भारत की रणनीतिक हकीकत

संदीप कुमार

 |  30 Jun 2025 |   4
Culttoday

जब कोई देश अपने लक्ष्यों की ओर दृढ़ता से बढ़ता है, तो आलोचनाओं की बौछार होना स्वाभाविक है। वैश्विक मामलों की प्रतिष्ठित पत्रिका 'फॉरेन अफेयर्स' में 17 जून, 2025 को प्रकाशित एश्ले जे. टेलिस का आलेख  'India’s Great-Power Delusions' भी इसी कड़ी का हिस्सा है। यह आलेख भारत की वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षाओं पर प्रश्नचिह्न लगाता है और उसकी रणनीतिक नीतियों को भ्रमपूर्ण बताता है। लेकिन क्या टेलिस का यह विश्लेषण जमीनी हकीकत से मेल खाता है? क्या भारत वास्तव में अपनी 'रणनीतिक स्वायत्तता' के कारण महाशक्ति बनने से वंचित रह जाएगा? क्या भारत का लोकतांत्रिक ढांचा इतना कमजोर है कि वह वैश्विक नेतृत्व की जिम्मेदारी नहीं निभा पाएगा? यह जवाबी आलेख इन सभी सवालों का तथ्यात्मक और तार्किक जवाब देता है, और यह दर्शाता है कि भारत न तो भ्रमित है, और न ही कमजोर। यह आलेख एक नए भारत की कहानी कहता है - एक ऐसा भारत जो अपनी शर्तों पर, अपने मूल्यों के साथ और अपने तरीके से वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहा है। यह आलेख भारत की रणनीतिक हकीकत को समझने का एक प्रयास है, जो पश्चिमी विश्लेषकों के पूर्वाग्रहों से मुक्त है।

अक्सर पश्चिमी विश्लेषक भारत की महाशक्ति बनने की संभावनाओं पर पूर्वाग्रह पूर्ण मानसिकता के साथ लिखते हैं, जैसे भारत का भविष्य पूरी तरह से पश्चिमी समर्थन पर निर्भर हो। वे या तो भारत की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं या फिर इस धारणा को बढ़ावा देते हैं कि भारत बिना पश्चिमी मदद के आगे नहीं बढ़ सकता। Ashley J. Tellis का आलेख 'India’s Great-Power Delusions' भी इसी पूर्वाग्रह का शिकार है, जिसमें भारत की वैश्विक स्थिति, रणनीतिक प्राथमिकताओं और आंतरिक राजनीति को संकीर्ण पश्चिमी नजरिए से देखा गया है। यह लेख इसी एकतरफा आलोचना का संतुलित, और तथ्यों पर आधारित उत्तर है, जो भारत की विदेश नीति की जटिलताओं, लोकतांत्रिक विविधता और आर्थिक विकास की जमीनी हकीकत को सामने रखते हुए एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत करता है। हम दिखाएंगे कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता भ्रम नहीं, बल्कि एक सुविचारित नीति है, और भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर नहीं, बल्कि जीवंत है।
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: दूरदर्शिता, न कि भ्रम
टेलिस का मानना है कि भारत का गुटनिरपेक्ष रवैया उसकी वैश्विक शक्ति बनने की राह में रोड़ा है, लेकिन यह विश्लेषण भारत की विदेश नीति की ऐतिहासिक समझ और आज के जटिल वैश्विक परिदृश्य की वास्तविकता को अनदेखा करता है। 'अपने पैर पर खड़ा होना' - भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' सिर्फ अतीत का बोझ नहीं, बल्कि आज के बहुध्रुवीय और अनिश्चित विश्व व्यवस्था में लचीलेपन की कुंजी है। यह भारत को बिना किसी पूर्व प्रतिबद्धता के विभिन्न हितधारकों के साथ संवाद करने की स्वतंत्रता देता है। 2023 के बाद भारत ने रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को बनाए रखते हुए अमेरिका, फ्रांस और इजराइल के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत किया है। हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत किसी भी देश के साथ अपने संबंधों को किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखता, जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का स्पष्ट प्रमाण है। 'सांप भी मरे, और लाठी भी ना टूटे' - भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है।
यह सिर्फ शक्ति संतुलन का खेल नहीं है, बल्कि एक विवेकपूर्ण बहुपक्षीय कूटनीति का प्रदर्शन है। यह नीति न केवल चीन को संतुलित करने तक सीमित है, बल्कि भारत को एक 'सेतु राष्ट्र' बनने की क्षमता भी देती है - जो वैश्विक उत्तर और दक्षिण, पूरब और पश्चिम के बीच पुल का काम कर सकता है। Carnegie India के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता उसे विभिन्न वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाती है, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, आतंकवाद हो, या महामारी हो।
