मृदुला सिन्हाः वात्सल्य की साक्षात् मूर्ति

श्रीराजेश

 |   22 Nov 2020 |   123
Culttoday

18 नवम्बर 2020 का दिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए खासकर बिहार से जुड़े लोगों के लिए अत्यंत ही दुखद रहा, जब मृदुला भाभी (गोवा की भूतपूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा) का देहावसान हो गया. सुबह लगभग 7 बजे ही बिहार की नव-नियुक्त उप-मुख्यमंत्री श्रीमती रेणु देवी का फोन आया और उन्होंने चिंता भरे लहजे में भोजपुरी में मुझे कहा,-“भईया, मामी के हालत सिरियस हो गईल बा.” वे मृदुला जी को मामी कहा करती थी. मृदुला जी मेरे लिए मेरी प्रिय भाभी थी. इसी प्रकार देश भर के हजारों कार्यकर्ताओं की वे किसी की भाभी, किसी की चाची, किसी की दीदी, किसी की ताई, किसी की नानी, किसी की दादी, न जाने क्या-क्या थीं. वे वात्सल्य की साक्षात् मूर्ति, एक ऐसी भारतीय विदुषी नारी थी, जिसकी कल्पना भारतीय संस्कृति में आदर्श पत्नी, आदर्श माता और आदर्श सामाजिक कार्यकर्ता तथा कुशल गृहणी के रूप किया जाता रहा है.

मृदुला भाभी के हृदय में भारतीय संस्कृति और खासकर बिहार की और मिथिला  की लोक संस्कृति रोम-रोम में बसी हुई थी. वे उस क्षेत्र से आती थी, जिसके बहुत पास ही सीतामढ़ी में जनक पुत्री सीता जी का जन्म स्थान हैं. यह संयोग ही कहा जायेगा कि राजा रामचन्द्र की पत्नी सीता पर गहन शोध कर एक अद्भुत उपन्यास लिखने का श्रेय भी मृदुला भाभी को ही जाता है. उस अद्भुत उपन्यास का नाम है “सीता पुनि बोली.” सीता के चरित्र का, सीता की मनोदशा का, उनकी अंतर्व्यथा का, सीता की विडंबनाओं का, सीता के समक्ष उपस्थित समस्याओं और उसके निदान का जिस प्रकार से रोचक वर्णन डॉ. श्रीमती मृदुला सिन्हा जी ने “सीता पुनि बोली” में किया है, उसे पढ़कर कई बार ऐसा लगता है कि वह अपने ही चरित्र का वर्णन कर रही हैं. वे स्वयं भी मिथिला की ही तो थीं. मृदुला सिन्हा जी बाल्यकाल से ही ऐसी संस्कारों में पली-बढीं, कि उनके संस्कारों और उनकी रूचि में लोक संस्कृति, लोक साहित्य, लोक कथाओं और लोक गीतों का समन्वय गहराई से पनप गया.

