साल के आखिर में स्वास्थ्य क्षेत्र से कुछ अच्छी खबरें आईं. आयुष्मान भारत जैसे एक योजना मध्यवर्गीय लोगों के लिये भी आ सकती है, इससे आयुष्मान योजना से बाहर वालों को भी राहत मिलेगी. एक खुशखबरी यह भी कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सवा लाख लोगों को काम मिलेगा. इससे कमजोर सामुदायिक स्वास्थ्य का चेहरा सुधरेगा. सरकार 2022 तक सभी 1.5 लाख उप स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को प्रधानमंत्री आरोग्य मित्र रख कर अपग्रेड करेगी. इस साल कैंसर व दुर्लभ आनुवंशिक रोगियों के उपचार पर खर्च के लिए भारत सरकार ने 100 करोड़ रुपये का जो विशेष फंड स्थापित किया है उससे 50 करोड़ खर्चे. पंद्रहवें वित्त आयोग द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में गठित एक उच्च स्तरीय समूह ने सिफारिश की कि 2022 में 75वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ को बुनियादी अधिकार घोषित किया जाए. इन घटनाओं से इस साल यह संकेत मिला कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ सुखद परिवर्तनों की आस लगाई जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट चिकित्सा सुविधा आम आदमी का मौलिक अधिकार माना. शायद इसी से सरकार वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत कुल 1013.76 करोड़ रुपये जारी किया और 9,549 करोड़ खर्च करके 65 लाख मरीजों का इलाज हो सका. एम्स के लिए बजटीय आवंटन 2018-2019 में 3,018 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,599.65 करोड़ रुपये हो गया तो नर्सिंग सेवाओं को मजबूत करने के लिए 64 करोड़ रुपये निर्धारित किए गये. इसी बीच जड़ी बूटियों से तैयार आयुर्वेद की एंटीबायोटिक एंटी माइक्रोबियल सोल्यूशन फीफाट्रोल पर एम्स की मुहर लगी, एंटीबायोटिक दवाओं के अनियंत्रित इस्तेमाल से उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होना खतरनाक हो रहा है, ऐसे में यह एक बड़ी उपलब्धि है. तनाव में भरे चिकित्सकों पर जनता का हमला और डाक्टरों की हड़ताल के अलावा चिकित्सकीय अनदेखी और भ्रष्टाचार के तमाम किस्से भी हर बरस की तरह इस साल भी छाये रहे.
सरकार ने सेहत के क्षेत्र में इस साल वादों और दावों में कोई कोर कसर नहीं उठ रखा. खुद प्रधानमंत्री ने कई दावे देश में क्या अमेरिका तक में जा कर किया. 2025 तक भारत से टीबी खत्म हो जायेगा,रक्तचाप, मधुमेह और डिप्रेशन जैसी जीवनशैली संबंधित बीमारियों हेतु 1.25 लाख स्वास्थ्य केंद्रों को शुरू कर दिया, सरकारी दवाखानों पर हर जगह 800 से ज्यादा महत्वपूर्ण दवाइयां सस्ते में सुलभ हैं. संसार की सबसे बड़ी जन आरोग्य बीमा का सफलता पूर्ण संचालन कर रहे हैं और स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में 9.5 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनवाना. सचाई यह है कि रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट के यूनाइटेड नेशन और वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन देश के लगभग 38% सरकारी अस्पतालों में न तो शौचालय है न ही सफाई कर्मचारी.
जहां तक 2025 तक टीबी के उन्मूलन का सवाल है, इस रफ्तार से यह लक्ष्य पाना संभव नहीं. टीकाकरण की इंद्रधनुष योजना में शामिल सात खतरनाक बीमारियों में से दो में बढोतरी दर्ज की गई. सस्ती दवाओं की उपलब्धता के लिये दुकानों के बारे में दावा बहुत भ्रामक है. मध्यप्रदेश ने तो संसार भर में कुपोषित बच्चों के मामले में रिकार्ड बनाया है. कुपोषण,स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव में हमारा देश नीचे से 10वें पायदान पर है. देश के छोटे शहरों, कस्बों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 50 फीसदी से भी ज्यादा की कमी है और गावों में यह 85 फीसदी के आसपास है। ऐसे में जब डॉक्टर ही नहीं होंगे तो प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ कैसे मिलेगा. 6 लाख की आबादी पर एक अस्पताल, साढे 6 लाख गांवों पर केवल 29635 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा 1833 मरीज पर एक बेड. सरकारी अस्पतालों में केवल 10 फीसदी चिकित्सक. यही वजह है कि यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार इस साल भी स्वास्थ्य सेवाओं में भारत 116 वें स्थान पर है. हमसे आगे भूटान,म्यामांर, और श्री लंका हैं.