बाज़ार पर बैठ कर आयेगी भविष्य की पत्रकारिता

श्रीराजेश

 |   01 Oct 2018 |   7
Culttoday

पत्रकारिता के लिये यह सुदीर्घ संक्रमण काल का अंतिम चरण है, ऐसा मानने की कई ठोस वजहें हैं. इस संक्रमण काल के बाद वह जिस रूप स्वरूप में सामने आयेगी उसका भविष्य उसके पश्चात ही निर्धारित हो सकेगा. पत्रकारिता का वर्तमान निर्धारित करने वाले कारकों में बाजार, तकनीक, सत्ता प्रभाव,नीति नियमन, राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक प्रतिबद्धता, प्रमुख होंगे. जाहिर है सामाजिक परिवेश तथा जनमानस और उसकी प्राथमिकताएं भी महत्व रखेंगी पर इसके बहुत बाद और आखिर में जिसको पत्रकारिता से अलग नहीं किया जा सकता वह है सामाजिक उत्तरदायित्व. सो, संक्रमण का दौर कितना और बाकी है अभी यह तय होना है. यह दौर समाप्त होगा तो फिर बदलावों की स्थापना और उसके विकास का दौर दौरां चलेगा, सो भविष्य की पत्रकारिता का असल चेहरा देखने में या जिसके आधार पर हम पत्रकारिता के भविष्य का आकलन कर सकें उसे आने में अभी थोड़ी देरी है. अभी भी संसार के कुछ देशों में समाचार पत्र ही पत्रकारिता के पर्याय हैं, लेकिन सच तो यह है कि पत्रकारिता का रूढ़ अर्थ अब महज समाचार पत्र के लिये समाचार, विचार, संकलन का काम करने तक सीमित नहीं है. फिर भी अगर जन माध्यमों के जरिये की जाने वाली पत्रकारिता का मायने समाचारों, विचारों और दीगर जानकारियों का संचयन, चयन और प्रकाशन, प्रसारण के जरिये लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया मान ली जाये और दूसरे माध्यमों को छोड़ कर महज समाचार पत्र, टीवी और न्यूमीडिया को लें तो इनके भविष्य की बात द्विस्तरीय होगी. पहला स्तर होगा एक से दो दशक बाद तक का और फिर उसके भी आगे की बात.

अतीत की नींव पर भविष्य की बात की जाये तो पत्रकारिता का वर्तमान भी उसके भविष्य के बारे में बहुत कुछ कहता है. जिन धतकर्मों और सत्कर्मों के बीज पत्रकारिता में अभी डाले जा रहे हैं या आज से कुछ बरस पहले पड़े उनके सिंचन और प्रस्फुटन से पत्रकारिता के भविष्य की पौध चीकने पात वाली होगी या नहीं अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है. फिलवक्त यह तो कहा ही जा सकता है कि पत्रकारिता अपने चुनौतियों और बदलावों वाले दौर से और चमकदार हो कर निकलेगी. भले ही शुद्धता वादी उसे पत्रकारिता और उसका निर्वहन करने वालों को पत्रकार मानने से इनकार कर दें और उन्हें दूसरी किसी संज्ञा से विभूषित करें. पत्रकारिता के भविष्य के आकलन का सबसे दुखद निष्पत्ति यह है कि यह पत्रकारिता के पारंपरिक कौशल का हंता बनेगा. भविष्य की पत्रकारिता में पत्रकार गौण होंगे. वे काम तो लेखन और संपादन और सामग्री संकलन इत्यादि का ही कर रहे होंगे, पर उसका तौर तरीका, टूल-टेकनीक, मूल्य और मान्यता मापदंड और उद्देश्य बदल चुके होंगे, उनके नाम कंटेट क्यूरेटर और सामग्री प्रबंधक जैसे कुछ भी हो सकते हैं. एक पत्रकार के ज्ञान, पहुंच और प्रसिद्धि की महिमा जो पूर्व में निर्मित होती थी, वर्तमान में खंडित है भविष्य में खत्म हो जायेगी. इसलिये पत्रकारिता के भविष्य और भविष्य की पत्रकारिता की बात तो ठीक, पर पत्रकार के भविष्य के बारे में बहुत कुछ शुभ नहीं है. पत्रकारिता के भविष्य को ले कर तमाम तात्कालिक और दूरगामी महत्व के सवालों में से पत्रकारों, पारंपरिक पत्रकारिता, पत्रकारिक मूल्य तथा तकनीकि प्रभाव के प्रश्न सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं. 

