केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना: एक ऐतिहासिक पहल

संदीप कुमार

 |  26 Dec 2024 |   150
Culttoday

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना की आधारशिला रखी, जिसके साथ देश में पहली बार नदी जोड़ो योजना की शुरुआत हुई। इस परियोजना का कुल बजट करीब 45 हजार करोड़ रुपये है, और यह भारत में शुरू की गई नदियों को जोड़ने की पहली परियोजना है।

इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई की सुविधा प्रदान करना है, जिससे लाखों किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर कहा, "जल सुरक्षा 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।" उन्होंने यह भी कहा कि केवल वही देश और क्षेत्र प्रगति कर सकते हैं जिनके पास पर्याप्त जल और समृद्ध खेत हों।

मोदी ने यह भी बताया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना जल्द ही वास्तविकता बनने वाली है, जो बुंदेलखंड क्षेत्र में समृद्धि और खुशहाली के नए द्वार खोलेगी। इसके माध्यम से उम्मीद की जा रही है कि बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी की कमी को दूर किया जा सकेगा, जो सालभर पानी के लिए तरसते रहते हैं।

परियोजना का उद्देश्य और संरचना

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य केन नदी से पानी को बेतवा नदी में स्थानांतरित करना है, क्योंकि ये दोनों नदियाँ यमुना की सहायक नदियाँ हैं। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना में बनाई जाने वाली लिंक नहर की लंबाई 221 किलोमीटर होगी, जिसमें 2 किलोमीटर की सुरंग भी शामिल है।

इस परियोजना से लगभग 10.62 लाख हेक्टेयर भूमि (8.11 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश में और 2.51 लाख हेक्टेयर उत्तर प्रदेश में) को सिंचाई की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा, 65 लाख लोगों को पीने का पानी, 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा प्राप्त होगी।

नदी जोड़ो परियोजना का पर्यावरणीय असर

हालांकि इस परियोजना का पर्यावरण पर असर भी चर्चा का विषय है। विशेष रूप से पन्ना टाइगर रिजर्व में इसकी गंभीर चिंता जताई जा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि इस परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न हो जाएगा, जो बाघों के लिए खतरे की घंटी है। जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में इस परियोजना को पर्यावरण के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की कथनी और करनी के बीच का अंतर बताया।

पन्ना टाइगर रिजर्व में 2009 में बाघों की संख्या समाप्त हो गई थी, लेकिन 15 साल पहले शुरू किए गए बाघ पुनरुद्धार कार्यक्रम के तहत अब वहां 90 से अधिक बाघ हैं। इस परियोजना के कारण इन बाघों के रहने की जगह प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करते समय, पन्ना नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के भीतर बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की बात भी सामने आई है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

इस परियोजना से मध्य प्रदेश के 10 जिलों और उत्तर प्रदेश के 4 जिलों को सीधा लाभ मिलने की संभावना है। इन राज्यों के लगभग 65 लाख लोगों को साफ पानी और किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा। हालांकि, बांध के निर्माण के कारण छतरपुर जिले के 5,228 परिवार और पन्ना जिले के 1,400 परिवार विस्थापित हो जाएंगे, जिन्हें परियोजना के कारण अपनी ज़मीन छोड़नी पड़ेगी। भूमि अधिग्रहण और उचित मुआवजे की मांग को लेकर स्थानीय लोगों द्वारा विरोध भी किया गया है।

इस तरह के विवादों और चुनौतियों के बावजूद, केंद्र और राज्य सरकारों का कहना है कि यह परियोजना देश के जल संसाधनों के बेहतर उपयोग और ग्रामीण क्षेत्रों के समृद्धि में अहम भूमिका निभाएगी।

(आमिर अंसारी के डीडब्ल्यू डॉट काम के हिंदी संस्करण में प्रकाशित आलेख से साभार इनपुट लिये गये हैं।)

 


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