कोरोना काल के संकटपूर्ण अंधकार और नकारात्मक माहौल के बीच भारतीय नागरिकों के लिये एक सुखद खबर आई है. खबर यह है कि चालू साल के अप्रैल से अगस्त, 2020 के दौरान 35.73 अरब रुपए का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश (एफडीआई) देश में आया है. यह किसी भी पूर्व के वित्तीय वर्षों के पहले 5 महीनों की तुलना में सबसे अधिक है और 2019-20 के पहले पांच महीनों के 31.60 अरब रुपए के निवेश की तुलना में भी 13 फीसद अधिक है. यह सच में बहुत बड़ी रकम है और देश के आर्थिक विकास में यह मील का पत्थर साबित हो सकती है. इस रकम से देश भर में नए-नए उद्योग लगेंगे और लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
क्या होता है एफडीआई ? दरअसल किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश ही एफडीआई कहलाता है. ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के मैनेजमेंट में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है. एफडीआई दो प्रकार से आती है. पहला, ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट में. इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि भारत में यदि कोई कंपनी स्थापित हो रही है और उसमें जब किसी अन्य देश की कंपनी निवेश करती है तब उसे ही ग्रीन फील्ड एफडीआई कहते हैं.
दूसरा तरीका यह होगा है कि कोई विदेशी कंपनी पहले से चल रही किसी कंपनी के शेयर खरीद ले. उदाहरण के रूप में सिंगापुर की सॉवरेन वेल्थ फंड जीआईसी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने तय किया है कि वह रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड में मात्र 1.22 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 5,512.5 करोड़ रुपये का निवेश करेगी. यह ही कहलाता है एफडीआई. कई चोटी की भारतीय कंपनियां भी अन्य देशों में निवेश करती ही रहती हैं. पर फिलहाल बात हो रही है भारत में तेजी से बढती चली आ रही एफडीआई की.
अब यह तो साफ हो जाना चाहिए कि अन्य देशों से आई पूंजी से ही अनेकों कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं को अंतिम रूप देती हैं. उसके चलने पर मुनाफे का हिस्सा उस विदेशी कंपनी को भी मिलता है, जिसने भारतीय कंपनियों में निवेश किया होता है.
एफडीआई का प्रवाह तेज हो
दरअसल पिछले छह वर्षों के दौरान मोदी सरकार की यह भरसक कोशिश रही है कि देश में एफडीआई का प्रवाह तेज हो. सरकार को पता है कि बिना मोटा एफडीआई आये देश का अपेक्षित विकास नहीं हो सकता. इसीलिए मोदी सरकार अनेकों कदम उठाती रही है. बेशक एफडीआई आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है. यह भारत के आर्थिक विकास के गैर-ऋण वित्तीयन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. सभी सरकारों का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वह एक सक्षम और निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति लागू करे. यह सब करने का मुख्य उद्देश्य एफडीआई नीति को निवेशकों के लिए और अधिक अनुकूल बनाना तथा देश में निवेश के प्रवाह में बाधा डालने वाली नीतिगत अड़चनों को दूर करना है.
हालांकि विपक्षी दलों से लेकर कई कथित दिग्भ्रमित और पूर्वाग्रह से ग्रसित बुद्धिजीवी केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर बिना कारण निशाना साधते रहते हैं, पर एफडीआई की ताजा आवक संबंधी आंकड़ें यह दर्शा रहे हैं कि विदेशी निवेशकों को भारत में इस कठिन कोरोना संकट के दौर में भी निवेश करना सही लग रहा है. उन्हें यकीन है कि भारत में धन निवेश करने से उन्हें नुकसान नहीं होगा. वे यहां से कुछ कमाकर ही जाएंगे. एक बात तो सभी समझ लें कि जब कोई निवेशक कहीं धन निवेश करता है, तो वह लाभ कमाने के इरादे से ही करता है. इसमें कुछ भी गलत भी तो नहीं है. इस मौके पर होना तो यही चाहिए था कि भारत में एफडीआई की अभूतपूर्व आवक का सरकार के कटु आलोचक भी कम से कम औपचारिकता के लिए ही सही स्वागत तो करते. वे यह कहते कि एफडीआई में नीतिगत सुधारों, निवेश सुगमता और व्यापार करने में आसानी के मोर्चों पर सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों की वजह से देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा. पर अफसोस कि वे ऐसा नहीं कहेंगे. देश के लोकतंत्र के लिए यह सुखद स्थिति नहीं है. आपको सरकार की किसी नीति की स्वस्थ निंदा करने का पूरा अधिकार है. पर अगर सरकार की किसी नीति या कार्यक्रम के बेहतर नतीजे आ जायें तब भी क्या आपकी जुबान बंद रहे? यह मानसिकता तो गलत है. इसे सही कैसे ठहराया जा सकता है ?
बहरहाल भारत में जिस गति से एफडीआई आ रही है, उससे यह तो साफ है कि वैश्विक निवेशकों के बीच अब भारत एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के तौर पर स्थापित हो चुका है.