भारती जी यानी गुरुकुल परंपरा का अनुशासन

श्रीराजेश

 |   01 Oct 2018 |   265
Culttoday

कभी की बम्बई, यानी आज की मुंबई हमेशा ही मेरे दिलों-दिमाग के सबसे खूबसूरत अहसास का मुकाम रही है. वो बोरी बन्दर, वो टाइम्स इंडिया की बिल्डिंग, वो धर्मयुग के गलियारे, वो संध्याएं, वो समंदर की लहरें, वो  लोकल ट्रेन, चर्चगेट, बांद्रा, खार, अँधेरी तक का सफर ! यादों के सफर का एक जिंदादिल पड़ाव. 
सन 1980 से 87 तक के बम्बई-प्रवास के दौरान 'धर्मयुग' की अँगनाई में इस टिल्लन रिछारिया नाम के प्राणी को भी कुछ कालावधि तक किलोल करने का अवसर मिला. मैं बुद्धि, कला, विज्ञान सब में औसत से औसततर, यह किस करिश्में का अंजाम था, सब के साथ-साथ मैं भी चकित था. 
यूं ही सहज भाव से एक सामान्य-सी दोपहर मैं धर्मयुग की ओर मुड़ गया, गणेश मंत्री जी से मुखातिब था चाय के प्याले के साथ. भारती जी से मिलने के लिए अनुमति की अर्जी लगा चुका था. मंत्री जी बोले, ‘टिल्लन  जी, अवध जी तीन-चार माह की छुट्टी पर जा रहे हैं. आप उनकी ऐवज में यहां काम कर लो.’
कुछ कह-सुन पाता  की भारती जी का बुलावा आ गया. भारती के साथ उनके कक्ष में….. वो हालचाल पूछते रहे, मैं बताता रहा. घर यानी कर्वी - चित्रकूट से लौटा था, रामायण मेला का हाल सुना रहा था. चाय भी आ गयी. कुछ और बातें की. एकाएक पता नहीं किस भाव-उराव में मैं कह गया, ‘मंत्री जी ऐसा-ऐसा कह रहे थे.’ 
बड़े सहज भाव से भारती जी ने सुना. बोले, ‘अच्छा !’. घंटी बजाई,चपरासी आया, तो उससे कहा, ‘सरल जी.’ 
सरल जी आये तो सहज ही मैं अपना चाय का कप लिए खड़ा हो गया. भारती जी ने कहा, ‘सरल जी, ये टिल्लन जी कल से अवध जी का काम देखेंगे. इन्हें यहाँ के तौर-तरीके बता दीजिये.’  
मैं हतप्रभ … ! मेरी ओर देख भारती जी बोले, ‘हाँ अब क्या, जाइए …!’ 
हम दोनों कक्ष से बाहर. सरल जी ने पूछा, 'डियर क्या हुआ !' 
मैंने कहा, ‘भाई साहब, जो भी कुछ हुआ सब आप के सामने ही हुआ.’
मंत्री जी को सरल जी ने बताया तो मंत्री जी मुस्कुराते हुए उलाहना भरे अंदाज़ में बोले, 'जब हमने कहा तो..... और जब भारती ने कहा तो राजी.’ 
मैंने आग्रह सहित मंत्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा, 'मंत्री जी मैं आप की बात को साहस करके अंदर कह गया.’ 
‘चलिए ख़ुशी है, स्वागत है धर्मयुग परिवार में.’
 अजब-गजब अनुभूति थी! …जैसे हजारों पंख उग आये हो, क्षितिज इंद्रधनुषी, हवाओं में सरगम … ऐसा भी होता है क्या! लेकिन यह सब हो चुका था!  घर - परिवार के  बाहर अगर कहीं कोई प्यार-परिवार का अहसास मिला तो धर्मयुग परिवार में !

