आज से ट्रंप राज

संदीप कुमार

 |  20 Jan 2025 |   41
Culttoday

डोनाल्ड ट्रंप का पुनः अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर आसीन होना न केवल अमेरिका बल्कि सम्पूर्ण वैश्विक राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक और निर्णायक क्षण के रूप में देखा जा रहा है। उनकी पुनः सत्ता में वापसी के साथ ही उनकी नीतियों और एजेंडे ने विश्व मंच पर चर्चा का केंद्र बनना आरंभ कर दिया है, जिसमें अवैध आप्रवासियों का निष्कासन सबसे प्रमुख मुद्दा है। यह वही विषय है, जिसे लेकर उन्होंने अपने प्रथम कार्यकाल में भी कठोर रुख अपनाया था और इस बार भी इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देने की घोषणा की है।

शपथ ग्रहण से पूर्व ही यह चर्चा व्यापक हो चुकी थी कि ट्रंप की पुनः सत्ता प्राप्ति के पश्चात अमेरिका की विश्व के प्रति नीतियों में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिलेगा, जिससे कई देशों के समक्ष नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। यूरोप में घबराहट व्याप्त है कि ट्रंप का अगला कदम क्या होगा, जबकि कनाडा और चीन ट्रंप की रणनीति को समझने में असमर्थ हैं। ग्रीनलैंड पर उनके पूर्व दावे ने पहले ही भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, और मुस्लिम देशों में भी एक प्रकार की असहजता दृष्टिगोचर हो रही है।

यूरोप में आशंका और भारत व सउदी अरब में प्रसन्नता

यूरोपीय काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (ECFR) और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, कई देश ट्रंप के नीतिगत दृष्टिकोण से आशंकित हैं। इसके विपरीत, ट्रंप को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में महज व्यापारिक सौदेबाजी का एक साधन मानते हुए, रूस और चीन जैसे विरोधियों के साथ उनके मैत्रीपूर्ण संबंधों की चर्चा भी हो रही है, जबकि नाटो देशों जैसे कनाडा और डेनमार्क के प्रति उनका व्यवहार कुछ और ही संकेत देता है।

इस सर्वेक्षण से यह भी ज्ञात होता है कि भारत और सऊदी अरब जैसे गुटनिरपेक्ष देश ट्रंप की वापसी से प्रसन्न हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि ट्रंप के साथ व्यापारिक लेन-देन में उन्हें अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है, जबकि बाइडन का झुकाव मुख्यतः यूरोपीय देशों की ओर था। यूरोप में नाराजगी स्पष्ट है, क्योंकि चुनाव परिणाम उनके लिए सर्वाधिक हानिकारक माने जा रहे हैं। सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि भारत उन देशों में अग्रणी है जो ट्रंप का स्वागत कर रहे हैं, जबकि यूरोप ‘नेवर ट्रम्पर्स’ के समूह में सबसे आगे है।

परंतु इसके विपरीत, भारत में ट्रंप की छवि सदैव विवादास्पद रही है। राष्ट्रपति रहते हुए ट्रंप का दृष्टिकोण मुख्यतः व्यापारिक और रणनीतिक हितों तक ही सीमित रहा, जिसके परिणामस्वरूप उनके संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों ने भारत के व्यापारिक हितों पर सीधा प्रभाव डाला। फिर भी, चीन के उभरते प्रभाव को देखते हुए भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी में मजबूती बनी रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप ने एक सकारात्मक संबंध बनाए रखा, लेकिन उनके कुछ निर्णय, जैसे अमेरिकी वीज़ा नीतियों में बदलाव और H1B वीज़ा से जुड़े मामलों ने भारत की आर्थिक और व्यापारिक स्थितियों पर नकारात्मक प्रभाव डाला।

लाखों अप्रवासियों के लिए खतरे की नई दस्तक

डोनाल्ड ट्रंप के पुनः अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण के साथ ही अमेरिका में अवैध रूप से निवास कर रहे लाखों अप्रवासियों के लिए खतरे की नई दस्तक सुनाई देने लगी है। अपने चुनावी अभियान के दौरान ट्रंप ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि वे अवैध आप्रवासियों को देश से निष्कासित करने हेतु व्यापक निर्वासन अभियान का संचालन करेंगे। शपथ ग्रहण के तुरंत पश्चात इस नीति के क्रियान्वयन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है, और कयास लगाए जा रहे हैं कि यह अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान साबित होगा। विशेष रूप से आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अवैध आप्रवासियों को इस अभियान के तहत लक्षित किया जा रहा है, किंतु यह भी आशंका है कि इसके अंतर्गत सभी अवैध प्रवासियों पर गाज गिर सकती है।

