Cult Current ई-पत्रिका (फरवरी, 2025 ) ट्राम और कोलकाता:धड़कन व विरासत का अनमोल रिश्ता
जलज वर्मा
| 01 Feb 2025 |
41
कोलकाता—जिसे 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से जाना जाता है, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और पुराने समय की रौनक को आज भी सहेजे हुए है। इस शहर के विभिन्न पहलुओं में से एक सबसे खास और अनमोल कड़ी है-ट्राम। ट्राम और कोलकाता का रिश्ता सिर्फ यातायात का नहीं है, बल्कि यह शहर की आत्मा का हिस्सा है। यह उस धड़कन का हिस्सा है, जो कोलकाता की सड़कों पर रोज़ धड़कती है, उसके बाशिंदों के जीवन से बंधी हुई है। ट्राम के बगैर कोलकाता की फिलहाल कोई कल्पना नहीं कर रहा। आज भी जिन सड़कों से ट्राम को बंद कर दिया गया है। उन सड़कों पर सूनी ट्राम की पटरियां हर कोलकातावासी को उलाहना देती हुई प्रतीत होती है।
ट्राम का पहला परिचय कोलकाता को 1873 में हुआ था। तब यह घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाली गाड़ी थी, जो सियालदह से आर्मेनियन घाट तक चलती थी। धीरे-धीरे समय बदला, और ट्राम भी इस बदलाव के साथ चलने लगीं। हालांकि, ट्राम अब घोड़ों द्वारा नहीं बल्कि बिजली से चलती हैं, लेकिन उनकी धीमी रफ्तार और पुराने अंदाज ने कोलकाता की विरासत को सजीव रखा है। यह न केवल कोलकाता के लोगों के लिए सस्ता परिवहन माध्यम है, बल्कि इसके चलते यह शहर अपने वायुमंडलीय प्रदूषण से भी बचा रहता है। यह कोलकाता के लोगों के जीवन में इस प्रकार घुलमिल गया है जैसे ट्राम के बगैर सवारी का कोई औचित्य ही नहीं। इसी तरह कोलकाता से हाथ रिक्शे का भी संबंध रहा है, लेकिन यह मानव द्वारा खींचा जाना अमानवीय था। इसलिए यह बंद कर दिया गया लेकिन अब भी उसकी याद कोलकाता वासियों के दिलों से महरूम नहीं हो सका है।
ट्राम:कोलकाता की पहचान
बंगाली और हिंदी सिनेमा ने ट्राम को एक नए आयाम में प्रस्तुत किया है। फिल्मों में अक्सर ट्राम को उन खास जगहों के रूप में दिखाया जाता है, जहां नायक अपनी नायिका से प्यार का इज़हार करता है। इन दृश्यों ने ट्राम को सिर्फ एक साधारण वाहन नहीं, बल्कि शहर की पहचान का प्रतीक बना दिया है। ट्राम की घंटियों की आवाज़, उसके पहियों की सरसराहट, और उस पर सवार यात्रियों की बातें, सब मिलकर कोलकाता के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। स्कूल के दिनों में छूट वाली टिकट लेकर कोलकाता की सड़कों पर ट्राम से अवारगी करने का एक ऐसा अनुभव जिसे शायद शब्दों में व्यक्त ना किया जा सके। कोलकाता की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है 'अड्डा'। अच्छे रेस्तां और कॉफी हाउस के बावजूद कभी -कभी आप कुछ युवकों के समूह को बेवजह ही ट्राम में बैठकर गप्पे मारते, हंसी-ठिठोली करते आप अब देख सकते हैं।
इसी वजह से, ट्राम जीवन में रच-बस गया है। जब भी ट्राम से संबंधित कोई कानूनी मामला सामने आता है, तो यह केवल एक वाहन से जुड़ा मुद्दा नहीं होता, बल्कि यह कोलकाता की धरोहर, उसकी भावनाओं, और उसके अस्तित्व से जुड़ा होता है।
ट्राम पर छाए सियासी बादल
जनवरी 2023 में, कोलकाता उच्च न्यायालय की एक बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगनम और न्यायमूर्ति हिरणमय भट्टाचार्य शामिल थे, उन्होंने एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका 'पीपल्स यूनाइटेड फॉर बेटर लिविंग इन कोलकाता' (PUBLIC) नामक संगठन ने दायर की थी। इस याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार की बिटुमिनाइजेशन प्रक्रिया (सड़क पर डामर बिछाने) के बाद ट्राम को हटा दिया जाएगा, और संभवतः उसके डिपो को निजी कंपनियों को बेच दिया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस निर्णय के पीछे कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया था।
