क्वाड : भारत की सुरक्षा का अभेद्य दुर्ग (संपादकीय, अप्रैल 2025)

संतु दास

 |  31 Mar 2025 |   174
Culttoday

क्वाड, अर्थात् क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग, एक ऐसा समूह है जो भारत के साथ अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया को एक मंच पर लाता है। इसका ध्येय इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और अभेद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। क्वाड का विचार, जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की दूरदर्शिता का परिणाम है, जो चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बहुपक्षीय मंच की आवश्यकता को महसूस करते थे। क्वाड केवल आर्थिक और तकनीकी सहयोग का माध्यम नहीं है, बल्कि सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरा है। हालांकि, मोदी सरकार अब तक इसे सैन्य गठबंधन के रूप में चित्रित करने से सतर्कता बरतती रही है, जो चीन के साथ जारी तनाव के बावजूद, भारत की परिपक्व और सुविचारित कूटनीति का प्रतीक है।
भारत की क्वाड को सैन्य हस्तक्षेप से दूर रखने की रणनीति 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जब भारत और चीन के संबंध रसातल में थे। इस गंभीर टकराव के बावजूद, भारत ने क्वाड को सीधे सैन्य कार्रवाई में सम्मिलित नहीं किया, जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को अक्षुण्ण रखने और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत एक विशेष गुट में बंधने के बजाय एक स्वतंत्र और संतुलित शक्ति के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना चाहता है।
क्वाड के सैन्यीकरण से दूरी बनाए रखने के बावजूद, भारत के लिए इस समूह का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है, विशेष रूप से जब पूर्वी सीमा पर चीन की ओर से लगातार चुनौतियां मिल रही हैं। क्वाड की भूमिका अब मात्र एक संवाद मंच तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे एक सशक्त सुरक्षा कवच के रूप में विस्तारित करने की आवश्यकता है। एक ऐसा कवच जो न केवल बाह्य आक्रमणों से रक्षा करे, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को भी बढ़ावा दे।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में क्वाड को एक मजबूत सुरक्षा तंत्र में बदलने की संभावनाएं क्षितिज पर हैं। हालांकि, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल सैन्य गठबंधन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। एक समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है, जो न केवल सैन्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करे, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक क्षेत्रों में भी अटूट साझेदारी स्थापित करे।
भारत का ब्रिक्स में विस्तार का समर्थन और क्वाड में सदस्यों की संख्या में वृद्धि का विरोध एक विरोधाभासी किंतु रणनीतिक निर्णय है। यह दर्शाता है कि भारत अपनी कूटनीति में संतुलन बनाए रखने और वैश्विक शक्ति वितरण में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सचेत है। क्वाड जैसे मंच में अधिक देशों को शामिल करने से उसकी प्रभावी सुरक्षा क्षमता कम हो सकती है, जबकि ब्रिक्स जैसी संस्थाओं में विस्तार से वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की भूमिका को मजबूती मिलेगी।
क्वाड की सफलता के लिए, तथ्यों पर आधारित और निष्पक्ष जानकारी का प्रवाह अनिवार्य है। अतीत में, भारत को गलत सूचनाओं के कारण रणनीतिक मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ा है, खासकर 1962 के युद्ध और 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान। भविष्य में ऐसी त्रुटियों से बचने के लिए, भारत को अत्यंत सतर्क रहना होगा और चीन की योजनाओं को कभी भी कम नहीं आंकना चाहिए।
चीन अपनी वास्तविक मंशाओं को चतुराई से छिपाने में माहिर है, और इसीलिए भारत को अपनी सुरक्षा तैयारियों को निरंतर मजबूत करते रहना चाहिए। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की सुरक्षा साझेदारी, चीन के विस्तारवादी कदमों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अमेरिका के साथ एक अटूट सुरक्षा साझेदारी का महत्व भी इस संदर्भ में बढ़ जाता है। भले ही डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां हमेशा भारत के हितों के अनुरूप न हों, फिर भी अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखना भारत की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
क्वाड, भारत के लिए एक अभेद्य सुरक्षा कवच के रूप में और भी अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है, बशर्ते भारत इसमें सक्रिय रूप से योगदान दे। मोदी 3.0 के कार्यकाल में भारत के पास क्वाड को एक सशक्त और सुदृढ़ सुरक्षा गठबंधन में बदलने का सुनहरा अवसर है। यह गठबंधन न केवल भारत की सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। n


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