शिकागो जैसे राज्यों, जहां अवैध आप्रवासियों की संख्या अधिक है, से इस अभियान की शुरुआत की जा रही है। अमेरिकी सीमाशुल्क और आव्रजन प्रवर्तन (ICE) के सैकड़ों अधिकारी पहले ही तैनात किए जा चुके हैं। यह निर्वासन अभियान उन राज्यों में केंद्रित होगा, जिन्हें अवैध आप्रवासियों के लिए सुरक्षित शरणस्थली के रूप में देखा जा रहा है।

विरोध की आहट और राजनीतिक ध्रुवीकरण

डोनाल्ड ट्रंप की अवैध आप्रवासियों के प्रति सख्त नीति ने डेमोक्रेट शासित राज्यों में तीव्र विरोध को जन्म दिया है। शिकागो के मेयर और इलिनॉय के गवर्नर जैसे नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे ट्रंप प्रशासन की निर्वासन नीति का विरोध करेंगे और अपनी स्थानीय पुलिस को इस अभियान में सहयोग नहीं देंगे। उनके अनुसार, अवैध आप्रवासी उनके राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं, और नीति का लक्षित होना केवल आपराधिक तत्वों पर होना चाहिए, न कि सभी अवैध प्रवासियों पर।

इस विरोध के कारण, निर्वासन अभियान का प्रभावी क्रियान्वयन एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। ट्रंप प्रशासन और विरोधी राज्यों के बीच इस मुद्दे पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। देश अब स्पष्ट रूप से दो ध्रुवों में बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। ट्रंप समर्थक इसे अमेरिका के हित में एक साहसी कदम मानते हैं, जबकि उनके विरोधियों की दृष्टि में यह मानवीय दृष्टिकोण से हानिकारक और विभाजनकारी है।

ट्रंप के पहले कार्यकाल से सबक

डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी अवैध आप्रवासियों के खिलाफ सख्त नीतियों को लागू करने का प्रयास किया गया था, लेकिन इसका व्यापक विरोध हुआ था। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे के तहत उन्होंने अमेरिकी नागरिकों के हितों को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया था, किंतु उनकी आव्रजन नीति मानवाधिकार संगठनों और डेमोक्रेटिक नेताओं की आलोचनाओं के घेरे में आ गई थी।

पहले कार्यकाल में ट्रंप के निर्वासन अभियान पर यह आरोप लगा था कि वे केवल आपराधिक प्रवासियों को लक्षित करने की बजाय व्यापक रूप से सभी प्रवासियों को निशाना बना रहे हैं। इस बार भी उन पर यही आरोप दोहराए जा रहे हैं। अब देखना यह होगा कि ट्रंप इस बार इन आलोचनाओं का सामना किस प्रकार करते हैं और किस प्रकार अपनी नीति को प्रभावी रूप से लागू करते हैं।

सत्ता में लौटने के बाद की रणनीति

शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे अपनी निर्वासन नीति को कुशलतापूर्वक लागू करें, साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता न फैले। कई अमेरिकी राज्यों में इस नीति के खिलाफ उग्र विरोध की संभावना है, और यदि इसे संवेदनशील तरीके से नहीं संभाला गया, तो यह उनकी सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।

ट्रंप का यह कदम केवल अमेरिका के आंतरिक मामलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। कई देशों के साथ अमेरिका के संबंध इस नीति से प्रभावित हो सकते हैं, विशेषकर उन देशों के साथ जहां से सबसे अधिक अवैध आप्रवासी अमेरिका में प्रवेश करते हैं। मैक्सिको और भारत जैसे देश, जिनके नागरिक बड़ी संख्या में अवैध रूप से अमेरिका में निवास कर रहे हैं, इस नीति से सीधे प्रभावित होंगे। ट्रंप प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस नीति का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर क्या असर पड़ेगा और इससे वैश्विक स्तर पर क्या परिणाम होंगे।