भविष्य में जो भी कम से कम श्रमसाध्य होगा, उसको अपनाने की होड़ होगी. पढ़ना, सोचना,  लिखना समय, बुद्धि और श्रम का निवेश मांगते हैं, इसलिये देखना सबसे सहज होगा. ऐसे में सूचना, समाचार, विचार के लिये वीडियो सबसे मुफीद प्रारूप होगा. अखबार, टीवी रेडियो की बजाये स्मार्टफोन या और उससे भी आगे वीआर या वर्चुअल रिएलिटी सर्वसुलभ या श्रेष्ठ माध्यम होगा. विविधताओं के इस दौर में कोई माध्यम किसी को पूरी तरह नष्ट नहीं कर सकता. बेशक भविष्य ऑनलाइन और वीडियो का होगा, पर समाचारपत्र अपनी सीमितता में ही सही पर मौजूद होंगे. वैसे अपने देश में अभी भी समाचार पत्रों के प्रसार के लिये बहुत स्थान है. प्रति 1000 आबादी पर अखबारों के तकरीबन सवा सौ पाठक देश में हैं. विदेशों में इतनी ही आबादी पर 300 से 550 के बीच पाठक पाये जाते हैं. साक्षरता वृद्धि के साथ अपने यहां भी पाठक बढ़ेंगे. अखबारी व्यवसाय के नजरिये से सभी संभावित ग्राहक हैं. तकरीबन 40 करोड़ संभावित पाठक कुछ दशकों में बढ़ेंगे. सो अगले दो तीन दशकों तक उसके भविष्य की कोई चिंता नहीं है. इसलिये इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी भी खूब आयेगी. अमरीका और यूरोप में समाचार पत्रों का प्रसार और प्रभाव उतर पर है. लेकिन भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे कई देशों में, धीमे ही सही, प्रसार बढ़ रहा है. पाठक, ग्राहक य उपभोक्ता, मध्य वर्ग बढ़ेगा, जेब में पैसा आयेगा तो विज्ञापन पर खर्च और इसका बाजार काफी बड़ा हो जायेगा. इस बड़े बाजार पर कब्जे की लड़ाई पत्रकारिता के व्यावसायिक पहलू की बड़ी परिघटना होगी. निकट भविष्य में इक्वीजीशन, मर्जर या पार्टनरशिप का लंबा दौर चलेगा. छोटे अखबार बड़े अखबारों के हाथों बिकेंगे, बंद होंगे.

अगर भविष्य के न्यू मीडिया की होड़ में अखबारों को बाजार और विज्ञापन की दुनिया में टिकना है तो उन्हें अपनी प्रस्तुति, सामग्री तकनीक और पहुंच में लगातार सुधार करना होगा और यह वे इस दौर में वही कर रहे होंगे. विगत में अखबार इस प्रक्रिया में अरबों फूंक चुके हैं. पर अब उन्हें यह काम रणनीतिक तौर पर करना होगा. अख़बार समाचार जानने के लिये कम बल्कि घटनाओं को समझने और उनके विश्लेषण के लिए पढ़ा जाएगा. पाठक की रुचि इसमें कम होगी कि कल क्या हुआ था. उसकी मुराद यह जानने की रहेगी कि कल क्या होगा. समाचारपत्र जब किसी नई कहानी को अलहदा और दिलचस्प अंदाज़ में सुनाएंगे, समस्याओं की बात की बजाये समाधान के रास्ते बताएंगे, तो लोग उन्हें ज्यादा मूल्य देकर भी खरीदेंगे और समय व्यय करके पढ़ेंगे भी. वैकल्पिक पत्रकारिता, कारपोरेटी चंगुल से मुक्त होने की छटपटाहट तमाम नए तजुर्बे करायेगी. अखबार को वास्तविक मूल्य पर बेचने, जो वर्तमान का आठ से दस गुना हो सकती है या फिर इसे मुफ्त अथवा बेहद सस्ता करने की कवायद तक. इसकी भरपाई अपने कंटेट को दूसरे मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म पर बेच कर की जायेगी. यह तय है कि आने वाले डेढ़ दशकों में समाचार पत्र और फैलेंगे. लेकिन इसके बाद अखबारों की दुनिया उसी तरह सिकुड़ेगी जैसे पत्रिकाओं का संसार सिमट गया. वजहें भले थोड़ी अलग-अलग हों, पर उनका मूल कारण तकरीबन एक ही होगा. समाचार पत्रों की बिक्री बिल्कुल न्यून कब हो जायेगी, जब देश शत प्रतिशत साक्षर हो जायेगा और डिजिटल-डिवाइड खत्म हो जायेगा. आप इसे युटोपियन विचार कह सकते हैं, पर यह दिन आयेगा.

