भारत: वैश्विक मेडिकल टूरिज्म का नया हब
संदीप कुमार
| 01 May 2025 |
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भारत, जो कभी केवल योग और आयुर्वेद के लिए जाना जाता था, आज विश्वभर के गंभीर रोगियों के लिए आधुनिक तृतीयक चिकित्सा सुविधाओं का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। 2024 में भारत सरकार ने चिकित्सा उद्देश्यों से आने वाले मरीजों को 4.6 लाख से अधिक मेडिकल वीज़ा जारी किए। यह आंकड़ा न केवल भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की साख को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में कितनी तेजी से उभर रहा है। भारत के प्रमुख मेडिकल टूरिज्म स्रोत हैं—जैसे कि इराक, सूडान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश। मैक्स हेल्थकेयर के मुख्य बिक्री और विपणन अधिकारी, अनास अब्दुल वाजिद के अनुसार, '2021 से भारत ने अफगानी मरीजों को कम वीज़ा दिए हैं क्योंकि भारत अफगानिस्तान के वर्तमान शासन को मान्यता नहीं देता।' इसी प्रकार, बांग्लादेश में चल रही राजनीतिक अस्थिरता भी भारत आने वाले मरीजों की संख्या को प्रभावित कर रही है।
मेडिकल टूरिज्म सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं है—यह होटल, रेस्तरां, अनुवाद सेवाएं, ट्रैवल एजेंसियों और फार्मेसियों का एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है। उदाहरण के लिए, गुरुग्राम के सेक्टर 50 में एक बेकरी संचालक अरबी, पश्तो और रूसी में गिनती कर सकता है और उसके पीछे का रेस्तरां अरबी शैली के व्यंजन परोसता है। वहीं पास ही मरीजों और उनके परिवारों के लिए होटल और लॉजिंग सुविधाएं हैं।
बात जब जीवन की हो, तो रोगी केवल इलाज नहीं, भरोसा और सुरक्षा चाहते हैं। यही वजह है कि फिलीपींस की कैसेंड्रा और उनके पति ने अपने बेटे जुल्करनैन अली की लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए अमेरिका या जापान के बजाय भारत को चुना। 'फिलीपींस में जीवित रहने की संभावना कम थी और अन्य विकल्प बेहद महंगे थे,' उन्होंने बताया। भारत में इलाज के दौरान उन्होंने उबर से यात्रा की, होटल में स्वयं खाना बनाया, और मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सफल सर्जरी करवाई।
एनओटीटीओ (राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) के अनुसार, 2023 में भारत में 18,378 अंग प्रत्यारोपण हुए, जिनमें से 1,851 विदेशी नागरिक थे। दिल्ली-एनसीआर में ही 1,445 ट्रांसप्लांट हुए। इन मामलों में ज्यादातर ट्रांसप्लांट जीवित डोनरों द्वारा हुए, जो अक्सर मरीज के रिश्तेदार होते हैं।
नई दिल्ली के बाद गुरुग्राम विदेशी मरीजों के लिए एक पसंदीदा स्थान बनता जा रहा है। यहां के होटल, रेस्तरां, फार्मेसी और टैक्सी सेवाएं खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय मरीजों की जरूरतों के अनुसार ढल रही हैं। इराक से आए अबू इस्माइल अपने कैंसरग्रस्त भाई के साथ फोर्टिस अस्पताल में इलाज करा रहे हैं और एक अपार्टमेंट होटल में रह रहे हैं जहाँ स्टाफ अनुवाद ऐप्स की मदद से संवाद करते हैं।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया, भारत मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स 2020-21 के अनुसार चिकित्सा यात्राओं के लिए विश्व का दसवाँ सबसे आकर्षक गंतव्य रहा। लेकिन इस गंतव्य की लोकप्रियता अलग-अलग देशों के साथ भारत के संबंधों और वहाँ के राजनीतिक हालात पर भी निर्भर करती है।
2024 में बांग्लादेशी नागरिकों को भारत आने के लिए दिए गए मेडिकल वीज़ा की संख्या 3.2 लाख से अधिक रही, जो कुल वीज़ा का लगभग 70% है। लेकिन विशेषज्ञ अब्दुल वाजिद के अनुसार, भारत-बांग्लादेश संबंधों में हालिया तनाव के बाद इस संख्या में गिरावट आ सकती है। यही स्थिति अफगानिस्तान के साथ 2021 में देखी गई थी। तालिबान के सत्ता में आने और भारत द्वारा काबुल स्थित दूतावास बंद कर नई दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद, 2021 में जहाँ 22,463 अफगान नागरिक भारत इलाज के लिए आए थे, वहीं 2024 तक यह संख्या घटकर केवल एक रह गई।