अवैध आप्रवासियों की चुनौती और अमेरिका का भविष्य

अवैध आप्रवासियों का मुद्दा अमेरिका के लिए एक जटिल और संवेदनशील विषय है। एक तरफ जहां अमेरिका को अपनी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है और अवैध गतिविधियों पर लगाम कसनी है, वहीं दूसरी तरफ उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो। ट्रंप की निर्वासन नीति इस संतुलन को कैसे साधती है, यह उनके दूसरे कार्यकाल की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।

ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद अमेरिका में रह रहे लाखों अवैध आप्रवासियों के लिए एक अनिश्चित भविष्य की शुरुआत हो चुकी है। सख्त आव्रजन कानूनों और निर्वासन अभियान के चलते ये लोग न केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, बल्कि उनके परिवारों, विशेषकर बच्चों, पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।

ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति और भारत

डोनाल्ड ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है और उनके दूसरे कार्यकाल में भी इसका महत्व कायम रहेगा। ट्रंप प्रशासन चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए 'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक' की रणनीति को और भी अधिक गति देगा, जिससे भारत को इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को और सुदृढ़ करने का अवसर मिलेगा। पहले कार्यकाल में, अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा सहयोगी के रूप में देखा था और दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग, सैन्य अभ्यास और हथियारों की आपूर्ति को बढ़ावा मिला। ट्रंप प्रशासन भारत को चीन के खिलाफ एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखता रहा है और यह नीति क्वाड (Quad) समूह के माध्यम से और मजबूत हुई है।

हालांकि ट्रंप की व्यापार नीतियां कभी-कभी भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव का कारण बनीं, लेकिन सामरिक दृष्टिकोण से यह नीति भारत के लिए फायदेमंद साबित हुई है।

भारत के पड़ोसी देशों पर ट्रंप का प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप के पुनः सत्ता में आने से भारत के पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ अमेरिका के संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। ट्रंप का रुख पाकिस्तान के प्रति हमेशा कठोर रहा है। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया था और उसे दी जाने वाली सैन्य सहायता में कटौती की थी। ट्रंप की वापसी से पाकिस्तान पर और दबाव बन सकता है कि वह आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाए, जिससे भारत-पाकिस्तान संबंधों में नए मोड़ आ सकते हैं और आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और बढ़ सकता है।

बांग्लादेश के साथ संबंधों में गिरावट के बीच, ट्रंप का दृष्टिकोण थोड़ा जटिल हो सकता है। बांग्लादेश में चीन के बढ़ते प्रभाव से ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति के तहत भारत और अमेरिका दोनों के लिए चिंता का विषय उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में ट्रंप प्रशासन भारत के साथ मिलकर बांग्लादेश के साथ संबंधों को सुधारने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए रणनीतिक कदम उठा सकता है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से लाभकारी हो सकती है, विशेषकर आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में। उनके नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंधों में गहरे सहयोग की संभावनाएं बढ़ेंगी और भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर भी महत्वपूर्ण असर पड़ेगा।

डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के साथ ही अमेरिका एक बार फिर से एक जटिल और संवेदनशील मुद्दे पर खड़ा हो गया है—अवैध आप्रवासियों का मुद्दा, जो देश के सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक ढांचे पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। ट्रंप की निर्वासन नीति को लेकर देश में गहरी विभाजित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जहां उनके समर्थक इसे एक साहसिक और निर्णायक कदम मानते हैं, जो अमेरिका की सुरक्षा, संप्रभुता और आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक है, वहीं विरोधी इसे मानवीय अधिकारों और समाजिक न्याय के खिलाफ एक क्रूर नीति के रूप में देख रहे हैं।

ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका एक नए युग की ओर बढ़ रहा है, जहां आव्रजन और निर्वासन के मुद्दे एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक संवाद के केंद्र में होंगे। इन नीतियों का न केवल अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक संरचना पर, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। खासकर उन देशों पर, जहां से अमेरिका में बड़ी संख्या में अवैध आप्रवासी आते हैं, जैसे कि मैक्सिको, भारत, और मध्य अमेरिकी राष्ट्र।

यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप प्रशासन इस नीति को किस तरह से लागू करता है और क्या वह अपने पहले कार्यकाल की तरह कठोर रुख अपनाते हैं या वैश्विक और घरेलू दबाव को ध्यान में रखते हुए कुछ संशोधित नीतियां लागू करते हैं। इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण होगा कि इस नीति से अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य में क्या बदलाव आते हैं, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।


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