसके चलने पर मुनाफे का हिस्सा उस विदेशी कंपनी को भी मिलता है, जिसने भारतीय कंपनियों में निवेश किया होता है.

एफडीआई का प्रवाह तेज हो

दरअसल पिछले छह वर्षों के दौरान मोदी सरकार की यह भरसक कोशिश रही है कि देश में एफडीआई का प्रवाह तेज हो. सरकार को पता है कि बिना मोटा एफडीआई आये देश का अपेक्षित विकास नहीं हो सकता. इसीलिए मोदी सरकार अनेकों कदम उठाती रही है. बेशक एफडीआई आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है. यह भारत के आर्थिक विकास के गैर-ऋण वित्तीयन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है.  सभी सरकारों का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वह एक सक्षम और निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति लागू करे.  यह सब करने का मुख्य उद्देश्य एफडीआई नीति को निवेशकों के लिए और अधिक अनुकूल बनाना तथा देश में निवेश के प्रवाह में बाधा डालने वाली नीतिगत अड़चनों को दूर करना है.

हालांकि विपक्षी दलों से लेकर कई कथित दिग्भ्रमित और पूर्वाग्रह से ग्रसित बुद्धिजीवी केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर बिना कारण निशाना साधते रहते हैं, पर एफडीआई की ताजा आवक संबंधी आंकड़ें यह दर्शा रहे हैं कि विदेशी निवेशकों को भारत में इस कठिन कोरोना संकट के दौर में भी निवेश करना सही लग रहा है. उन्हें यकीन है कि भारत में धन निवेश करने से उन्हें नुकसान नहीं होगा. वे यहां से कुछ कमाकर ही जाएंगे. एक बात तो सभी समझ लें कि जब कोई निवेशक कहीं धन निवेश करता है, तो वह लाभ कमाने के इरादे से ही करता है. इसमें कुछ भी गलत भी तो नहीं है. इस मौके पर होना तो यही चाहिए था कि भारत में एफडीआई की अभूतपूर्व आवक का सरकार के कटु आलोचक भी कम से कम औपचारिकता के लिए ही सही स्वागत तो करते. वे यह कहते कि एफडीआई में नीतिगत सुधारों, निवेश सुगमता और व्यापार करने में आसानी के मोर्चों पर सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों की वजह से देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा. पर अफसोस कि वे ऐसा नहीं कहेंगे. देश के लोकतंत्र के लिए यह सुखद स्थिति नहीं है. आपको सरकार की किसी नीति की स्वस्थ निंदा करने का पूरा अधिकार है. पर अगर सरकार की किसी नीति या कार्यक्रम के बेहतर नतीजे आ जायें तब भी क्या आपकी जुबान बंद रहे? यह मानसिकता तो गलत है. इसे सही कैसे ठहराया जा सकता है ?

बहरहाल भारत में जिस गति से एफडीआई आ रही है, उससे यह तो साफ है कि वैश्विक निवेशकों के बीच अब भारत एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के तौर पर स्थापित हो चुका है.

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दिल खोलकर कौन देता पैसा

एक तरफ भारत में एफडीआई आ रही है तो दूसरी तरफ  भारत को प्रवासी भारतीय भी दिल खोलकर रकम भेज रहे हैं. इन्होंने साल 2018 में करीब 80 अरब रुपये देश में भेजा. इन्होंने 2017 में भी 69 अरब रूपए भेजे थे. दुनिया भर में बसे प्रवासी भारतीय अपनी मातृभूमि पर दोनों हाथों से धन की वर्षा कर रहे हैं. इनसे ज्यादा रकम किसी भी अन्य देश के विदेशों में रहने वाले नागरिकों ने अपने देश में नहीं भेजी.

भारत को मोटी रकम मिल रही है मुख्य रूप से खाड़ी के देशों में बसे लाखों भारतीयों से. खाड़ी के देशों में शामिल हैं बहरीन,कुवैत,ओमन,कतर,सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से. इन सभी देशों में मेहनत-मशक्कत करने वाले भारतीय छोटी-मोटी नौकरियों को करने से लेकर अब बड़े-बड़े कारोबारी भी हो गए हैं. इनमें आपको बढ़ई, प्लम्बर और इलेक्ट्रीशियन से लेकर केरल की मलयाली नर्सें और नौजवान इंजीनियर, डॉक्टर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी मिल जाएंगे.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के सभी खाड़ी देशों से संबंधों को मजबूत करने को लेकर बहुत ही गंभीर रहे हैं. इसके सकारात्मक नतीजे भी आ रहे हैं. खाड़ी में श्रमिकों की सेवा शर्तें भी सुधर रही हैं. सरकार को प्रयास करते रहने होंगे ताकि खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय सम्मान के साथ नौकरी करें. ये पराए मुल्कों में बेहतर तरीके से रहेंगे तो ये अपने देश में भी पैसा भेजते रहेंगे.

अब आप समझ सकते हैं कि विदेशी और प्रवासी भारतीयों को यह पक्का यकीन है कि उनका भारत में निवेश ही उन्हें श्रेष्ठ रिटर्न देकर जाएगा. अगर उनमें यह  भरोसा न होता तो वे कतई भारत में निवेश नहीं करते. यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत को स्पष्ट करता है. क्या इस बेहद कष्टकारी समय में भी भारत की ठोस अर्थव्यवस्था पर विपक्षी दलों और  बात-बात पर देश की कमियां निकालने वाले ‘ज्ञानचंदों’ को भी गर्व का अनुभव नहीं करना चाहिए ?

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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