उन दिनों लड़कियों को होस्टल में रखकर पढ़ाने वाले ग्रामीण परिवार कम ही होते थे. किन्तु, मृदुला जी के पिता जी ने उन्हें बाल्यावस्था में ही बिहार के ही लखीसराय के बालिका विद्यापीठ में पढ़ने के लिए भेज दिया था. यह विद्यापीठ उन दिनों इतना उच्च कोटि का और अच्छा शिक्षण संस्थान था कि उसे बिहार का “वनस्थली” कह कर पुकारा जाता था. मृदुला जी जब बीए की पढ़ाई कर रही थी तभी उनका विवाह डॉ. राम कृपाल सिन्हा जी से हो गया, जो मुजफ्फरपुर में बिहार विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे. लेकिन, डॉ राम कृपाल सिन्हा जी के प्रोत्साहन से न केवल उन्होंने बीए की परीक्षा पास की बल्कि एमए भी किया और उन्हीं के प्रोत्साहन से लोक कथाओं को लिखना शुरू किया, जो कि साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, धर्मयुग, माया, मनोरमा आदि पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपती रहीं. बाद में इन लोक कथाओं को दो खण्डों में “बिहार की लोक कथाओं” के नाम से प्रकाशन किया गया. 1968 में डॉ. रामकृपाल सिन्हा भाई साहब एमएलसी होकर पटना आये. मैं भागलपुर में आयोजित वर्ष 1966 के संघ शिक्षा वर्ग पूरा कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के आशीर्वाद से भारतीय जनसंघ में शामिल हो गया था. मैं पटना महानगर के एक सामान्य सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहा था. साथ ही हिन्दुस्थान समाचार में रिपोर्टर भी था. पटना महानगर में बाहर से जो भी प्रमुख कार्यकर्ता पटना आते थे, उनकी देखभाल की जिम्मेवारी सामान्यतः मुझे ही दी जाती थी. इस कारण मैं रामकृपाल भाई साहब के संपर्क में 1968 में आया. जब बिहार में 1971 में कर्पुरी ठाकुर जी के नेतृत्व में संयुक्त विधायक दल की सरकार बनी तो जनसंघ कोटे से डॉ. रामकृपाल सिन्हा जी कैबिनेट मंत्री भी बने. अप्रैल 1974 में जब उनका एमएलसी का कार्यकाल समाप्त हुआ तब रामकृपाल भाई साहब भारतीय जनसंघ के टिकट पर राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित होकर दिल्ली आ गये. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब रामकृपाल सिन्हा जी को मोरारजी देसाई मंत्रीमंडल में संसदीय कार्य मंत्रालय एवं श्रम मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया. 1980 में जब इनका राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, तो वे वापस मुजफ्फरपुर जाकर बिहार विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे. किन्तु, मृदुला भाभी दिल्ली में ही रह गई. क्योंकि, तीनों बच्चें नवीन, प्रवीण और लिली छोटे थे और दिल्ली में ही पढ़ रहे थे. उसी समय बिहार प्रदेश के संगठन मंत्री श्री अश्विनी कुमार जी राज्यसभा में आ गये थे और रफी मार्ग पर विट्ठलभाई पटेल भवन में 301 और 302 न. कमरों में रहते थे. मृदुला भाभी और उनके बच्चें 302 नं0 के कमरे में आ गये. माननीय अश्विनी कुमार जी ने 301  नं0 कमरा के बालकोनी को घेरकर एक छोटा सा कमरा बनवा लिया था और उसी में रहने लगे. हम पटना के कार्यकर्ता जब दिल्ली जाते थे तो 301 नं0 कमरे में जिसमें एक सोफा और एक बेड लगा हुआ था उसी पर सोते थे. 302 नं0 कमरे में हमसबों का भोजन बनता था. भोजन, जलपान, चाय नास्ता आदि की पूरी जिम्मेवारी मृदुला भाभी जी ने अपने ऊपर उठा रखा था. चाहे हम पटना से दो या चार लोग भी जाये, सभी को उतनी ही प्यार से पूछ-पूछकर मनपसंद भोजन बनाकर खिलाना और सबकी देखभाल करना, किसी को कोई तकलीफ न हो इसका ख्याल वे ही करती थी. कपड़े गंदे हो जायें तो वीपी हाउस से धोबिन को बुला कर कपड़े देकर धुलवाना. यहां तक कि जब हम वापस पटना लौटते तो पराठा सब्जी बनाकर ट्रेन में खाने के लिए दे देना. इतना सारा कुछ करती थी. उनकी बातें याद करने पर आंखें भर आती है. मुझे तो इतना प्यार दिया करती थी कि जितना कि अपनी भाभियों ने भी नहीं दिया होगा.