याचिका में कई उदाहरण दिए गए, जैसे लंदन, पेरिस, और इस्तांबुल जैसे शहरों ने अपने ट्राम नेटवर्क को फिर से जीवंत किया है। ऐसे में, कोलकाता के ट्राम को हटाना न केवल अनैतिक है, बल्कि अव्यावहारिक भी। इसका प्रभाव न केवल शहर की आवाजाही पर पड़ेगा, बल्कि पर्यावरण, नागरिक स्वास्थ्य, और सामाजिक संरचना पर भी नकारात्मक असर डालेगा।
न्यायालय की चिंताएं और राज्य सरकार की जवाबदेही
मई 2023 में पहली सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को यह याद दिलाया कि सरकार कोलकाता में ट्राम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है। इस पर अदालत ने भी आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा कि ट्राम जैसे धरोहर को समाप्त क्यों किया जा रहा है? 'यह एक धरोहर है, इसे क्यों समाप्त करना चाहते हैं? इसे क्यों नहीं सुधार सकते?' अदालत ने राज्य सरकार से पूछा।
राज्य सरकार ने कहा कि वे ट्राम को आधुनिक बनाने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन न्यायालय का मानना था कि ट्राम को हटाने से पहले इसके प्रभावों पर एक विस्तृत अध्ययन होना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि जब तक इस याचिका पर कोई निर्णय नहीं हो जाता, तब तक ट्राम ट्रैक्स पर किसी भी तरह की बिटुमिनाइजेशन प्रक्रिया नहीं की जाएगी।
ट्राम की विरासत और कोलकाता की संस्कृति
कोलकाता उच्च न्यायालय ने जून 2023 में एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी, 'ट्राम कोलकाता की धरोहर का एक हिस्सा हैं, और राज्य सरकार का दायित्व है कि इस धरोहर को न केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संरक्षित किया जाए।' न्यायालय ने यह भी कहा कि जब कोलकाता के लोग यूनेस्को द्वारा दुर्गा पूजा को धरोहर का टैग मिलने पर गर्व करते हैं, तो उन्हें ट्राम सेवाओं के पुनरुद्धार पर भी गर्व होना चाहिए।
अदालत का यह वक्तव्य कोलकाता के लोगों की उन भावनाओं को सदा देता है, जो ट्राम के प्रति हैं। ट्राम केवल एक वाहन नहीं है, यह कोलकाता की संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है। इसके अस्तित्व को समाप्त करना न केवल एक परिवहन माध्यम को समाप्त करना होगा, बल्कि एक शहर की आत्मा को समाप्त करना होगा।
भविष्य की चुनौतियां और ट्राम का अस्तित्व
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता है, कोलकाता की सड़कों पर ट्राम की आवाज़ धीरे-धीरे कम हो रही है। वर्तमान में, जहां ट्राम नेटवर्क का विस्तार 116.62 किलोमीटर तक था, अब केवल 33.04 किलोमीटर पर ही ट्राम चल रही हैं। कोलकाता का भविष्य किस दिशा में जाएगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
लेकिन यह सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि कोलकाता की यह धरोहर संरक्षित रहे। राज्य सरकार और न्यायालय के बीच चल रही इस खींचतान का अंत क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन जो भी हो, कोलकाता के लोगों के दिल में ट्राम की जगह हमेशा रहेगी।
कोलकाता की धड़कन: ट्राम
शायद एक दिन कोलकाता की ट्राम फिर से उसी जोश और उत्साह के साथ महानगर की सड़कों पर दौड़ती नज़र आए, जैसे वह पुराने दिनों में दौड़ा करती थी। शायद कोलकाता के लोग फिर से ट्राम पर बैठकर अपने जीवन की रफ्तार को थोड़ा धीमा कर सकें, और उन पलों को जी सकें, जो उन्हें इस शहर से जोड़ते हैं।
ट्राम और कोलकाता का यह रिश्ता कभी खत्म नहीं हो सकता। चाहे जितनी भी चुनौतियां आएं, कोलकाता की आत्मा में ट्राम हमेशा जीवित रहेगी। यह महानगर और उसकी ट्रामें एक-दूसरे के साथ धड़कते रहेंगे, एक ऐसे धागे से बंधे जो समय के साथ कभी कमजोर नहीं होगा।