धर्मयुग की परंपरा यह थी , सारे लेख पहले भारती जी के पास जाते थे . वे अपनी टिप्पणी और निर्देश के साथ सहायक संपादकों के पास भेजते जो उनके निर्देशों के साथ हम उप संपादकों के पास आते थे .एक एक उप संपादक के आमतौर पर 9-10 पेज होते थे . एक साथ 6 अंकों तक का वितान तना होता था . लेख की शब्द गणना , के बाद फ़ोटो , कैप्सन , इंट्रो सहित आर्ट विभाग को सौंप दिया जाता था .लेआउट  में उपलब्ध जगह पर ही लेख फिट होना है . यह काम बड़ी कुशाग्रता से होता . तीन तीन तरह से इंट्रो बनता, तीन तीन हेडिंग और कैप्सन . कलर चार अंकों से पहले नहीं बाद में ही 5 वें 6थें अंक में जा पाता था . वर्तनी पर जोर , भाषा प्रवहमान , हेडिंग चुटीले .इंदिरा गांधी के देहावसान के बाद जब राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने तो पुष्पा भारती जी ने इंटरव्यू किया , हेडिंग निकला ... बोले कम , मुस्काये ज्यादा . .... होते होते जो हेडिंग गया ...' मित भाषी मुस्कान पटु , निपट आस्थावान ' .

 दिसंबर 1980 में शरद जोशी जी के साथ ' हिंदी एक्सप्रेस ' के माध्यम से बम्बई में  प्रवेश मिला, श्रीवर्षा और जबलपुर के ज्ञानयुग प्रभात से गुजरते हुए फिर बम्बई की चौखट पर खड़ा था. डॉ महावीर अधिकारी की एक ललकार फिर यहां खीच लाई थी. …अधिकारी जी ने एक मुलाक़ात में हड़काया था. … क्या यार, लोग इलाहाबाद,कानपुर,जबलपुर छोड़ बम्बई आते है और आप बम्बई छोड़ वहां रम रहें हैं, आइये 'करंट' को पत्रिका बनाना है.  इसी बीच यह धर्मयुग प्रसंग अवतरित हुआ ! … यहां से फिर करंट भी जाना हुआ, महान एसिया का  एक अंक निकाल कर दूसरा तैयार कर रहा था, मंत्री जी का फ़ोन आया, भारती जी याद कर रहे हैं, मिला तो भारती जी ने कहा, आलोक मेहरोत्रा लखनऊ जा रहें है, आप वहां का काम निबटा कर आ जाओ ! … इन वृतांतों के भीतर  तमाम अंतर वृतांत हैं. … डॉ  धर्मवीर भारती हिंदी पत्रकारिता के सफलतम सम्पादकों में शुमार हैं. धर्मयुग कभी 5 लाख की प्रसार संख्या पार कर चुका था. 

स्रोतः गंभीर समाचार


RECENT NEWS

क्या ट्रंप भारत-रूस की मित्रता को तोड़ सकते हैं?
आर्यमान निज्हावन, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के शोधकर्ता और विश्लेषक |  27 Dec 2024 |  
एक देश एक चुनाव : ज़रूरत या महज़ एक जुमला
पंडित पीके तिवारी |  27 Nov 2020 |  
नारी तुम केवल श्रद्धा हो.. क्यों?
लालजी जायसवाल |  22 Oct 2020 |  
इस साल दावा ज्यादा और दवा कम
संजय श्रीवास्तव |  03 Jan 2020 |  
नफ़ासत पसंद शरद जोशी
टिल्लन रिछारिया |  01 Oct 2018 |  
खबर पत्रकार से मिले ये ज़रूरी तो नहीं
संजय श्रीवास्तव |  01 Oct 2018 |  
क्या कभी कानून से खत्म होगी गरीबी?
स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर |  31 May 2017 |  
महात्मा गांधी की याद में
पांडुरंग हेगड़े |  03 Feb 2017 |  
बलूचिस्तान की जंगे आज़ादी
विपीन किशोर सिन्हा     |  01 Feb 2017 |  
क्या पद्मश्री के काबिल हैं कैलाश खेर?
निर्मलेंदु साहा |  28 Jan 2017 |  
अंकों का खेल नहीं है राजनीति
बद्रीनाथ वर्मा |  27 Jan 2017 |  
मीडिया से ही आप हैं, आपसे मीडिया नहीं
निर्मलेंदु साहा |  24 Jan 2017 |  
देखो मैं तो गांधी बन गया ...
निर्मलेंदु साहा |  23 Jan 2017 |  
फिर मत कहिएगा कि पहले बताया नहीं
राम शिरोमणि शुक्ल |  23 Jan 2017 |  
To contribute an article to CULT CURRENT or enquire about us, please write to editor@cultcurrent.com . If you want to comment on an article, please post your comment on the relevant story page.
All content © Cult Current, unless otherwise noted or attributed. CULT CURRENT is published by the URJAS MEDIA VENTURE, this is registered under Chapter V of the Finance Act 1994. (Govt. of India)