साल 2020 का पहला किसान आंदोलन, 8 जनवरी को

संदीप कुमार

 |  05 Jan 2020 |   258
Culttoday

वर्ष 2020 का आगाज किसानों ने एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन से करने का ऐलान किया है. किसान संगठनों के मुताबिक साल के पहले महीने की 8 तारीख को देश का हर गांव बंद रहेगा. किसान संपूर्ण कर्ज माफी के साथ ही फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना तय करने के साथ ही, गन्ना के बकाया भुगतान और आवारा पशुओं से फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के साथ राज्यों के अपने-अपने मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने के लिए इस बंद का आह्वान कर रहे हैं. किसानों की मांगों में सरकार द्वारा खेती और कृषि उत्पादन तथा उसको बाजार प्रदान करने में कॉरपोरेट कंपनियों की घुसपैठ का विरोध, किसान आत्महत्याओं की जिम्मेदार नीतियों की वापसी, खाद-बीज-कीटनाशकों के क्षेत्र में मिलावट, मुनाफाखोरी और ठगी तथा उपज के लाभकारी दामों से जुडी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल की मांगे शामिल हैं.

इस बंद को राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले आयोजित किया जा रहा है. किसान संगठन ने बंद की तैयारी में नए साल के पहले दिन से ही गांव स्तर पर प्रचार कर राष्ट्रपति को स्थानीय प्रशासन के मार्फत अपनी समस्याओं के बारे में अवगत करा रहे हैं. 

एआईकेएससीसी के संयोजक वीएम सिंह ने किसानों की अन्य मांगों के बारे में कहा कि किसानों की मांगों में 60 वर्ष से अधिक आयु के किसानों को न्यूनतम 5,000 रुपये मासिक पेंशन, फसल बीमा योजना में नुकसान के आंकलन के लिए किसान के खेत को आधार मानना, विकास के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर उन्हें विस्थापित करने पर रोक लगाने, वनाधिकार कानून पास करन, मनरेगा को खेती से जोड़कर 250 दिन काम देने के साथ ही मंडियों में समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर फसल खरीदने वालों को जेल और जुर्माने का प्रावधान जैसी मांग भी प्रमुख मांगों में शामिल है. 

किसान संगठनों ने अलग-अलग राज्यों में 1 जनवरी से ही इस बंद के बारे में किसानों के बीच जागरुकता फैसाना शुरु कर दिया है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों के साथ जन आंदोलनों से जुड़े संगठनों ने भी इस बंद का साथ दिया है. मध्यप्रदेश में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी किसानों के इस बंद में अपना साथ दिया है और इस आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर बंद को सफल बनाने के लिए किसानों को जागरूक भी कर रही हैं. पाटकर ने इस आंदोलन का समर्थन देते हुए मध्यप्रदेश में विस्थापित मछुआरों को पेंशन, और नर्मदा में बने बांधों से विस्थापित हुए लोगों को उचित पुनर्वास की मांग भी उठाई. छत्तीसगढ़ में किसानों, आदिवासियों व दलितों के बीच काम करने वाले 20 संगठनों और 35 किसान नेताओं ने बैठक में इस आंदोलन का साथ देने का फैसला लिया. संगठनों ने पूरे राज्य के किसानों से अपील की है कि वे 8 जनवरी को सब्जी, दूध, मछली, अंडे व अन्य कृषि उत्पादों को शहरों में लाकर न बेचे और ग्रामीण व्यवसायी शहरों में जाकर खरीदारी न करें. छत्तीसगढ़ में केंद्र व राज्य सरकारों की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ मंडियों, जनपदों व पंचायतों सहित विभिन्न सरकारी कार्यालयों पर धरना, प्रदर्शन व सभाओं का आयोजन किया जाएगा. 


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