आर्थिक परिपक्वता: गति के साथ समावेश का मॉडल:
टेलिस भारत की आर्थिक प्रगति को चीन की तुलना में धीमी बताकर उसे एक अपूर्ण महाशक्ति साबित करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि भारत की विकास रणनीति समावेशिता, लोकतांत्रिक संरचना और स्थिरता पर आधारित है। 'सबका साथ, सबका विकास' - भारत का आर्थिक विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो सभी नागरिकों को लाभान्वित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में, IMF के 2024 के अनुमानों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, जो दर्शाते हैं कि भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ते हुए तीसरे स्थान पर पहुंचने की संभावना है। वर्तमान में यह चौथी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जो कि हकीकत है। यह दर्शाता है कि भारत एक मजबूत और तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, जिसमें वैश्विक विकास का इंजन बनने की क्षमता है। इसी तरह, विश्व बैंक के अनुसार, भारत का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) - Aadhaar, UPI, CoWIN, ONDC - विकासशील देशों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल है। NITI Aayog की एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि DPI ने भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है, भ्रष्टाचार को कम किया है, और सरकारी सेवाओं की दक्षता में सुधार किया है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत नवाचार और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इतना ही नहीं, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम दुनिया में तीसरे स्थान पर है, जिसमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न शामिल हैं। Brookings के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम नवाचार और रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, और यह देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
इसके विपरीत, चीन की विकास रणनीति भारी ऋण, निर्माण पर अधिक निर्भरता और सीमित पारदर्शिता पर आधारित रही है। 'लालच बुरी बला है' - चीन की तेज आर्थिक वृद्धि का एक बड़ा कारण उसका अधिनायकवादी रवैया भी है, जो लंबे समय में टिकाऊ नहीं है। Bloomberg के अनुसार, चीन का ऋण-से-जीडीपी अनुपात 300% से अधिक है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। भारत की आर्थिक संरचना भले धीमी हो, लेकिन यह सशक्त, स्थायी और लोकतांत्रिक भागीदारी पर आधारित है।
लोकतंत्र और विविधता: एक जीवंत प्रणाली, सुधार की गुंजाइश के साथ:
टेलिस का यह आरोप कि भारत अब एक उदार लोकतंत्र नहीं रह गया है, एक सरलीकृत निष्कर्ष है। 'धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय' - यह सच है कि भारत में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा है और कुछ संस्थानों पर दबाव भी है, लेकिन इससे भारत की लोकतांत्रिक जड़ें कमजोर नहीं हुई हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और उसे गठबंधन सरकार बनानी पड़ी, यह लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण है, न कि उसकी मृत्यु का। 'जनता जनार्दन होती है' - भारतीय मतदाताओं ने यह दिखा दिया कि वे किसी भी पार्टी को असीमित शक्ति नहीं देने के लिए तैयार हैं, और वे विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत की न्यायपालिका, चुनाव आयोग और स्वतंत्र मीडिया - चाहे दबाव में हों - फिर भी सक्रिय बने हुए हैं। ये संस्थान लोकतंत्र के स्तंभ हैं और वे सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की न्यायपालिका ने हाल के वर्षों में सरकार के कई फैसलों को चुनौती दी है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की है। इतना ही नहीं, विपक्षी दल 10 राज्यों में सत्ता में हैं, जो संघवाद की शक्ति को दर्शाता है और यह दिखाता है कि भारत में सत्ता का विकेंद्रीकरण है और विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को प्रतिनिधित्व मिलता है।
