भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘अच्छे दिन’ अभी हैं दूर

संदीप कुमार

 |  16 Oct 2020 |   54
Culttoday

भले ही अभी कोविड 19 का असर जस का तस हो लेकिन अब महामारी की रोकथाम से ज्यादा बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने की चर्चा पूरी दुनिया में चल पड़ी है. विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा है कि कोरोना महामारी कई विकासशील और सबसे ग़रीब देशों के लिए एक भयानक त्रासदि बन गई है. ऐसे हालात में लोगों की जान बचाना, स्वास्थ्य और सुरक्षा पहली प्राथमिकता बन गई है. तो वहीं आईएमएफ के अनुमान को अगर सटीक माने तो तस्वीर चिंताजनक है. आईएमएफ के अनुसार इस वित्त वर्ष में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 10.3 प्रतिशत गिरेगी. संस्था ने खुद जून में सिर्फ 4.5 प्रतिशत गिरावट की बात की थी, लेकिन उसने अब अपना अनुमान और नीचे कर दिया है. यही नहीं, उसने यह भी कहा है कि 10.3 प्रतिशत की गिरावट के बाद प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत बांग्लादेश से भी पीछे हो जाएगा.
चालू वित्त वर्ष के अंत तक मार्च 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी गिर कर 1,877 डॉलर पर पहुंच जाएगी, जब की बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी में बढ़ोतरी होगी और वो 1,888 डॉलर पर पहुंच जाएगी. आईएमएफ के अनुसार दक्षिण एशिया में श्रीलंका के बाद भारत ही सबसे बुरी तरह से प्रभावित अर्थव्यवस्था होने जा रहा है. जानकारों ने इन आंकड़ों पर चिंता जताई है.
विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बासु ने ट्विटर पर लिखा कि यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं क्योंकि पांच साल पहले भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी बांग्लादेश से 25 प्रतिशत ज्यादा थी.
लेकिन कई जानकार यह सवाल उठा रहे हैं कि ये आंकड़े भी कितने सटीक हैं? नई दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार ने बताया कि आईएमएफ इस तरह का डाटा खुद इकठ्ठा नहीं करता है बल्कि सरकारों से लेता है, इसलिए उसके आंकड़े मोटे तौर पर सरकारों की अपनी समीक्षा के अनुरूप ही होते हैं.
अरुण कुमार ने बताया कि इस वजह से इन आंकड़ों और असली स्थिति में बहुत बड़ा फर्क होने की संभावना है क्योंकि सरकार के पास भी पूरी जानकारी नहीं है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि सरकार के पास भारत के विशाल असंगठित क्षेत्र का कोई डाटा नहीं है और उत्पादन क्षेत्र की बड़ी कंपनियों और कृषि क्षेत्र का भी डाटा अभी तक नहीं आया है.
केंद्र सरकार ने कहा था कि अप्रैल से जून के बीच की तिमाही में भारत की जीडीपी 23.9 फीसदी गिर गई थी, लेकिन अरुण कुमार कहते हैं कि अगर सरकार के गणित से गायब इन आंकड़ों को भी हिसाब में लें तो इसी अवधि में जीडीपी में असली गिरावट 40 से 50 प्रतिशत के बीच है. उनका आकलन है कि पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी 10 नहीं, 20 भी नहीं बल्कि 30 प्रतिशत के आस पास गिरेगी.
अर्थव्यवस्था अभी भी फिर से अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई है. विमानन, हॉस्पिटैलिटी, पर्यटन, व्यापार जैसे सभी बड़े क्षेत्र अभी तक मंदी से गुजर रहे हैं. भारत की तस्वीर विशेष रूप से दयनीय इसलिए भी है क्योंकि दूसरे किसी भी देश में इतना बड़ा असंगठित क्षेत्र नहीं है. महामारी के दौरान नौकरियां तो पूरी दुनिया में गईं लेकिन करोड़ों लोगों का शहरों से गांव की तरफ वैसा पलायन और कहीं देखने को नहीं मिला जैसा भारत में मिला.
एक आकलन के अनुसार सिर्फ अप्रैल में ही करीब 20 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया और उनमें से अधिकतर को अभी तक दोबारा रोजगार नहीं मिला है. रोजगार का आकलन करने वाली निजी संस्था सीएमआईई के मुताबिक संगठित क्षेत्र में भी कम से कम 1.70 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं. जब तक इन लोगों को रोजगार वापस नहीं मिलता, तक इस स्थिति में सुधार की गुंजाइश नहीं है.
 


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