फिक्की-केपीएमजी मीडिया एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2017 के अनुसार विगत दो बरसों के दौरान देश में प्रिंट मीडिया की बढ़त दर महज 7 फीसद रही. इस दौरान टीवी माध्यम बढ़ोतरी भी 8.5% ही रही. दोनों को जबरदस्त चुनौती न्यू मीडिया से मिल रही है. फिक्की-केपीएमजी मीडिया एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की उसी रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दो सालों के दौरान डिजिटल मीडिया में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. उसमें भी वीडियो की खासी धूम है. यह चलन भविष्य में और जोर पकड़ेगा. दुनिया के किसी भी सर्वाधिक वितरण संख्या वाले समाचार पत्र से अधिक पहुंच फेसबुक की है. मुख्यधारा की पत्रकारिता में सीमितता, अनस्तरीयता विश्वसनीयता में गिरावट डिजिटल या न्यू मीडिया की पत्रकारिता को भविष्य में और बढ़ायेगी. न्यूमीडिया पत्रकारिता के क्षेत्र में टीवी को पीछे छोड़ देगा. टीवी मनोरंजन के क्षेत्र में भी दूसरे नंबर पर भी रहेगा. पत्रकारिता कभी एक मिशन थी, जिसे अब भी पूरी तरह व्यवसाय नहीं माना जाता. लेकिन अगले दशक के भीतर ही यह पूर्णतया एक व्यवसाय होगा. यह बात पत्रकारीय या मीडिया संस्थान और उसके उपयोग कर्ता सभी मानेंगे. भविष्य में मीडिया कंपनियों का वैल्यूशन तय करेगा कि उनका भविष्य क्या होगा, उन्हें विदेशी कर्ज और निवेश मिलेगा या नहीं. मिलेगा तो वे उसे किस तरह चुकाएंगी और उस चुकता करने में पत्रकारीय मूल्यों से किस कदर समझौता करेंगी. यह सब भविष्य की पत्रकारिता का विषय होगा. जो पत्रकारिता मूल्य, नैतिकता, सोदेश्यपूर्णता और मुद्दों को आगे रखती थी, वह पूरी तरह व्यवसाय और लाभ को सामने रखेगी, और इसके बावजूद उसे अपनी विश्वसनीयता बचाने का जतन भी करना होगा. सो वह उसके लिये अनेक नये तरह के प्रयोग करेगी. भविष्य में पत्रकारिता की प्राथमिकता पवित्रता स्थापित करने की बजाये पाप छुपाने की होगी.

हालांकि पाठकों दर्शकों में अधिकतर विवेकशील होंगे और भविष्य में उनके पास सच जानने और बेहतर चुनने के कई विकल्प भी मौजूद होंगे. आम-खास, अमीर-गरीब, मूर्धन्य और मूर्ख हर तरह की सूचनायें दिये जा रहे हैं. कोई रोक टोक नहीं. सूचना का यह लोकतंत्र भविष्य में अराजक होने से पहले संभल जायेगा. इस समय देश में कई लाख समाचार, सूचनाएं और विचार लोगों तक पहुंचा रहे हैं. यह काम वे नियमित तौर पर कर रहे हैं, माध्यम है इंटरनेट. एक मायने में वे पर परंपरागत अर्थों में पत्रकार नहीं हैं. इसी तरह का काम कर कुछ लोग नकारात्मक प्रचार भी फैला रहे हैं. वे किसी परंपरागत जन माध्यम के लिये काम नहीं करते.  इसे पत्रकारिता कहें भी या नहीं, इस पर विवाद है. सरकार और परंपरागत मीडिया इन्हें सिटिजन जर्नलिस्ट तक नहीं मानता, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्मार्टफोन कुछ छोटे-मोटे उपकरण या डिजिटल कैमरा और मोजो या मोबाइल जर्नलिज्म की विधा से हर कोई पत्रकार बन रहा है और यह चलन भविष्य में और जोर पकड़ेगा. तो जाहिर है, आगे चल कर पत्रकारिता परंपरागत पत्रकारों की मोहताज नहीं रहने वाली. यहां तक कि वह प्रशिक्षित पत्रकारों की भी मुखापेक्षी नहीं होगी. यानी जिस परंपरागत रूप में पत्रकारिता आज तक चलती रही है, उस रूप में आगे वह नहीं चलेगी. ऐसे में इसके शिक्षण प्रशिक्षण के तमाम पहलू भी बदल जायेंगे. पढ़ाई हो या सक्रिय पत्रकारिता, इन बदलावों से बड़ी चिंता है बदली तकनीक और आवश्यकता के अनुसार पत्रकारिता में विषय वस्तु या सामग्री का बदलाव. और इससे भी बड़ी चिंता है पत्रकारिता का पूरी तरह बाजारोन्मुख होना.

स्रोतः गंभीर समाचार


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