हालांकि, भारत में मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के हनन की कुछ घटनाएं चिंताजनक हैं, और इन मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है। जैसा कि 'पहले अपने घर को व्यवस्थित करो' कहा जाता है, भारत को अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों के संरक्षण को और मजबूत करना चाहिए। Brookings India के अनुसार, भारत में नागरिक समाज और स्वतंत्र मीडिया को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है, ताकि वे सरकार पर निगरानी रख सकें और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकें।
भारत का लोकतंत्र आसान नहीं है, यह संघर्षों से भरा है। यह विविधता से भरा हुआ है, और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत भी है। भारत के मतदाता सत्ताधारी दलों को बदलते हैं, नीतियों पर दबाव बनाते हैं, और सांप्रदायिकता के खिलाफ भी प्रतिक्रिया देते हैं। 'विविधता में एकता, भारत की विशेषता' - यही भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है, और यह भविष्य में भी बनी रहेगी।
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका: भागीदार, न कि अनुगामी
टेलिस भारत की वैश्विक भूमिका को सीमित बताकर यह भूल जाते हैं कि हाल के वर्षों में भारत ने खुद को एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी के रूप में कैसे स्थापित किया है। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' - भारत फल की चिंता किए बिना वैश्विक कल्याण के लिए काम करता है। भारत ने G20 की अध्यक्षता (2023) में ग्लोबल साउथ की आवाज को वैश्विक केंद्र में रखा। 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि यह भारत के वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक था। इससे यह प्रदर्शित हुआ कि भारत विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रतिबद्ध है, और वह वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इतना ही नहीं, कोविड महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन मैत्री के तहत 150 से अधिक देशों को टीके दिए, जबकि पश्चिमी देश अपने टीकों को लेकर संरक्षणवादी थे। यह भारत की उदारता और मानवतावादी मूल्यों का प्रमाण था। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' - भारत ने पूरी दुनिया को एक परिवार मानकर मदद की, और यह दिखाया कि वह एक जिम्मेदार और परोपकारी वैश्विक शक्ति बनने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, जलवायु न्याय, डेटा संप्रभुता और डिजिटल शासन में भारत ने नीति निर्धारण में अग्रणी भूमिका निभाई है, जो यह दर्शाता है कि भारत वैश्विक मुद्दों पर रचनात्मक और प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है, और वह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण आवाज है।
भारत न तो पूरी तरह से पश्चिम के साथ है, और न ही चीन के नेतृत्व वाले संगठनों में आत्मसात हुआ है। यह सहयोग और संतुलन के उस मध्य मार्ग पर चल रहा है, जो दुनिया को एकतरफा शक्ति से बचाकर समावेशी बहुध्रुवीयता की ओर ले जा सकता है। भारत एक ऐसा खिलाड़ी है जो अपने हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। 'संतुलन ही जीवन है' - भारत एक ऐसी वैश्विक शक्ति बनना चाहता है जो सभी के साथ सहयोग कर सके, बिना किसी के अधीन हुए।
चीन से तुलना: आकार नहीं, प्रणाली का सवाल
टेलिस बार-बार भारत की तुलना चीन से करते हैं - जीडीपी, सैन्य क्षमता और वैश्विक प्रभाव के संदर्भ में। लेकिन वे यह समझने में विफल हैं कि चीन और भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्थाएं मौलिक रूप से अलग हैं। 'कौवा चला हंस की चाल, अपनी भी भूल गया' - भारत को चीन की नकल करने की कोई जरूरत नहीं है, उसे अपनी ताकत और मूल्यों के आधार पर विकास करना है। चीन की अर्थव्यवस्था भारी कर्ज से जूझ रही है (Debt-to-GDP ratio ~300%), जबकि भारत वित्तीय अनुशासन में आगे है। IMF के अनुसार, भारत ने हाल के वर्षों में अपने राजकोषीय घाटे को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और यह वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही, चीन का विकास अधिनायकवाद से प्रेरित है, जबकि भारत ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विकास और सामाजिक न्याय को साधा है, जो यह दिखाता है कि भारत विकास को लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का एक साधन मानता है, न कि केवल आर्थिक आंकड़ों को बढ़ाने का। चीन की जनसंख्या घट रही है, जबकि भारत जनसांख्यिकीय लाभांश की ओर बढ़ रहा है। UN के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2027 में चीन से आगे निकल जाएगी, और यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा, जो यह दर्शाता है कि भारत के पास युवा और गतिशील कार्यबल है जो भविष्य में आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