नेपाल को इस सूची में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि नेपाली नागरिक बिना वीज़ा भारत में इलाज करा सकते हैं। इसके बावजूद भारत का आकर्षण बना हुआ है, यहाँ तक कि विकसित देशों के नागरिक भी इलाज के लिए भारत आते हैं। 2024 में अमेरिका से 1,911 और यूके से 785 लोग भारत इलाज के लिए आए।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत न सिर्फ मेडिकल वैल्यू ट्रैवल के लिहाज़ से किफायती है, बल्कि ई-वीज़ा जैसी आसान प्रक्रियाएं भी इसे आकर्षक बनाती हैं। उदाहरण के तौर पर, स्तन कैंसर का इलाज निजी अस्पतालों में ₹3.25 लाख (लगभग $3,800) से शुरू होता है, जो औसत भारतीय अस्पताल का खर्च का दस गुना है। फिर भी, यह उन मरीजों के लिए किफायती विकल्प है जिनके देशों में यह सुविधा नहीं है। पश्चिम एशिया के देश, जैसे ओमान और यूएई, अपने नागरिकों का इलाज प्रायः सरकार की ओर से कराते हैं, और भारत में कम खर्च होने के कारण वह उनका पसंदीदा गंतव्य बनता है। अब्दुल वाजिद बताते हैं कि कुछ मरीज बीमा या गैर-लाभकारी संस्थाओं के माध्यम से इलाज कराते हैं, जबकि कई अपनी जेब से खर्च उठाते हैं।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का मेडिकल टूरिज्म क्षेत्र मध्य-2020 के दशक तक 5–6 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना थी, और 2022 तक इसके 13 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद जताई गई थी।
तुर्कमेनिस्तान के नागरिक नियाज़ोव, जिन्होंने अपनी बेटी के इलाज के लिए निजी खर्च वहन किया, ई-वीज़ा प्रक्रिया से प्रभावित हुए। वे बताते हैं कि भारतीय नागरिक तुर्कमेनिस्तान में प्रवेश के लिए $35 से $1015 (₹' 2,983–₹' 86,525) तक शुल्क चुकाते हैं। अब्दुल वाजिद बताते हैं कि भारत यह आसानी इसलिए देता है क्योंकि अन्य देशों में भी भारतीयों को अपेक्षाकृत आसानी से वीज़ा मिलता है।
भारत सरकार ने मेडिकल टूरिज्म को 'चैंपियन सर्विस सेक्टर' के रूप में मान्यता दी है और 2018 में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए ₹5,000 करोड़ का कोष भी निर्धारित किया गया था। मरीजों और उनके सहयोगियों के लिए ई-वीज़ा की सुविधा भारत आने की प्रक्रिया को सरल बनाती है। लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि इस क्षेत्र को अभी और पारदर्शिता और नियमन की आवश्यकता है।
अब्दुल वाजिद बताते हैं, 'अगर कोई व्यक्ति किसी हेल्थकेयर फैसिलिटेटर से संपर्क करता है, तो उसके पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं होता कि उसे किसी प्रतिष्ठित अस्पताल ले जाया जाएगा या किसी संदिग्ध नर्सिंग होम में।' उन्होंने बताया कि वे ऐसे कई मामलों के संपर्क में आए हैं जहाँ मरीज इलाज कराए बिना ही भारत में फँस गए और उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित करना पड़ा।
हमने इस संबंध में विदेश मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और दिल्ली सरकार से संपर्क किया है कि विदेशी नागरिकों के लिए भारत में उपलब्ध शिकायत निवारण तंत्र क्या है, उन्हें किस प्रकार की धोखाधड़ी का सामना करना पड़ता है, और बांग्लादेश-अफगानिस्तान जैसे देशों में राजनीतिक घटनाओं का मेडिकल वीज़ा प्रवाह पर क्या प्रभाव पड़ा है। हालांकि लेख लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला है, जवाब मिलने पर यह जानकारी सार्वजनिक की जाएगी।
लेकिन जहां सही चिकित्सक और उचित सुविधा मिलती है, वहाँ भारत में इलाज किसी वरदान से कम नहीं। नियाज़ोव कहते हैं, 'मेरी बेटी का इलाज करने वाले दोनों डॉक्टर अत्यंत सहायक थे। हमें आशा है कि वह स्वस्थ जीवन जिएगी।'
इस लेख में प्रस्तुत आंकड़े और तथ्यों का स्रोत इंडियास्पेंड पर प्रकाशित नुशैबा इक़बाल की रिपोर्ट 'How India Is Turning
Into A Popular Medical Tourism Hub' है, जिनका साभार सहित उपयोग किया गया है।