संपादकीय - अस्थिर दुनिया, स्थिर भारत
संदीप कुमार
| 30 Sep 2025 |
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वर्तमान वैश्विक परिदृश्य अभूतपूर्व अनिश्चितताओं और जटिल जोखिमों से घिरा हुआ है, जिनमें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विघटन, ऊर्जा सुरक्षा संकट, जलवायु परिवर्तन के विकराल प्रभाव, साइबर युद्ध और रूस-नाटो तनाव प्रमुख हैं। एस एंड पी ग्लोबल और ब्लैक रॉक जैसी शीर्ष संस्थाओं द्वारा रेखांकित ये चुनौतियाँ वैश्विक स्थिरता के साथ-साथ भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी रणनीतिक अनिवार्यताएँ पैदा करती हैं। भारत को इन जोखिमों का सामना करने हेतु अपनी नीतियों और रणनीतियों को रणनीतिक स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों के अनुरूप गहनता से पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है।
पिछले कुछ वर्षों में, 'जस्ट-इन-टाइम' विनिर्माण मॉडल पर आधारित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ भू-राजनीतिक तनावों और महामारी के कारण चरमरा गई हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने कच्चे माल की आपूर्ति को बाधित किया, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति बढ़ी। यह विघटन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता का निर्णायक उत्प्रेरक भी है। सरकार 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान और पीएलआई योजनाओं के माध्यम से घरेलू विनिर्माण पर ज़ोर दे रही है, साथ ही 'फ्रेंड-शोरिंग' की अवधारणा पर विचार कर रही है ताकि विश्वसनीय आपूर्ति नेटवर्क स्थापित किए जा सकें। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक लचीलेपन दोनों के लिए आवश्यक है।
वैश्विक ऊर्जा बाजारों की अस्थिरता ने ऊर्जा सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बना दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि ने भारत जैसे बड़े आयातक देशों पर भारी वित्तीय दबाव डाला। इस चुनौती के जवाब में, भारत ने अपनी ऊर्जा नीति में मौलिक बदलाव लाए हैं। सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा पर भारी निवेश किया है, तथा हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया है। रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार का विस्तार और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना इस रणनीति के प्रमुख स्तंभ हैं। लक्ष्य स्पष्ट है: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और एक टिकाऊ व आत्मनिर्भर ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ना।
जलवायु परिवर्तन एक तात्कालिक और विनाशकारी वैश्विक खतरा है, जिसके प्रभाव भारत में अनियमित मानसून, बाढ़, सूखा और लू के रूप में तेज़ी से महसूस किए जा रहे हैं। यह भारत की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती है। सरकार ने इस खतरे को पहचानते हुए जलवायु अनुकूल नीतियाँ अपनाई हैं। राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन (एनएपीसीसी) जैसी पहलें आपदा प्रबंधन, जल संरक्षण, और अनुकूलन रणनीतियों पर केंद्रित हैं। हालांकि, भारत विकसित देशों से 'जलवायु न्याय' और वित्तीय-तकनीकी सहायता के लिए लगातार आह्वान करता रहा है।
तेजी से डिजिटलीकरण के साथ, साइबर हमले अब राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिन्न अंग बन गए हैं। भारत का डिजिटल बुनियादी ढाँचा लगातार विदेशी अभिनेताओं द्वारा लक्षित किया जा रहा है। सरकार साइबर सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए CERT-In को मजबूत कर रही है और 'जीरो-ट्रस्ट' सुरक्षा मॉडल को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। डिजिटल इंडिया की सफलता हेतु एक अभेद्य साइबर सुरक्षा ढाँचा आवश्यक है।
रूस-नाटो के बीच गहराता तनाव वैश्विक शक्ति संतुलन को मौलिक रूप से प्रभावित कर रहा है। इस जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में, भारत ने 'बहु-संरेखण' की नीति अपनाई है। भारत ने एक ओर रूस के साथ अपने ऐतिहासिक रक्षा और ऊर्जा संबंधों को बनाए रखा है, वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत किया है। क्वाड जैसे समूहों में सक्रिय भागीदारी और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर नेतृत्व की भूमिका भारत को वैश्विक शासन में एक महत्वपूर्ण और संतुलित आवाज प्रदान करती है।
निष्कर्षतः, 2025 में उभरे ये वैश्विक जोखिम भारत को आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु अनुकूलन, डिजिटल सुरक्षा और संतुलित कूटनीति जैसे पहलुओं पर अपनी रणनीतियों को फिर से केंद्रित करने की आवश्यकता जताते हैं। इन चुनौतियों को एक जिम्मेदार और सामरिक रूप से लचीली महाशक्ति के रूप में भारत की भूमिका को स्थापित करने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।