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जब वे भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी, जब महिला आयोग की अध्यक्ष बनी, जब उन्होंने ग्वालियर की महारानी विजया राजे सिंधिया पर उपन्यास लिखा. चाहे मामला व्यक्तिगत या राजनीतिक हो, जब भी वे दुविधा में होती थीं, तो मुझसे जरूर बातें करती थी. जब कहीं कुछ काम नहीं हो रहा हो तो मुझसे ही कहतीं. जब वे गोवा की राज्यपाल बनी तो मुझे सपत्नीक गोवा बुलवाया. राजभवन में ठहराया. कई बार तो वे स्वयं रसोईघर में घुस जाती थी और मना करने पर कहती थी, “कि मेरे देवर जी आये हैं. मैं स्वयं उन्हें उनके मनपसंद की बिहारी व्यंजन बना कर खिलाऊँगी. इन घटनाओं को बताना भी मुश्किल है. मैंने उन्हें अपने विद्यालय दि इंडियन पब्लिक स्कूल, देहरादून में एक कार्यक्रम में बुलाया तो उनके आगमन के दिन उत्तराखंड के राज्यपाल ने राजभवन की गाड़ी अपने ए.डी.सी. के साथ एयरपोर्ट पर भेजी. वे राजभवन की गाड़ी में न बैठकर मेरी गाड़ी में बैठी और उन्होंने कहा कि “मैं राजभवन में न ठहरकर मैं अपने देवर जी के यहां ही ठहरूगीं.” वे मेरे विद्यालय परिसर के मेरे आवास पर ही रूकीं और एक दिन के कार्यक्रम के लिये आई थीं पर वे चार-पांच दिन रूकी.  ऐसे अनेकों संस्मरण हैं. अभी कुछ महीने पहले महान साहित्यकार, लेखक, सांसद डॉ शंकर दयाल सिंह जी की पुत्री डॉ रश्मि सिंह ने अपने आवास पर 9 अप्रैल को एक कार्यक्रम में मृदुला भाभी और मुझे साथ बुलाया था. उस कार्यक्रम में मृदुला भाभी ने मुझे शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया. उनका मेरे प्रति इतना सम्मान था. उन्हें लगा कि जब मैं कार्यक्रम में आया हूँ तो मुझे भी सम्मान मिलना चाहिए. वे ऐसी विदुषी भारतीय नारी थी मृदुला जी. उन्हें किस प्रकार से श्रद्धांजलि अर्पित किया जाये यह समझ में नहीं आता. उनके व्यक्तित्व की बार-बार याद आती है.

एक बार दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी के वृन्दावन आश्रम में एक कार्यक्रम में वे मंच पर बैठी थी और मैं उनके ठीक सामने नीचे की कुर्सी पर बैठा था. उन्होंने अपने भाषण में मंच पर से कहा कि “मेरे सामने मेरे देवर जी आर के सिन्हा बैठे हैं.” मैंने भी कहा कि फिर अपने देवर को एक गीत सुना दीजियेगा. उन्होंने अपना भाषण समाप्त करने के बाद एक लोकगीत गाकर सुनाया. सारे श्रोतागण खुशी से झूम उठे. यह मेरे लिए तो मर्मस्पर्शी क्षण था ही. इसी प्रकार बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का, पटना में “शताब्दी समारोह” मनाया जा रहा था. मैं स्वागताध्यक्ष था. उस समय के तत्कालीन राज्यपाल और अब देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को आमंत्रित किया गया था. मृदुला भाभी जी को भी मैंने आग्रह पूर्वक बुलाया था. वे पटना आयीं. दोनों तत्कालीन राज्यपालों के साथ मंच पर बैठने का सौभाग्य मिला. वह मंच पर बैठे-बैठे ही रामनाथ कोविंद जी को मेरे बारे में बहुत सी बातें कह गईं. उसे याद कर मन भर आता है.

ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी पवित्र आत्मा को चिर शांति प्रदान करें और डॉ रामकृपाल सिन्हा जी, नवीन, प्रवीण, लिली और सभी परिवार जनों को एवं उनके चाहनेवाले लाखों कार्यकर्ताओं को शोक की घड़ी में ईश्वर शक्ति और संबल प्रदान करें. ऐसी महान कार्यकर्ता बार-बार भाजपा में आते रहें.

  (लेखक भाजपा के संस्थापक सदस्य व राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं.)

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