आज दुनिया तेज़ी से डिजिटल, इलेक्ट्रिक और पर्यावरण-केंद्रित आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रही है। इस परिवर्तन की नींव उन तत्वों पर टिकी है जिन्हें हम दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements – REEs) कहते हैं। भले ही ये तत्व वास्तव में "दुर्लभ" न हों, लेकिन खनन योग्य प्राकृतिक सांद्रता में इनकी उपलब्धता बहुत कम है। यही कारण है कि वैश्विक राजनीति और व्यापार में इनका महत्व असाधारण है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में कुल 17 तत्व शामिल होते हैं: लैंथेनम, सेरियम, प्रासियोडाइमियम, नियोडाइमियम, प्रोमेथियम, समेरियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम, टेर्बियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यिटेरबियम और ल्यूटेशियम। इसके अतिरिक्त स्कैंडियम और यिट्रियम को भी, यद्यपि वे वास्तविक लैंथेनाइड नहीं हैं, उनके समान रासायनिक गुणों के कारण इस समूह में गिना जाता है।
इनमें से नियोडाइमियम, प्रासियोडाइमियम, डिस्प्रोसियम और टेर्बियम जैसे तत्व स्थायी चुंबकों (permanent magnets) के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन्हीं की बदौलत इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टरबाइन, लड़ाकू विमानों के मार्गदर्शन तंत्र और उच्च गुणवत्ता वाले डिजिटल कैमरे संभव हो पाए हैं।
हालाँकि ये तत्व पृथ्वी में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन इनका निष्कर्षण और परिष्करण (refining) प्रक्रिया अत्यंत जटिल, महंगी और पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है। इस संकट को और भी गहरा बनाता है चीन का लगभग एकाधिकार – 2023 में चीन ने वैश्विक REE उत्पादन का 70% और रिफाइनिंग का 90% हिस्सा अकेले संभाला, यह आंकड़ा यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) द्वारा जारी किया गया।
दुनिया भर में REE उद्योग का मूल्य 2024 में 12.4 अरब डॉलर था, जो 2033 तक 37 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है – यानि लगभग 12.8% की वार्षिक वृद्धि दर। इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री, जो 2017 में मात्र 10 लाख थी, वह 2023 तक 1.42 करोड़ तक पहुँच गई, जिससे NdFeB चुंबकों की मांग में भारी उछाल आया।
अमेरिका भी MP Materials और USA Rare Earth जैसी कंपनियों के ज़रिए घरेलू उत्पादन पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है। 2017 में 15 हजार टन से बढ़कर 2023-24 में उत्पादन लगभग 43-45 हजार टन तक पहुँच गया है, हालाँकि यह अभी भी चीन के मुकाबले बहुत कम है। चीन ने 2023 में अकेले 2.4 लाख मीट्रिक टन REEs का उत्पादन किया, जबकि वैश्विक कुल 3.5 लाख मीट्रिक टन था।
यह विडंबना ही है कि अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंटेन पास खान और ऑस्ट्रेलिया की माउंट वेल्ड जैसी जगहों पर REE भंडार मौजूद हैं, फिर भी अंतिम प्रोसेसिंग के लिए ये देश चीन पर निर्भर हैं क्योंकि घरेलू परिष्करण तकनीकी रूप से या तो संभव नहीं है या आर्थिक रूप से व्यावसायिक नहीं।
इन तत्वों के स्थानापन्न (substitutes) भी न तो तकनीकी रूप से प्रभावी हैं, न ही आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य। जैसे डिस्प्रोसियम चुंबकों को अधिक तापमान सहनशील बनाता है, और यूरोपियम LED डिस्प्ले के लिए आवश्यक लाल फॉस्फोरेंस देता है – इन गुणों को अन्य तत्वों से दोहराना लगभग असंभव है।
हालाँकि ई-कचरे से पुनः प्राप्ति (recycling) और खदानों की tailings से पुनः प्रयोग जैसे विकल्प प्रशंसनीय प्रयास हैं, परंतु मांग को पूरा करने के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने पहले ही चेताया है कि 2040 तक दुनिया में REEs की खपत 700% तक बढ़ सकती है – मुख्य रूप से हरित ऊर्जा संक्रमण के चलते।
इन तत्वों के निष्कर्षण की प्रक्रिया से अक्सर भारी पर्यावरणीय क्षति, रेडियोधर्मी प्रदूषण और सामाजिक विस्थापन हुआ है। जिन क्षेत्रों में हाथ से खनन होता है, वहाँ बाल मज़दूरी, अवैध व्यापार और शोषण की घटनाएँ आम हैं – जिससे इन आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कानूनी, नैतिक और ब्रांड छवि पर संकट उत्पन्न होता है।
इसी कारण, अब कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखला में स्रोतों की पारदर्शिता और ESG (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक) नीतियों को शामिल कर रही हैं ताकि भविष्य में संचालन बाधित न हो।
पश्चिमी सरकारें भी अब REE आपूर्ति शृंखला को पुनः देश में लाने और मज़बूत करने के प्रयास में जुट गई हैं। अमेरिका ने डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट के तहत REEs को "आवश्यक खनिज" घोषित किया है। वहीं, यूरोपीय रॉ मटेरियल्स एलायंस (ERMA) अपने सदस्य देशों के लिए एक संप्रभु और टिकाऊ आपूर्ति संरचना स्थापित करने का प्रयास कर रही है। ऑस्ट्रेलिया की कंपनियाँ, जैसे Lynas Rare Earths Ltd., इस रणनीतिक संघर्ष में चीन के एक संभावित संतुलन बिंदु के रूप में उभर रही हैं।
दुर्लभ पृथ्वी तत्व आज के युग के आधुनिक रसायनज्ञ हैं – ये हरित ऊर्जा और डिजिटल क्रांति के इंजन में ईंधन भरते हैं। लेकिन पूरी दुनिया का एक ही दरबान पर निर्भर होना एक रणनीतिक कमजोरी है। अब समय आ गया है कि आपूर्ति का विविधीकरण, नैतिक खनन और सतत परिष्करण को केवल विकल्प न मानकर आवश्यकता समझा जाए।
एक मज़बूत, लचीली और पारदर्शी आपूर्ति श्रृंखला ही भविष्य में किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता और स्थिरता को परिभाषित करेगी।
धनिष्ठा डे कल्ट करंट की प्रशिक्षु पत्रकार है। आलेख में व्यक्त विचार उनके
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