- आइफा ने सुझाया बीच का रास्ता
- सरकार व किसान संगठन किसानों के हित में छोड़े हठधर्मिता
- किसान नेता भी दिखाये सकारात्मक रुख
- साम-दाम-दंड-भेद अपनाने से बाज आए सरकार
- एमएसपी देने के लिए सरकार लाए एक विशेष अध्यादेश
- सरकार व विपक्ष के कर्मों से विश्वास खत्म हुआ है
- तीनों कानूनों में संशोधन के लिए आइफा किसान संगठनों से बात कर देगी नया प्रस्ताव
दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों को दो सप्ताह से ज्यादा हो गया. किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं तो सरकार भी केवल आश्वासन ही दे रही है कोई ठोस पहल सरकार की ओर से नहीं की गई. लिहाजा किसानों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. इस बीच किसान संगठनों और सरकार के बीच छह दौर की बातचीत हुई है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. अब स्थिति डेडलॉक की हो गई है. न किसान झुकने को तैयार और ना ही सरकार की ओर से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह कुछ किसानों की मांगों को मानने जा रही है. इन स्थितियों को देखते हुए अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) ने कहा है कि वह इस डेडलॉक की स्थिति को तोड़ने के लिए तैयार है, बशर्ते कि सरकार और किसान संगठन किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए हठधर्मिता को छोड़ दें.
अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि सरकार ने जैसा रवैया अपना रखा है ऐसे में उनकी किसान हित की बात संदेहास्पद लगती है. सरकार वास्तव में किसानों का हित चाहती है तो उसे इसके लिए आगे बढ़ कर पहल करनी होगी और सरकार एक विशेष अध्यादेश लाकर एमएसपी की गारंटी सुनिश्चित कर दे तो अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) सभी किसान संगठनों से बात कर एक आम राय बनाने की पहल कर सकती है.
उन्होंने कहा कि जब पांच जून को सरकार ने इन तीनों कानूनों के लिए अध्यादेश लाया था तभी देश में पहली बार अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) ने इन कानून की खामियों को रेखांकित करते हुए सात सूत्री समाधान सुझाया था, साथ ही इन खामियों को दूर करने व समाधान के लिए प्रधानमंत्री व कृषिमंत्री को पत्र लिख कर अपील भी की थी, लेकिन सरकार की ओर से इसे अनसुना किया गया. परिणाम स्वरूप किसानों को लगा कि सरकार उनके हितों को तरजीह देने के बजाय वह कार्पोरेट्स के हित के लिए कार्य कर रही है और ‘दिल्ली चलो’ अभियान शुरू हुआ.
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि एमएसपी की गारंटी वाला अध्यादेश सरकार लाये फिर आइफा सभी किसान संगठनों से वार्ता कर तीनों कानूनों में संशोधन के लिए एक समावेशी प्रस्ताव का मसौदा तैयार कर सरकार को सौंपेगी. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से उन्हें कोई औपचारिक पत्र अब तक नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि सरकार साम-दाम-दंड-भेद हर तरह का हथकंडा अपना रही है ताकि इस आंदोलन को कमजोर किया जा सके लेकिन सरकार को यह समझना चाहिए कि अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा है.
उन्होंने कहा कि 80 और 90 के दशक में कृषि ग्रोथ अच्छी थी. छठे फ़ाइव-इयर प्लान में कृषि की ग्रोथ 5.7 % थी और जीडीपी ग्रोथ 5.3% थी. ऐसा दोबारा नहीं हुआ कभी. और 90 के बाद तो ग्रोथ कम हो गई है. रुरल इंफ़्रास्ट्रकचर में इन्वेस्टमेंट कम हो गई है जिसकी वजह से कृषि की ग्रोथ कम हो गई है. अब सरकार जो तीन कानून लायी है इससे किसानों की स्थिति और बदहाल होगी. इन तीनों कानूनों को लेकर सरकार का तर्क है कि अब किसान अपनी फ़सलें निजी कम्पनियों को बेच सकेंगे और ज़्यादा पैसे कमा सकेंगे. लेकिन सरकार को यह मालूम होना चाहिए कि किसान संगठनों ने तो ऐसी कभी माँग ही नहीं की थी. किसानों की जो चिंताएं हैं, उसे दूर करने में सरकार को आखिर परेशानी क्या है.
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि किसान आंदोलन पूरी तरह से गैर राजनीतिक है लेकिन जब तीनों कानून को संसद से पास कराया गया तब से ही सरकार और विपक्षी दल इसमें अपने लिए राजनीतिक अवसर तलाश रहे हैं, लिहाजा इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए भी कई तरह के शिगूफे छोड़े गये. इसकी वजह से सत्ता पक्ष औऱ विपक्षी पार्टियों को लेकर किसानों में विश्वास कम हुआ है. दोनों ही पक्षों को किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही इस आंदोलन के निहितार्थ को समझना होगा. उन्होंने कहा कि अब तक कृषि क्षेत्र में प्रयोग ज़्यादा और असल काम कम हुए हैं. अब किसान इन प्रयोगों से तंग आ चुके हैं, उन्हें ठोस नतीजे चाहिए.
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि सरकार को अब यह बात समझ लेनी चाहिए कि किसान अपने भविष्य के साथ किसी को खिलवाड़ नहीं करने देगा. आइफा सरकार और किसान संगठनों के बीच जो डेडलॉक है उसे तोड़ कर पूरे प्रकरण को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पहल करने को तैयार है. सरकार अपनी ओर से पहल करें और एमएसपी गारंटी अध्यादेश लाये, तो फिर बात आगे बढ़ेगी.