भारत को चीन की प्रतिलिपि नहीं बनना है, बल्कि उसे अपनी विशिष्टता के साथ एक शक्ति बनना है। 'अपनी राह खुद चुनो' - भारत को अपने मूल्यों, संस्कृति और इतिहास के आधार पर अपना भविष्य खुद बनाना है। भारत एक ऐसी महाशक्ति बनना चाहता है जो वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि में योगदान दे सके।
अमेरिका और भारत: साझेदारी, अधीनता नहीं:
टेलिस का यह तर्क कि भारत अमेरिका के साथ किसी औपचारिक गठबंधन में शामिल न होकर उसका समर्थन खो देगा, सहयोग और अधीनता के बीच के अंतर को समझने में विफल है। 'हाथ मिलाओ, पर हाथ मत बंधवाओ' - भारत अमेरिका के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन वह अपनी संप्रभुता से समझौता करने को तैयार नहीं है। भारत और अमेरिका के बीच मालाबार नौसैनिक अभ्यास, तकनीकी सहयोग (जेट इंजन हस्तांतरण, सेमीकंडक्टर), LEMOA, COMCASA जैसे रक्षा समझौते और इंडो-पैसिफिक रणनीतिक समन्वय - ये सभी इस बात के प्रमाण हैं कि भारत एक गंभीर और स्थायी भागीदार है।
लेकिन भारत अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्यों का 'जूनियर पार्टनर' बनने के लिए तैयार नहीं है, और यही उसकी रणनीतिक स्वायत्तता की असली परीक्षा है। 'मित्र बनो, पिछलग्गू नहीं' - भारत अमेरिका के साथ दोस्ती चाहता है, लेकिन वह उसका अंधानुकरण करने को तैयार नहीं है। अमेरिका को यदि सचमुच स्वतंत्र लोकतांत्रिक शक्तियों का समर्थन करना है, तो उसे भारत की विविध और जटिल रणनीति को समझना होगा, न कि उसे पश्चिमी साँचे में ढालने की कोशिश करनी चाहिए। 'समझौता करो, पर आत्मसमर्पण नहीं' - भारत को अमेरिका के साथ सहयोग करने में फायदा है, लेकिन उसे अपनी संप्रभुता और हितों की रक्षा भी करनी है।
निष्कर्ष: भारत की राह अपनी है, भ्रमित नहीं
टेलिस के लेख का एक केंद्रीय आरोप यह है कि भारत अपनी नीतियों से खुद को ही रोक रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत अपने तरीके से, अपनी जटिलताओं के साथ और अपने मूल्यों के आधार पर एक वैश्विक शक्ति बन रहा है। 'चलते-चलते राह मिलेगी' - भारत को अपनी मंजिल का पता है और वह धीरे-धीरे, लेकिन आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। यह रास्ता पश्चिमी विश्लेषकों के लिए अपरिचित हो सकता है, लेकिन यह भारत की सभ्यता-संगत, लोकतांत्रिक और बहुपक्षीय रणनीति का दर्पण है।
भारत की नीतियां आदर्श नहीं हैं, लेकिन वे अराजक भी नहीं हैं। वे जमीनी हकीकत, ऐतिहासिक स्मृति, सामाजिक विविधता और वैश्विक उतार-चढ़ावों के बीच खींची गई एक संतुलित रेखा हैं। इस मध्य मार्ग में ही भारत की शक्ति छिपी है - एक ऐसी शक्ति जो वैश्विक व्यवस्था को न केवल संतुलित कर सकती है, बल्कि उसे न्यायपूर्ण और टिकाऊ भी बना सकती है। 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' - भारत का लक्ष्य पूरी दुनिया के लिए कल्याण और सुख लाना है।
भारत की महानता का मापदंड न केवल उसका सकल घरेलू उत्पाद, सैन्य शक्ति या पश्चिमी अनुमोदन होगा, बल्कि इस बात से होगा कि क्या वह अपनी सार्वभौमिकता में समावेश, सह-अस्तित्व और स्वतंत्रता की भावना को आगे बढ़ा पाया या नहीं। और इस कसौटी पर भारत एक ठोस, सतत और सार्वभौमिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। 'सत्यमेव जयते' - सत्य की ही विजय होती है, और भारत अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर अटल रहते हुए आगे बढ़ रहा है। टेलिस का आलेख भारत की क्षमता को कम आंकता है, लेकिन भारत अपनी रणनीतिक बुद्धिमत्ता, लोकतांत्रिक मूल्यों और वैश्विक प्रतिबद्धता के साथ एक समृद्ध और प्रभावशाली भविष्य की ओर अग्रसर है। यह सिर्फ एक महाशक्ति बनने की कहानी नहीं है, बल्कि एक बेहतर दुनिया बनाने की कहानी है। n
 


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